Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

क्या फ्लाइंग ऑब्जेक्ट में एलियंस थे? क्या पृथ्वी के लिए खतरा बन सकते हैं Aliens?

क्या फ्लाइंग ऑब्जेक्ट में एलियंस थे? क्या पृथ्वी के लिए खतरा बन सकते हैं Aliens?
, सोमवार, 13 फ़रवरी 2023 (13:41 IST)
अमेरिका ने कनाडा बॉर्डर पर मिशिगन के आसमान में एक संदिग्ध फ्लाइंग ऑब्जेक्ट को मिसाइल से ढेर कर दिया है। एक तरफ इसे चीन की हरकत बताया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इस फ्लाइंग ऑब्जेक्ट को एलियंस यानी परग्रही जीवों से जोड़कर भी देखा जा रहा है। यूएस वायुसेना के जनरल ग्लेन वैनहर्क ने कहा है कि इसे गुब्बारा कहना ठीक नहीं है।
 
क्या यह ऑब्जेक्ट एलियंस का है? क्या पृथ्‍वी से परे भी ब्रह्मांड में जीवन है? क्या ये परग्रही पृथ्वी के लिए खतरा बन सकत हैं? ताजा घटना के बाद ऐसे ही कई सवाल लोगों के मन में कौंध रहे हैं। जांच के बाद ही खुलासा होगा कि आखिर यह चीज है क्या। आइए जानते हैं इस बारे में जर्मनी में रह रहे वरिष्ठ पत्रकार राम यादव क्या कहते हैं... 
 
एलियंस हमें वर्षों से देख रहे हैं : एलियंस हमें अब तक दिखाई पड़े हों या नहीं, अमेरिका में खगोल-भैतिकी की दो महिला वैज्ञानिकों का अपनी खोज में कहना है कि वे शायद वर्षों से हमें देख रहे हैं। स्टीफ़न हॉकिंग को अल्बर्ट आइंस्टीन जैसा ही एक महान वैज्ञानिक माना जाता है। मार्च 2018 में वे इस दुनिया से विदा हुए थे। उनका कहना था कि हमें पृथ्वी से परे किसी बाहरी दुनिया को अपने बारे में बताने वाले संदेश भेजने से परहेज़ करना चाहिए।
 
परग्रही हमें अपने लिए ख़तरा मान सकते हैं। दूसरी ओर, अमेरिकी संसद के आदेश पर वहां के रक्षा मंत्रालय और गुप्तचर सेवाओं द्वारा कुछ समय पहले एक ऐसी जांच-रिपोर्ट प्रकाशित की गई, जो एलियंस से जुड़े रहस्यमय 'अन-आइडेन्टिफ़ाइड फ्लायिंग ऑब्जेक्ट– UFO' का या 'अन-आईडेंटीफ़ाइड एरियल फ़ेनॉमिना- UAP' के होने का न तो पूरी तरह खंडन करती है और न मंडन।
 
उसी दौरान विज्ञान पत्रिका 'नेचर एस्ट्रॉनॉमी' में एक ऐसा शोधपत्र प्रकाशित हुआ था जिसका कहना है कि हमारी अपनी ही आकाशगंगा में 1,715 ऐसे सौरमंडल हैं जिनके कुछ ग्रहों पर तकनीकी बुद्धिमत्ता वाले एलियंस भी हो सकते हैं। उनके पास यदि हमारे जैसे या हमसे बेहतर टेलीस्कोप यानी दूरदर्शी हुए तो हो सकता है कि वे पिछले 5,000 वर्षों से हमें देख रहे हों। इस प्रकार के ग्रहों वाले सौरमंडलों की संख्या अगले 5,000 वर्षों के दौरान बढ़कर 2,034 हो जाएगी।
 
शोधपत्र की लेखिकाएं हैं- अमेरिका में खगोल-भौतिकी की 2 महिला वैज्ञानिक- कॉर्नेल यूनिवर्सिटी की जर्मन नाम वाली प्रोफ़ेसर लीज़ा काल्टेनएगर और 'अमेरिकन म्यूज़ियम ऑफ़ नेचुरल हिस्ट्री' की जैक्लीन फ़ेहर्टी। उनका कहना है, 'ब्रह्मांड में जीवन की खोज के लिए ऐसे ग्रह हमें सबसे उपयुक्त लगे, जो हमारी पृथ्वी पर से देखने पर अपने सूर्यों के सामने से नियमित रूप से गुज़रा करते हैं।' हमारी आकाशगंगा में हमसे क़रीब 300 प्रकाशवर्ष तक की दूरी के दायरे में उन्हें 3,400 से अधिक ऐसे ग्रह मिले। लीज़ा काल्टेनएगर का कहना है कि जिन्हें हम 'एलियंस' कहते हैं, उनके लिए हम भी किसी दूसरे ग्रह पर के 'एलियंस' हैं।
 
क्या है गाइया? : अमेरिकी महिला वैज्ञानिकों की यह खोज संभव नहीं हो पाई होती, यदि यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ESA की अंतरिक्ष वेधशाला 'गाइया' (Gaia), 2014 से हमारी आकाशगंगा के तारों का अब तक का सबसे सटीक त्रिआयामी (थ्री-डाइमेंशनल) नक्शा न बना रही होती। 'गाइया' नाम 'ग्लोबल एस्ट्रोमेट्रिकल इन्टरफ़ेरोमीटर फ़ॉर एस्ट्रोफ़िज़िक्स' का प्रथमाक्षर संक्षेप है। यह नाम इसलिए भी चुना गया कि ग्रीस यानी यूनान की पौराणिक कथाओं में धरती माता को एक देवी माना जाता था और उसे 'गाइया' कहा जाता था। 'गाइया' ने हमारी आकाशगंगा के 1 अरब से भी अधिक तारों की सही अवस्थिति को पहले कभी की अपेक्षा 200 गुना अधिक सटीकता के साथ मापा है और अब तक 10 हज़ार गुना अधिक चीज़ों की जांच-परख की है। दोनों अमेरिकी महिला वैज्ञानिकों ने अपनी खोज के लिए 'गाइया' से मिले डेटा का भरपूर लाभ उठाया।
 
अंतरिक्ष में कुछ भी स्थिर नहीं है। सब कुछ गतिमान है। अत: इन दोनों महिला वैज्ञानिकों ने 'गाइया' वाले त्रिआयामी नक्शों और तारों की गतिशीलता आदि के आंकड़ों के आधार पर तय किया कि वे उन तारों और उनके ग्रहों पर अपना अध्ययन केंद्रित करेंगी, जो हमसे से 300 प्रकाशवर्ष तक की दूरी के दायरे में पड़ते हैं। कम्प्यूटर मॉडलों के द्वारा उन्होंने गणना की कि अतीत में कब, कौन-सा तारा हमारी पृथ्वी से दिखाई पड़ने वाले इस दायरे में आया होगा और यही बात भविष्य में कब होगी? वह समय, जब कोई तारा अपने ग्रहों के साथ हमारी पृथ्वी पर से दिखाई पड़ सकता है, साथ ही वह समय भी होता है, जब उसके किसी आबाद ग्रह पर के बुद्धिमान निवासी भी हमारी पृथ्वी को देख सकते हैं। यह एक ऐसा संक्रमणकाल होता है, जब दोनों गतिशील पक्ष एक-दूसरे से कई प्रकाशवर्ष दूर होते हुए भी लगभग एक सीध में होते हैं।
 
हमारे सौरमंडल से बाहर अब तक जिन अनेक सौरमंडलों और उनके ग्रहों की खोज हुई है, वह इसी प्रकार हुई है। जब भी किसी तारे के अपने कुछ ग्रह भी होंगे, तो वे उस तारे की परिक्रमा भी करेंगे। परिक्रमा करते हुए वे कभी न कभी उस तारे और हमारी पृथ्वी के बीच ठीक उसी तरह आ जाएंगे, जिस तरह पृथ्वी और सूर्य के बीच चंद्रमा के आ जाने पर हम सूर्यग्रहण देखते हैं। सूर्यग्रहण के समान ही उस दूर के तारे की हम तक पहुंचती चमक भी कुछ समय के लिए मद्धिम पड़ जाएगी या ग़ायब हो जाएगी।

इस तरीके से न केवल यही पता चलता है कि उस तारे के अपने ग्रह भी हैं, बल्कि यह भी जाना जा सकता है कि किस ग्रह के पास अपना वायुमंडल भी है। उस वायुमंडल में किस तरह की गैसें हैं। यदि उन गैसों में ऑक्सीजन या मीथेन गैस के भी संकेत मिलते हैं, तो वहां किसी प्रकार का जीवन भी हो सकता है। उस ग्रह के और भी सटीक अवलोकनों से जाना जा सकता है कि वह कितना बड़ा है। अपने तारे से कितनी दूरी पर है। उस पर तापमान कितना होगा। पानी भी हो सकता है या नहीं इत्यादि, इत्यादि।
 
7 ग्रह ठोस जमीन वाले : दोनों महिला वैज्ञानिकों, लीज़ा काल्टेनएगर और जैक्लीन फ़ेहर्टी ने अपने शोधपत्र में लिखा है कि उन्होंने जिन तारों का अध्ययन किया, उनमें से 7 ऐसे हैं, जो संभवत: ठोस ज़मीन वाले हैं, जिस पर तरल पानी भी हो सकता है। वहां की परिस्थितियां जीवन होने के अनुकूल प्रतीत होती हैं। उनमें से एक का नाम Ross128b है।

वह कन्या राशि में पड़ता है, हमारी पृथ्वी से क़रीब दो गुना बड़ा है और केवल 11 प्रकाशवर्ष दूर है। वह क़रीब 2,000 वर्षों तक एक ऐसे संक्रमण क्षेत्र में था, जो हमारी पृथ्वी के सामने पड़ता था। यानी पृथ्वी और Ross128b लगभग एक सीध में थे। वहां यदि एलियंस रहे हों तो वे ईसा-पूर्व की 10वीं सदी से लेकर ईसा-पश्चात की 10वीं सदी के दौरान हमारी पृथ्वी पर की गतिविधियों को जान सकते थे। यह वह समय था, जब यूरोप में सिकंदर के नाम की धूम थी और भारत में बौद्ध धर्म ने जन्म ले लिया था।
 
ट्रैपिस्ट-1 (TRAPPIST-1) नाम के एक दूसरे तारे के पास तो पृथ्वी जैसे आकार वाले 7 ऐसे ग्रह हैं जिनमें से 4 उससे ठीक ऐसी दूरी पर रहकर उसकी परिक्रमा कर रहे हैं, जो वहां जीवन होने के काफ़ी उपयुक्त है। 45 प्रकाशवर्ष दूर का यह तारा अपने ग्रहों के साथ आज से क़रीब 1600 वर्ष बाद हमारी पृथ्वी की सीध में होगा। स्पष्ट है कि वहां जीवन की खोज के लिए फ़िलहाल कुछ नहीं किया जा सकता। वहां के किसी ग्रह पर यदि एलियंस हैं, तो वे भी हमें अभी देख नहीं सकते। वे यदि तकनीकी दृष्टि से उतने ही विकसित हैं, जितनी इस समय हमारी सभ्यता है तो वे हमारे रेडियो और टेलीविज़न प्रसारण देख-सुन सकते हैं।
 
दोनों महिला वैज्ञानिकों ने ऐसे सौरमंडलों की संख्या 46 पाई है, जहां हमारे रेडियो प्रसारण पहुंच रहे होंगे। वहां 29 ऐसे ग्रह हो सकते हैं, जहां उन्हें सुन सकने की तकनीकी सभ्यता भी हो। रेडियो और टेलीविज़न प्रसारण की विद्युतचुंबकीय (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक) तरंगें प्रकाश की गति से अंतरिक्ष में फैलती हैं। पृथ्वी पर क़रीब 100 वर्षों से रेडियो प्रसारण और 70 वर्षों से टेलीविज़न प्रसारण हो रहे हैं। ट्रैपिस्ट-1 के किसी ग्रह पर के एलियंस इस समय यदि हमारे रेडियो-टीवी प्रसाण देख-सुन रहे होंगे तो वे प्रसारण कम से कम 45 साल पुराने होंगे।
 
लीज़ा काल्टेनएगर और जैक्लीन फ़ेहर्टी की खोज कहती है कि हमारी आकाशगंगा में हमसे 300 प्रकाशवर्ष दूर के दायरे में क़रीब 1,400 ऐसे बाह्य ग्रह हैं, जहां यदि हमारे लगभग बराबर की तकनीकी सभ्यता वाले एलियंस ही हुए तो वे भी हमें अभी ही देख सकते हैं या देख रहे होंगे। इसका अर्थ यह भी है कि अन्य ग्रहों पर जीवन की अपनी तलाश में हमें इन्हीं ग्रहों पर ध्यान देना चाहिए, न कि अंतरिक्ष में हर जगह हाथ-पैर मारना चाहिए।

इस खोज का एक दूसरा अर्थ यह भी है कि कोई दूसरा ग्रह जितने कम समय तक पृथ्वी की सीध में दिख रहा होगा, वह उतना ही हमारे निकट होगा। जो ग्रह जितने अधिक समय तक दिखेगा, वह उतना ही अधिक दूर होगा। तब भी समय का यह अंतराल कुछ सौ वर्षों से लेकर कुछेक हज़ार वर्षों तक का होगा। एक-दूसरे से संपर्क लिए पर्याप्त होगा।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

विश्व रेडियो दिवस : अमरेली के सेवानिवृत्त शिक्षक सुलेमान दल का घर है 'रेडियो संग्रहालय'