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बाल कविता: मच्छर मक्खी बड़े तबलची

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
टोप नहीं साहब के सिर पर,
सिर नंगा है साहब का। 
नंगा सिर देखा तो देखा,
सिर गंजा है साहब का। 
 
नंगे सिर पर, गंजे सिर पर,
तबला बजता शान से। 
मच्छर मक्खी बड़े तबलची,
आए हैं ईरान से। 

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