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टारगेट किलिंग के खौफ से पलायन को मजबूर कश्मीरी पंडित सरकारी कर्मचारियों की जुबानी, कश्मीरी हिंदुओं में आतंक की पूरी कहानी

कश्मीर घाटी के बारामूला और अनंतनाग के ट्रांजिट कैंप की ग्राउंड रिपोर्ट

टारगेट किलिंग के खौफ से पलायन को मजबूर कश्मीरी पंडित सरकारी कर्मचारियों की जुबानी, कश्मीरी हिंदुओं में आतंक की पूरी कहानी
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विकास सिंह

, शुक्रवार, 3 जून 2022 (13:42 IST)
टारगेट किलिंग से दहशत में आए कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों और गैर कश्मीरियों के पलायन ने नब्बे के दशक की यादें लोगों के जेहन में ताजा कर दी है। लगातार टारगेट किलिंग से पूरी कश्मीर घाटी में दहशत का माहौल है। बडगाम के चादूरा में 12 मई को राजस्व कर्मचारी कश्मीर पंडित राहुल भट की हत्या के बाद से एक पखवाड़े में पांच कश्मीरी पंडितों और गैर कश्मीरियों को मौत के घाट उतार दिया गया है। टारगेट किलिंग की हत्या के बाद घाटी में ट्रांजिट कैंप में रहने वाले कश्मीर पंडित जोकि सरकारी कर्मचारी भी है, आज सामूहिक पलायन कर रहे है। कश्मीरी पंडितों का आरोप है कि टारगेट किलिंग में कब उनका नंबर आ जाए उनको खुद नहीं पता है। 
 
‘वेबदुनिया’ ने कश्मीर घाटी के विभिन्न इलाकों में ट्रांजिट कैंप में रहने वाले उन सरकारी कर्मचारियों से बात कर जमीनी हालात को समझने की कोशिश की जो एक बार फिर पलायन को मजबूर है। 
 
कश्मीर घाटी के बारामूला की ग्राउंड रिपोर्ट- टारगेट किलिंग के खौफ से कश्मीर घाटी के बारामूला में स्थित कश्मीरी पंडितों का ट्रांजिट कैंप लगातार खाली रहा है। 2010 से ट्रांजिट कैंप में रहने वाले टीएन पंडित जो प्रिसिंप्रल सेशन (स्थानीय न्यायालय) में सरकारी कर्मचारी है, कहते हैं कि टारगेट किलिंग के डर से वह अपने परिवार के साथ पलायन को मजबूर है।
  
‘वेबदुनिया’ से बातचीत में टीएन पंडित कहते हैं कि घाटी में कश्मीरी पंडितों के लिए हालात दिन-प्रतिदिन बद से बदतर होते जा रहे है। टारगेट किलिंग में सीधे कश्मीरी पंडित निशाने पर है। ऐसे हालात में ट्रांजिट कैंप में रहने वाले अधिकांश लोग पलायन कर चुके है और जो बाकी बचे है, वह भी एक दो दिन में पलायन कर जाएंगे। 
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टीएन पंडित उन कश्मीरी पंडितों में से एक है जो 1990 के दशक के बाद एक बार फिर परिवार के साथ पलायन को मजबूर है। ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में वह कहते हैं कि 1990 में जब वह अपने पिता के साथ पलायन किए थे तब वह 10 वीं क्लास में पढ़ते थे। घाटी में हालात सामान्य होने पर 2010 में वह अपने परिवार के साथ घाटी में लौटे थे और तब से बारामूला में बने ट्रांजिंट कैंप में रहते थे।
 
1990 के पलायन और 2022 के पलायन की स्थिति में क्या अंतर है ‘वेबदुनिया’ के इस सवाल पर टीएन पंडित कहते हैं कि 1990 के तुलना में आज के हालात ज्यादा खतरनाक है। आज जिस तरह से टारगेट किलिंग हो रही है उससे लग ही नहीं रहा है कि लॉ एंड ऑर्डर कही है। वह कहते हैं कि टारगेट किलिंग करने वाले निजाम-ए-मुस्तफा कायम करना चाहते है। इनका मानना है कि निजाम-ए-मुस्तफा को रोकने के लिए हिंदुस्तान ने हिंदुओं को यहां रखा है, इसलिए इनको हिंदू यहां चाहिए ही नहीं।  टारगेट किलिंग करने वाले भी स्थानीय है लेकिन हर कोई इनके साथ नहीं है। कश्मीर घाटी में रहने वाले अधिकांश मुस्लिम समुदाय को खुद नहीं समझ में आ रहा है कि आखिरी घाटी में हो क्या रहा है। 
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अनंतनाग के विशु ट्रांजिट कैंप से ग्राउंड रिपोर्टः वहीं कश्मीर घाटी के अनंतनाग जिले में विशु में रहने वाले संदीप रैना जो स्थानीय बिजली विभाग में कर्मचारी है, का परिवार भी टारगेट किलिंग के खौफ से पलायन को मजबूर है। ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में संदीप रैना कहते हैं कि पलायन की एक मात्र वजह है टारगेट किलिंग है, मेरा नंबर कब आएगा मुझे खुद नहीं पता। हालात इस कदर खराब है कि हम घर से बाहर तक नहीं जा पा रहे है। 
 
1990 में अपने पिता के साथ पलायन को मजबूर होने वाले संदीप रैना कहते हैं कि उनकी आंखों के सामने वह तस्वीरें फिर सामने आ गई है जब मेरे माता-पिता ने ऐसे हालात में पलायन किया था। संदीप कहते हैं कि 1990 में मैं 10 साल का था और आज मेरा बच्चा दस साल का है जब मैं वापस पलायन करने पर मजबूर हूं।

संदीप बताते है कि जिस ट्रांजिट कैंप में वह अपने परिवार के साथ 2009 से रहते थे वहां पर करीब 800 लोग रहते थे जिसमें 300 के करीब लोग अब तक जा चुके है और आज 100-200 लोग जाने की तैयारी मे है। जल्द ही पूरा ट्रांजिट कैंप खाली हो जाएगा। 
 
संदीप कहते हैं कि वह बिजली विभाग के कर्मचारी है तो लगातार लोगों से मिलते रहते थे, लोगों की सेवा करते थे लेकिन आज हम को सीधे धमकियां मिल रही है। हमको टारगेट किया जा रहा है और कहा जा रहा है कि यहां पर नहीं रहना है। आप घाटी छोड़कर चले जाओ नहीं तो अगर नंबर आपका है।
 
1990 की स्थिति और 2022 के हालात जिसमें कश्मीरी पंडित पलायन को मजबूर है में क्या अंतर है इस पर संदीप रैना कहते हैं कि हालात उससे ज्यादा खराब है। 1990 के स्थानीय मुस्लिम को पता होता था कि क्या हो रहा है और वह शायद बचा भी लेता था लेकिन आज किसी को पता नहीं है। आज घाटी में हाइब्रिड मिलेटेंसी है और आतंकी आते है और रिवॉल्वर से अपना काम करके चलते जाते है और माहौल में घुल मिल जाते है। 

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