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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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जगन्नाथ रथयात्रा : पुरी मंदिर के 25 चमत्कार और रहस्य

jagannath mandir

अनिरुद्ध जोशी

Mysteries of Jagannath Temple : भारतीय राज्य ओड़ीसा में हिन्दुओं की प्राचीन और पवित्र 7 नगरियों में से एक पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर को बहुत ही प्राचीन माना जाता है। यहां पर प्रतिवर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की दूज से 9 रथयात्रा प्रारंभ होती है जिसमें शामिल होने के लिए देश विदेश से लाखों भक्त आते हैं। आओ जानते हैं इस जगह और मंदिर के बारे में 25 रोचक जानकारी।
 
 
1. कब बना था यह मंदिर : इस मंदिर को सतयुग के राजा इंद्रद्युम ने बनवाया था। समय समय पर इस मंदिर का जीर्णोद्धार होता रहा। इस मंदिर का सबसे पहला प्रमाण महाभारत के वनपर्व में मिलता है। वर्तमान में जो मंदिर है वह 7वीं सदी में बनवाया था। हालांकि इस मंदिर का निर्माण ईसा पूर्व 2 में भी हुआ था। यहां स्थित मंदिर 3 बार टूट चुका है। 1174 ईस्वी में ओडिसा शासक अनंग भीमदेव ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था। मुख्‍य मंदिर के आसपास लगभग 30 छोटे-बड़े मंदिर स्थापित हैं।
 
2. नीलमाधव : ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार यहां भगवान विष्णु पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतरित हुए और सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए। ज्येष्ठ पूर्णिमा से आषाढ़ पूर्णिमा तक सबर जाति के दैतापति जगन्नाथजी की सारी रीतियां करते हैं।
 
3. श्रीहरि विष्णु पूजे गए श्रीराम के रूप में : पुरुषोत्तम हरि को यहां भगवान राम का रूप माना गया है। रामायण के उत्तराखंड के अनुसार भगवान राम ने रावण के भाई विभीषण को अपने इक्ष्वाकु वंश के कुल देवता भगवान जगन्नाथ की आराधना करने को कहा। आज भी पुरी के श्री मंदिर में विभीषण वंदापना की परंपरा कायम है।
 
4. श्रीकृष्ण बने जग के नाथ जगन्नाथ : बाद में नीलमाथव को श्रीहरि विष्णु के 8वें अवतार श्रीकृष्ण के रूप में पूजा जाने लगा। साथ ही उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को भी पूजा जाने लगा। इसके पीछे भी एक कथा है।
 
5.सभी दिशाओं से रक्षा होती है इस क्षेत्र की : स्कंद पुराण के अनुसार पुरी एक दक्षिणवर्ती शंख की तरह है और यह 5 कोस यानी 16 किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। माना जाता है कि इसका लगभग 2 कोस क्षेत्र बंगाल की खाड़ी में डूब चुका है। इसका उदर है समुद्र की सुनहरी रेत जिसे महोदधी का पवित्र जल धोता रहता है। सिर वाला क्षेत्र पश्चिम दिशा में है जिसकी रक्षा महादेव करते हैं। शंख के दूसरे घेरे में शिव का दूसरा रूप ब्रह्म कपाल मोचन विराजमान है। माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा का एक सिर महादेव की हथेली से चिपक गया था और वह यहीं आकर गिरा था, तभी से यहां पर महादेव की ब्रह्म रूप में पूजा करते हैं। शंख के तीसरे वृत्त में मां विमला और नाभि स्थल में भगवान जगन्नाथ रथ सिंहासन पर विराजमान है। समुद्र की ओर से रामदूत हनुमानजी इस क्षेत्र की रक्षा करते हैं।
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6. मंदिर में अधूरी मूर्तियां : यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां पर श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा की अधूरी मूर्तियां विराजमान है और वह भी लकड़ी की। हर वर्ष मूर्तियां बदल दी जाती है। मूर्तियों के अधूरे बनने और लकड़ी के बनाने की पीछे एक लंबी कथा है जो राजा इंद्रद्युम और उनकी पत्नी गुंडीचा से जुड़ी हुई है।
 
7. हवा के विपरीत लहराता ध्वज : श्री जगन्नाथ मंदिर के ऊपर स्थापित लाल ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। ऐसा किस कारण होता है यह तो वैज्ञानिक ही बता सकते हैं लेकिन यह निश्‍चित ही आश्चर्यजनक बात है। प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा उल्टा चढ़कर बदला जाता है। ध्वज भी इतना भव्य है कि जब यह लहराता है तो इसे सब देखते ही रह जाते हैं। ध्वज पर शिव का चंद्र बना हुआ है।
 
8. गुंबद की छाया नहीं बनती : मंदिर के पास खड़े रहकर इसका गुंबद देख पाना असंभव है। मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है।
 
9. भारत का सबसे भव्य मंदिर : यह भारत का सबसे भव्य और ऊंचा मंदिर है। यह मंदिर 4 लाख वर्गफुट में क्षेत्र में फैला है और इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है।
 
10. चमत्कारिक सुदर्शन चक्र : पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा दिखेगा। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है। 
 
11. हवा की दिशा : सामान्य दिनों के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है। अधिकतर समुद्री तटों पर आमतौर पर हवा समुद्र से जमीन की ओर आती है, लेकिन यहां हवा जमीन से समुद्र की ओर जाती है।
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12. गुंबद के ऊपर नहीं उड़ते पक्षी : मंदिर के ऊपर गुंबद के आसपास अब तक कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं देखा गया। इसके ऊपर से विमान नहीं उड़ाया जा सकता। मंदिर के शिखर के पास पक्षी उड़ते नजर नहीं आते, जबकि देखा गया है कि भारत के अधिकतर मंदिरों के गुंबदों पर पक्षी बैठ जाते हैं या आसपास उड़ते हुए नजर आते हैं। हालांकि की यह भी कहा गया है कि जिस भी दिन ऐसी घटना घटेगी समझना अशुभ समय प्रारंभ हो गया है।
 
13. दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर : 500 रसोइए 300 सहयोगियों के साथ बनाते हैं भगवान जगन्नाथजी का प्रसाद। लगभग 20 लाख भक्त कर सकते हैं यहां भोजन। मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती। कहा जाता है कि मंदिर में प्रतिदिन प्रसाद 20 हजार लोगों के लिए ही बनाया जाता है लेकिन त्योहार वाले दिन 50 हजार लोगों के लिए बनाया जाता है लेकिन कहा जाता है कि यदि किसी दिन लाखों लोग भी आ जाए तो भी वह प्रसाद ग्रहण करके ही जाते हैं। 
 
14. अजीब तरीके से ही पकता है चावल : मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है अर्थात सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना पहले पक जाता है। है न चमत्कार!
 
15. समुद्र की ध्वनि : मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते। आप (मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें, तब आप इसे सुन सकते हैं। इसे शाम को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है।
 
16. बाहर की दुर्गंध भी नहीं आती भीतर : इसी तरह मंदिर के बाहर स्वर्ग द्वार है, जहां पर मोक्ष प्राप्ति के लिए शव जलाए जाते हैं लेकिन जब आप मंदिर से बाहर निकलेंगे तभी आपको लाशों के जलने की गंध महसूस होगी।
 
17. रूप बदलती मूर्ति : यहां श्रीकृष्ण को जगन्नाथ कहते हैं। जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा विराजमान हैं। तीनों की ये मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं। यहां प्रत्येक 12 साल में एक बार होता है प्रतिमा का नव कलेवर। मूर्तियां नई जरूर बनाई जाती हैं लेकिन आकार और रूप वही रहता है। कहा जाता है कि उन मूर्तियों की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं।
 
18. विश्‍व की सबसे बड़ी रथयात्रा : आषाढ़ माह में भगवान रथ पर सवार होकर अपनी मौसी रानी गुंडिचा के घर जाते हैं। यह रथयात्रा 5 किलो‍मीटर में फैले पुरुषोत्तम क्षेत्र में ही होती है। रानी गुंडिचा भगवान जगन्नाथ के परम भक्त राजा इंद्रदयुम्न की पत्नी थी इसीलिए रानी को भगवान जगन्नाथ की मौसी कहा जाता है। अपनी मौसी के घर भगवान 8 दिन रहते हैं। आषाढ़ शुक्ल दशमी को वापसी की यात्रा होती है। भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष है। देवी सुभद्रा का रथ दर्पदलन है और भाई बलभद्र का रक्ष तल ध्वज है। पुरी के गजपति महाराज सोने की झाड़ू बुहारते हैं जिसे छेरा पैररन कहते हैं।
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Jagannath Rath Yatra
19. हनुमानजी करते हैं जगन्नाथ की समुद्र से रक्षा : माना जाता है कि 3 बार समुद्र ने जगन्नाथजी के मंदिर को तोड़ दिया था। कहते हैं कि महाप्रभु जगन्नाथ ने वीर मारुति (हनुमानजी) को यहां समुद्र को नियंत्रित करने हेतु नियुक्त किया था, परंतु जब-तब हनुमान भी जगन्नाथ-बलभद्र एवं सुभद्रा के दर्शनों का लोभ संवरण नहीं कर पाते थे। वे प्रभु के दर्शन के लिए नगर में प्रवेश कर जाते थे, ऐसे में समुद्र भी उनके पीछे नगर में प्रवेश कर जाता था। केसरीनंदन हनुमानजी की इस आदत से परेशान होकर जगन्नाथ महाप्रभु ने हनुमानजी को यहां स्वर्ण बेड़ी से आबद्ध कर दिया। यहां जगन्नाथपुरी में ही सागर तट पर बेदी हनुमान का प्राचीन एवं प्रसिद्ध मंदिर है। भक्त लोग बेड़ी में जकड़े हनुमानजी के दर्शन करने के लिए आते हैं। 
 
20. हनुमानजी ने समुद्र की आवाज को भीतर जाने से रोक दिया : एक बार नारदजी ने हनुमानजी को बताया कि समुद्र की आवाज के कारण प्रभु मंदिर के भीतर सो नहीं पाते हैं। तब हनुमानजी ने क्रोधित होकर समुद्र को वहां से दूर हटने को कहा। इस पर समुद्र देवता ने प्रकट होकर कहा कि मेरी आवाज तो आपके पिता पवनदेव के कारण ही चारों दिशाओं में जाती है। आप उनसे विनति करें। तब हनुमानजी पवनदेव से इस आवाज को रोकने का कहते हैं। तब पवनदेव कहते हैं कि पुत्र यह संभव नहीं है परंतु तुम्हें एक उपाय बताता हूं कि तुम्हें मंदिर के आसपास ध्वनिरहित वायुकोशीय वृत या विवर्तन बनाना होगा। हनुमानजी समझ गए। तब हनुमानजी ने अपनी शक्ति से खुद को दो भागों में विभाजित किया और फिर वे वायु से भी तेज गति से मंदिर के आसपास चक्कर लगाने लगे। इससे वायु का ऐसा चक्र बना की समुद्र की ध्वनि मंदिर के भीतर ना जाकर मंदिर के आसपास ही घूमती रहती है और मंदिर में श्री जगन्नाथजी आराम से सोते रहते हैं।  
 
21. पांडवों ने किए थे यहां पर दर्शन : किंवदंतियों के अनुसार कहते हैं कि अज्ञातवास के दौरान द्रौपदी पांचों पांडव भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने गए थे। प्रभु जगन्नाथ के मंदिर के अंदर पांडवों का स्थान अब भी मौजूद है। ऐसा कहते हैं कि भगवान जगन्नाथ जब चंदन यात्रा करते हैं तो पांच पांडव उनके साथ नरेन्द्र सरोवर जाते हैं। आज भी श्रीमंदिर में 21 दिवसीय चंदन यात्रा का आयोजन होता है। ऐसे में श्रीमंदिर से 1 किमी. की दूरी पर मौजूद नरेन्द्र सरोवर तक यात्रा निकलती है।
 
22. स्वर्ण दान : महान सिख सम्राट महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर को प्रचुर मात्रा में स्वर्ण दान किया था, जो कि उनके द्वारा स्वर्ण मंदिर, अमृतसर को दिए गए स्वर्ण से कहीं अधिक था।
 
23. ईसा मसीह भी यहां आए थे प्रभु के दर्शन करने : कुछ किताबों में और जनश्रुतियों से यह पता चलता हैं कि ईसा मसीह सिल्क रूट से होते हुए जब कश्मीर आए थे तब पुन: बेथलेहम जाते वक्त उन्होंने भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए थे। आदिशंकराचार्य ने भी यहां की यात्रा की थी और यहां पर उन्होंने चार मठों में से एक गोवर्धन मठ की स्थापना की थी। 
 
24. गैर हिन्दू का प्रवेश निषेध : इस मंदिर में गैर-भारतीय धर्म के लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित है। माना जाता है कि ये प्रतिबंध कई विदेशियों द्वारा मंदिर और निकटवर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ और हमलों के कारण लगाए गए हैं। पूर्व में मंदिर को क्षति पहुंचाने के प्रयास किए जाते रहे हैं।
 
25. मंदिर के रहस्य : कहते हैं कि मंदिर के एक नहीं हजारों रहस्य है। यहां कई रहस्यमयी किताबें, ग्रंथों के साथ ही खजाने भी रखे हुए होने की बात कहीं जाती है। एक ऐसा भी समय था जबकि सैंकड़ों वर्षों के लिए मंदिर रेत में दब गया था और भविष्यवाणी है कि आने वाले समय में भी ऐसा होने वाला है। 

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