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बाल गीत: क्यों न शामिल कर लें

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
ठंड में चिरैया उड़कर आई,
घुस गई घरों दुकानों में।
मफलर ओढ़ो स्वेटर पहनो,
बोली सबके कानों में।
 
मुझसे बोली दादाजी को,
गरम कोट सिलवा देना।
फटी जुराबें चप्पल उनकी,
आज नई मंगवा देना।
नए कांच भी लगवाना हैं,
खिड़की रोशन-दानों में।
 
दादीजी की हुई रजाई,
देखो बहुत पुरानी है।
घुसकर हवा बड़े छिद्रों से,
करती अब शैतानी है।
बूढ़ी दादी तो शामिल बस,
कुछ दिन की मेहमानों में।
 
घर का बूढ़ा नौकर श्यामू,
रोज कांपता थर-थर-थर।
उसे दिला क्यों न देते हो,
स्वेटर एक नया लाकर।
सुख देकर सुख पाओ लिखा है,
वेदों और पुराणों में।
 
बड़े बुजुर्ग बरगदों जैसे,
हमको छाया देते हैं।
अपने भीतर देखें, उनकी,
कितनी सुध हम लेते हैं।
क्यों न शामिल कर लें उनको,
हम अपने भगवानों में।

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

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