नई दिल्ली। सोशल मीडिया वेबसाइट फेसबुक का इस्तेमाल करने वालों की जानकारी चुराए जाने को लेकर जारी विवाद के बीच विशेषज्ञों ने स्मार्टफोन में तीसरे पक्ष यानी बाहरी एप से जुड़े जोखिमों के प्रति भी आगाह किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्मार्टफोन पर इस तरह के 'थर्ड पार्टी एप' को पहुंच के स्तर के बारे में सावधान रहने की जरूरत है, क्योंकि ऐसे एप से उपयोक्ताओं की संवेदनशील जानकारी साइबर अपराधियों तक पहुंच सकती है।
इन दिनों यह काफी चर्चा में है और विवाद खड़ा है कि 2016 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप के लिए काम कर रही फर्म केंब्रिज एनालिटिका ने 5 करोड़ फेसबुक उपयोक्ताओं से जुड़ी जानकारी उनकी सहमति के बिना हासिल की।
नेटवर्क इंटेलीजेंस के प्रमुख वैश्विक व्यापार अल्ताफ हाल्दे ने कहा कि उपयोक्ताओं को केवल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जानकारी की सुरक्षा को लेकर चिंतित नहीं होना चाहिए बल्कि उन्हें अपने स्मार्टफोन पर थर्ड पार्टी एप को दी जाने वाली पहुंच के प्रति भी आगाह रहना चाहिए। इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि अनेक गेम अपने उपयोक्ताओं से उनकी मित्र सूची तक पहुंच या पाठ्य संदेश मैसेज पढ़ने की अनुमति मांगते हैं। उन्होंने कहा कि किसी गेम एप को मेरी एड्रेस बुक का क्या करना है।
आमतौर पर लोग इस पर ध्यान नहीं देते लेकिन इसके काफी प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं। केस्परस्की लैब में महाप्रबंधक श्रेणिक भयानी ने कहा कि साइबर सुरक्षा के लिहाज से फेसबुक की यह घटना हम सभी के लिए एक सबक है। जब तक हम दुष्प्रभावों को नहीं देखते, हम किसी खतरे को भांप नहीं पाते।
अगर फेसबुक जैसी बड़ी कंपनी से डेटा चुराया जा सकता है तो हम कैसे सुनिश्चित करेंगे कि हमारे व्यक्तिगत डेटा का दुरुपयोग साइबर अपराधी नहीं कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि फेसबुक जैसी घटनाएं न तो पहली हैं और न ही यह आखिरी होगी। एक विशेषज्ञ ने कहा कि यह पहली बार नहीं हुआ है कि डेटा चुराया गया है और निश्चित रूप से यह आखिरी बार भी नहीं हो रहा है। अच्छी बात तो यह है कि सरकार व निजी कंपनियां अपने पास मौजूदा नागरिकों के डेटा की रक्षा को महत्ता दे रही हैं। (भाषा)