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Karwa Chauth 2024: करवा चौथ पर कब से कब तक है भद्रा का साया? नोट करें Date-time

करवा चौथ पर भद्रा का साया, जानें कब से कब तक रहेगी, क्या है पूजा और चंद्रोदय का समय?

Karwa Chauth 2024: करवा चौथ पर कब से कब तक है भद्रा का साया? नोट करें Date-time

WD Feature Desk

, शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2024 (13:26 IST)
Karwa Chauth 2024 Time: हिंदू महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सेहत के लिए कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर करवा चौथ का निर्जला व्रत रखती हैं। इस बार करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर 2024 रविवार के दिन रखा जाएगा, परंतु इस बार करवाचौथ पर भद्रा का साया भी है। ऐसे में चंद्रदोय के समय कब करें परायण और पूजा। क्या है पूजा और चंद्र उदय का समय।
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करवा चौथा के निर्जला व्रत की शुरुआत सूर्योदय से 2 घंटा पहले सरगी खाकर करते हैं। इस दौरान करवा माता, भगवान गणेश और चंद्रमा की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। अंत में रात्रि को चंद्रमा को देखकर ही व्रत को खोला जाता है परंतु इस वर्ष करवा चौथ पर भद्रा का साया रहेगा। ज्योतिष शास्त्र में भद्रा को अशुभ माना गया है। ऐसे में शुभ कार्य करना वर्जित रहता है। तब महिलाओं को क्या करना चाहिए?
 
भद्रा लगने का समय : ज्योतिष विद्वानों के के अनुसार करवा चौथ पर 20 अक्तूबर को 21 मिनट तक भद्रा का साया रहेगा। करवा चौथ के दिन भद्रा सुबह 06:24 से 06:46 तक रहेगी। करवा चौथ व्रत की शुरुआत  भद्रा काल शुरू होने से पूर्व ही हो जाएगी। ऐसे में व्रती सूर्योदय से पहले स्नान कर सरगी ग्रहण कर लें और व्रत का संकल्प ले लें। इसके बाद पूजा का शुभ समय शाम को 5:46 बजे से शुरू हो रहा है। यह शुभ मुहूर्त शाम 7 बजकर 2 तक रहेगा।
 
विद्वानों के अनुसार करवा चौथ की पूजा के समय भद्रा काल नहीं रहेगा। यदि फिर भी महिलाओं को भद्रा की शंका है तो नीचे दिए गए मंत्र का जाप करके इसका निवारण कर सकती हैं। इस मंत्र के जाप से भद्रा का भय समाप्त हो जाता है और पूजा की बाधाएं खत्म होती हैं। 
 
धन्या दधमुखी भद्रा महामारी खरानना।
कालारात्रिर्महारुद्रा विष्टिश्च कुल पुत्रिका।
भैरवी च महाकाली असुराणां क्षयन्करी।
द्वादश्चैव तु नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्।
न च व्याधिर्भवैत तस्य रोगी रोगात्प्रमुच्यते।
गृह्यः सर्वेनुकूला: स्यर्नु च विघ्रादि जायते। 
करवा चौथ की सरल पूजन विधि क्या हैं :
- कार्तिक कृष्ण चतुर्थी यानि करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नानादि करके स्वच्छ कपड़े धारण करें तथा श्रृंगार कर लें।
- तत्पश्चात व्रत का संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें। 
- व्रत के दिन निर्जला रहे, जलपान ना करें।
- प्रातःकाल पूजा के समय इस मंत्र के जप से व्रत प्रारंभ किया जाता है- 
'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।' 
अथवा 
- ॐ शिवायै नमः' से पार्वती का, 'ॐ नमः शिवाय' से शिव का, 'ॐ षण्मुखाय नमः' से स्वामी कार्तिकेय का, 'ॐ गणेशाय नमः' से गणेश का तथा 'ॐ सोमाय नमः' से चंद्रमा का पूजन करें।
- सायंकाल के समय, मां पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्री गणेश को विराजमान कर उन्हें बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी अथवा लकड़ी के आसार पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। 
- मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बांधकर देवता की भावना करके स्थापित करें। 
- इसके बाद माता पार्वती का सुहाग सामग्री आदि से श्रृंगार करें।
- भगवान शिव और मां पार्वती की आराधना करें।
- फिर कोरे करवे में पानी भरकर पूजा करें। 
- एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित करें।
- सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत रखकर पूजन के समय करवा चौथ कथा जरूर सुनें या सुनाएं।
-चांद को छलनी से देखने के बाद अर्घ्य देकर चंद्रमा की पूजा करनी चाहिए।
- चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देते समय यह मंत्र बोलें-
'करकं क्षीरसंपूर्णा तोयपूर्णमयापि वा। 
ददामि रत्नसंयुक्तं चिरंजीवतु मे पतिः॥
इति मन्त्रेण करकान्प्रदद्याद्विजसत्तमे। 
सुवासिनीभ्यो दद्याच्च आदद्यात्ताभ्य एववा।।
एवं व्रतंया कुरूते नारी सौभाग्य काम्यया। 
सौभाग्यं पुत्रपौत्रादि लभते सुस्थिरां श्रियम्।।' 
 
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