जाने क्या सूझा सूरज को,
जन जीवन पर हमला बोला।
मार्च माह जाते-जाते ही,
दाग दिया गर्मी का गोल।
सर फर्राती हवा चल पड़ी।
तीर चले अंगारों वाले।
धरती हो गई गर्म तवा-सी,
पड़ने लगे पगों में छाले।
मौसम के नीले सागर में
इस निर्मम ने लावा घोला।
खतम परीक्षा आए नतीजे,
पर शाला से मिली न छुट्टी।
बस्ता कंधे पीठ किताबों,
से कर पाए अभी न कुट्टी।
नहीं किसी शाला ने अब तक,
छुट्टी देने को मुंह खोला।
सूरज शिक्षक सरकारों को,
नहीं दया हम पर आती है।
किरणों के चाबुक से हमको,
भरी दुपहरिया पिटवाती है।
सूरज से अब हम क्या बोलें,
घड़ा धूप का सिर पर ढोला।