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बच्चों को ऐसे सिखाएं हावभाव से भाषा

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सोमवार, 8 सितम्बर 2014 (11:32 IST)
आमतौर पर माना जाता है कि बच्चों में जल्दी सीखने की क्षमता होती है। बच्चों के मानसिक विकास के लिए हम कई तरीके अपनाते हैं। एक अध्ययन के हिसाब से इन तरीकों में 'जेसचर्स' यानी स्वत: इशारे बच्चों को भाषा सीखनें में काफी मददगार हो सकते हैं। स्वत: यानी अपने आप होने वाले इन इशारों से बच्चों को स्पोकन लैंग्वेज और साइन लैंग्वेज़ को सीखने में आसानी होगी। बच्चे अपनी बात कहने के लिए स्वाभाविक इशारों से अपनी बात ज्यादा आत्मविश्वास से कह पाते हैं।

जानें भाषा में इशारों का महत्व..


बच्चों की अभिव्यक्ति करें प्रभावी :  यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो के साइकोलॉजी डिपार्टमेंट की प्रोफ़ेसर सुसैन गोल्डिन के मुताबिक हाथों के इशारों और शब्दों का संयोजन बच्चों को उनकी बात एक प्रवाह में कहने में मदद करता है। इस अध्ययन के नतीजों से पता चलता है कि बोलने से पहले बच्चों को अपने विचारों को समझने में आसानी होती है जिससे वे खुलकर अपने आप को व्यक्त कर पाते हैं। इस अध्ययन में सुसैन ने जांचा की इशारे किस तरह बच्चों में भाषा को सीखने में मदद करते हैं। उनके मुताबिक स्वत: इशारे भाषा को समझने का एक आसान तरीका है और कोई भी बातचीत करने के लिए उसका उपयोग कर सकता है। यही नहीं, जरूरत पड़ने पर कई मौकों पर ये इशारे ही खुद एक भाषा का रूप ले लेते हैं।
आगे पढ़ें पेरेंट्स का कैसा होता है असर..


मां- बाप से सीखते हैं इशारे :  इसके साथ ही प्रोफ़ेसर सुसैन ने स्पोकन लैंग्वेज पर भी शोध किया है। इस अध्ययन में उन्होंने ऐसे बच्चों का अध्ययन किया जो अपने पैरेंट्स के इशारों से सीखते हैं। सुसैन ने पाया कि बच्चे अपने मां-बाप के इशारों की आदत को जल्दी अपनाते हैं। ये बच्चों की प्रवाह में बोलने की क्षमता बढ़ाने जैसा ही है। इन इशारों में बच्चों को सीख मिलती है। ये उसी तरह से कारगर है जैसे शब्दों के साथ हाथों के इशारों का प्रयोग उन्हें बेहतर अभिव्यक्त करने में मदद करता है। घर के माहौल में अपने आप ही ये इशारे बच्चों की भाषा में आ जाते हैं। इससे बच्चों में अपने विचारों को आसानी से प्रकट करने की क्षमता बढ़ती है।

मूक-बधिर बच्चों के लिए वरदान : इस अध्ययन में आम बच्चों के अलावा प्रोफेसर सुसैन ने मूक-बधिर बच्चों की भाषा को भी समझा। इस केस में उन्होंने अध्ययन किया कि न सुन पाने वाले बच्चों में उनकी ये अक्षमता कैसे उन्हें बोलचाल की भाषा सीखने से रोकती है। साथ ही उन बच्चों पर भी जिनके मां-बाप ने किसी भी तरह से साइन लैंग्वेज को नहीं अपनाया। उन्होंने पाया कि ये बच्चे में घर में बने सिस्टम यानी कि ‘होमोसाइन’ का प्रयोग करते हैं। होमोसाइन, साइन लैंग्वेज को सिखाने की दिशा में पहला कदम है। कोई और साधन न होने की स्थिति में स्वत: इशारे बच्चों में खुद की भाषा बनाने के लिए भाषाई रूपों और कार्यों का एक कारगर तरीका साबित होता है।
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