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जानिए अरब देश क्यों खौफ खाते हैं इसराइल से...

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मंगलवार, 4 जुलाई 2017 (08:51 IST)
इसराइल एक बहुत छोटा देश है जिसकी आबादी करीब 80 लाख यहूदियों की है, लेकिन इस छोटे से देश से कई इस्लामी देशों में बसे 150 करोड़ मुस्लिम क्यों खौफ खाते हैं? आतंकवादी संगठन आईएसआईएस का पूरे अरब देशों में आतंक है, वह बेरहमी से लोगों का कत्लेआम कर रहा है, लेकिन अब तक उसने इसराइल की तरफ एक गोली भी नहीं चलाई है, जबकि इसराइल, सीरिया का पड़ोसी देश है, एक भी इजराइल के नागरिक को छुआ भी नहीं गया, क्योंकि उनको पता है जहां उन्होंने इसराइल को थोड़ा भी छेड़ा, अगले ही पल या तो इसराइल की ओर से मिसाइल दाग दिया जाएगा या इसराइली सेना चढ़ाई कर देगी। हालाँकि इसराइल की इस आक्रामकता और कार्रवाई के कारण मानवाधिकार के सवाल भी उठते रहे हैं। इसराइल ने इसकी परवाह कम ही की है।

इसराइल का यह रुतबा ऐसे ही नहीं बना है। बात है इसराइल के बनने की, जब हिटलर से जान बचाकर यहूदी लोग इसराइल पहुंचे थे और इसराइल बनाया था, तब अरब के मुस्लिमों ने पहली बार इसराइल पर 1948 में हमला किया था। उस समय इसराइल बना ही था, उनके पास कोई बड़ी सेना या धन, गोला-बारूद नहीं था, परंतु फिर भी इसराइल ने अरब को 1948 में बड़ी आसानी से हरा दिया। तब से लेकर अब तक अरब देशों ने 6 बार इसराइल से युद्ध लड़ा है और इसराइल ने हर बार मुस्लिम देशों को हराया है।
 
इसी बात को अगर आंकड़ों की नजर से देखें तो 1948 से अब तक अरब-इसराइल युद्धों में इसराइल के 22000 सैनिक शहीद हुए हैं वहीं मुस्लिम देशों के 91000 से अधिक मारे गए हैं। इसराइल ऐसा देश है जो चारों ओर से मुस्लिम देशों से घिरा हुआ है फिर भी किसी मुस्लिम देश या आईएसआईएस या मुस्लिम आतंकवादी संगठनों की मजाल नहीं कि इसराइल को छेड़ सकें।
 
अगर यूं कहा जाए कि इसराइल, मुस्लिम देशों का काल है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। साथ ही इसराइल खुद पहले हमला नहीं करता, बस उसको कोई छेड़े तो इसराइल उसे छोड़ता नहीं है। इस तुलना में एक ये दिक्कत ज़रूर है कि इसराइली हमलों में कई बार आम नागरिक भी मारे गए हैं जिसमें बच्चे और महिलाएँ भी शामिल हैं। इसको लेकर इसराइल को अपनी ही सेना के ख़िलाफ़ जाँच तक बिठानी पड़ी है। बच्चों और महिलाओं के मारे जाने को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसराइल की आलोचना भी हुई है। 
 
दूसरी ओर भारत के हालिया चर्चित लक्ष्य्यभेदी हमले केवल आतंकी ठिकानों पर किए गए थे। यहाँ तक की पाकिस्तानी सैनिक भी तब मारे गए जब वो आतंकियों के बचाव में आगे आए। इसीलिए भारत की कार्रवाई तो दरअसल ज़्यादा सधी हुई और बेहतर मानी जाएगी। 
 
मोसाद और सेना का खौफ  : इसराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद, सेना का तो ऐसा खौफ है कि मोसाद के डर से किसी आतंकी संगठन के मुखिया, किसी मुस्लिम देश के नेता की औकात नहीं कि इसराइल की तरफ टेढ़ी आंख करके देखे। जर्मनी के म्यूनिख ओलिंपिक में जिहादी तत्वों ने इसराइल के 11 खिलाड़ियों की हत्या कर दी थी और वे जिहादी तत्व किसी मुस्लिम देश में जा छुपे थे, जिनकी संख्या सैकड़ों में थी, लेकिन इसराइल की मोसाद के 30 जवान उस मुस्लिम देश में घुसकर उन जिहादियों को मार आए थे और मोसाद का सिर्फ एक जवान शहीद हुआ था। 
 
एक बार एक मुस्लिम संगठन के लोगों ने कुछ इसराइली लोगों की हत्या कर दी, फिर सब फरार हो गए। सबसे अपना देश और नाम हुलिया बदल दिया। पर इसराइल की मोसाद इतनी खौफनाक है, उसके जासूसों ने 25 साल बाद उन कातिलों को दक्षिण अमेरिका के एक होटल में जाकर खत्म कर दिया।
 
भारत को इसराइल से यह सीखने की जरूरत है, अगर इसराइल की सी आक्रामकता 10 प्रतिशत भी भारत में आ जाए तो पाकिस्तान, चीन क्या हर जिहादी देश दुनिया के नक्शे से मिट जाए।
 
इसराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद दुनिया की सबसे शक्तिशाली खुफिया एजेंसी मानी जाती है और कहा जाता है कि ओसामा को पकड़ने के लिए अमेरिका ने भी मोसाद की मदद मांगी थी। इसराइल अपने ऊपर हमला करने वाले आतंकियों को चुन-चुनकर मारने के लिए मशहूर है फिर चाहे वो दुनिया के किसी भी देश में छिप जाएं।
 
रैथ ऑफ गॉड' ऑपरेशन :1972 के म्यूनिख ओलिंपिक खेलों के दौरान फिलीस्तीन और लेबनान के आतंकवादियों ने 11 इसराइली खिलाड़ियों की निर्मम हत्या कर दी थी। पूरी दुनिया इस हमले से सकते में आ गई थी। 
 
इस हमले के बाद जर्मनी सेना ने कार्रवाई करते हुए 5 आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया था, लेकिन 3 आतंकी भागने में कामयाब हो गए थे जिनमें से एक इस हमले का मास्टरमाइंड भी था। 
 
इसराइल अपने खिलाड़ियों की हत्या का बदला लेने के लिए तत्पर था और इस काम के लिए उसने अपनी खुफिया एजेंसी मोसाद को तैनात किया। मोसाद ने ' रैथ ऑफ गॉड' नाम से एक खुफिया ऑपरेशन चलाया और उन तीनों आतंकियों को ढूंढकर मार दिया।
 

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