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Baba Chamliyal Mela: इस बार भी चमलियाल मेले में न ही दिल मिले और न ही बंटा शकर-शर्बत

Baba Chamliyal Mela: इस बार भी चमलियाल मेले में न ही दिल मिले और न ही बंटा शकर-शर्बत
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सुरेश एस डुग्गर

चमलियाल सीमा चौकी (जम्मू सीमा से) , गुरुवार, 22 जून 2023 (16:21 IST)
Baba Chamliyal Mela: पंजाब के जालंधर से आने वाले गुरदीप सिंह और हैदराबाद से आए रमेश अग्रवाल पहली बार चमलियाल मेले (Chamliyal Mela) में आए तो सही लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी। वे इस मेले के प्रति कई सालों से सुन रहे थे और पहली बार आने पर उन्हें मालूम हुआ कि इस बार भी दोनों मुल्कों के बीच शकर और शर्बत का आदान-प्रदान नहीं हुआ, जो इस मेले का मुख्य आकर्षण हुआ करता था और लगातार 6ठे साल यह परंपरा टूट गई।
 
चमलियाल सीमा चौकी पर हर साल सच में यह अद्धभुत नजारा होता था, जब सीमा पर बंदूकें शांत होकर झुक जाती थीं और दोनों देशों की सेनाएं शकर व शर्बत बांटने के पूर्व की औपचारिकताएं पूरी करने में जुट जाती थीं। और जीरो लाइन पर जैसे ही बीएसएफ के अफसर पाक रेंजरों अफसरों को गले लगाते थे तो यूं महसूस होता था कि जैसे समय रुक-सा गया। समय रुकता हुआ नजर इसलिए आता था ताकि इस ऐतिहासिक क्षण को कैमरों में कैद किया जा सके।
 
पर पाक रेंजरों के अड़ियल रवैये ने इस नजारे से लोगों को लगातार 6ठी बार वंचित रखा है। 
अगर स्पष्ट शब्दों में कहें तो चमलियाल मेला एकसाथ खड़े, एक ही बोली बोलने वालों, एक ही पहनावा डालने वालों, एक ही हवा में सांस लेने वालों तथा एक ही आसमान के नीचे खड़े होने वालों को एक कटु सत्य के दर्शन भी करवाता रहा है कि चाहे सब कुछ एक है, मगर उनकी घड़ियों के समय का अंतर हमेशा यह बताता था कि दोनों की राष्ट्रीयता अलग अलग है।
 
हालांकि यह कल्पना भी रोमांच भर देने वाली होती थी कि एक ही बोली बोलने, एक ही हवा में सांस लेने वाले अपनी घड़ियों के समय से पहचाने जाते थे जबकि दोनों दोनों अलग-अलग देशों से संबंध रखने वाले होते थे जिन्हें अदृश्य मानसिक रेखा ने बांट रखा है।
 
जम्मू से करीब 45 किमी की दूरी पर रामगढ़ सेक्टर में एक बार फिर इस नजारे को देखने की खातिर हजारों की भीड़ को निराशा ही हाथ लगी। मेंले की शक्ल ले चुके बाबा चमलियाल के मेंले की तैयारी में लोग 2 दिनों से जुटे हुए थे। विभिन्न प्रकार के स्टॉल और झूले लगे हुए थे, उस भारत-पाक सीमा पर जहां पाक सैनिक कुछ दिन पहले तनातनी का माहौल पैदा करने में लगे हुए थे।
 
आधिकारिक रिकॉर्ड के मुताबिक आजादी के बाद से ही यह मेला लगता है। इतना ही नहीं, रामगढ़ सेक्टर के चमलियाल उप-सेक्टर में चमलियाल सीमा चौकी पर स्थित बाबा दिलीप सिंह मन्हास की समाधि के दशनार्थ पाकिस्तानी जनता भारतीय सीमा के भीतर भी आती रही है। लेकिन यह सब 1971 के भारत-पाक युद्ध तक ही चला था, क्योंकि उसके बाद संबंध ऐसे खट्टे हुए कि आज तक खटास दूर नहीं हो सकी।
 
यह दरगाह चर्म रोगों से मुक्ति के लिए जानी जाती है, जहां की मिट्टी तथा कुएं के पानी के लेप से चर्म रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है। असल में यहां की मिट्टी तथा पानी में रासायनिक तत्व हैं और यही तत्व चर्म रोगों से मुक्ति दिलवाते हैं। ऐसा भी नहीं है कि चर्म रोगों से मुक्ति पाने के लिए सिर्फ हिन्दुस्तानी जनता ही इस दरगाह पर मन्नत मांगती है बल्कि इस दरगाह की मान्यता पाकिस्तानियों में अधिक है।
 
यह इससे भी स्पष्ट होता है कि सीमा के इस ओर जहां मेला मात्र 1 दिन था और उसमें 1.50 लाख के करीब लोग शामिल हुए थे, वहीं सीमा पार सियालकोट सेक्टर में सैदांवाली सीमा चौकी क्षेत्र में 7 दिनों से यह मेला चल रहा था जिसमें हजारों के हिसाब से नहीं बल्कि लाखों की गिनती से श्रद्धालु आए थे।
 
इसी श्रद्धा का परिणाम था कि जब बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं तो उन्होंने दरगाह क्षेत्र को पाकिस्तानियों को देने का भारत सरकार से आग्रह कर डाला और बदले में छम्ब का महत्वपूर्ण क्षेत्र देने की बात कही थी।
 
Edited by: Ravindra Gupta

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