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एआई सिस्टम पता लगा लेगा कि आप क्या सोच रहे हैं?

एआई सिस्टम पता लगा लेगा कि आप क्या सोच रहे हैं?
, शनिवार, 3 मार्च 2018 (14:05 IST)
नई दिल्ली। जापान के कंप्यूटर वैज्ञानिकों के समूह ने एक नया एआई (आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस) सिस्टम विकसित किया है। कहा जा रहा है कि यह सिस्टम इंसान के विचारों को जानने में सक्षम है। यह इंसान के विचारों को विजुअलाइज कर सकता है। एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जो आपके विचारों को तस्वीरों में पेश कर सकती है। 
 
कोई और आपके विचारों को पढ़ ले, यह बात हमेशा डरावनी लगती है। लेकिन, अब कल्पना कीजिए जब टेक्नोलॉजी ऐसा करेगी। आप जो भी सोचेंगे, वह उसे पढ़कर तस्वीरों में बयां कर देगी। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि तब दुनिया में क्या-क्या हो सकता है?
 
कैसे होगा इस तकनीक का क्रियान्वयन : यह टेक्नोलॉजी (तकनीक) इंसान के मस्तिष्क को स्कैन कर सकती है। वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क को स्कैन करने के लिए पारंपरिक एमआरआई स्कैन के आगे एफएमआरआई (fMRI) या फंक्शनल एमआरआई का इस्तेमाल किया। विदित हो कि एमआरआई जहां सिर्फ मस्तिष्क की गतिविधियों को मॉनिटर ही कर सकती है लेकिन इसके विपरीत एफएमआरआई मस्तिष्क में ब्लड फ्लो को ट्रैक कर सकती है। यहां तक कि मस्तिष्क की नसों में भी झांक सकती है। यह प्रणाली यह निर्णय लेने के लिए स्कैन से प्राप्त किए गए डेटा का उपयोग करती है, जो विषय सोच रहा है। 
 
यह सिस्टम स्कैनिंग से प्राप्त डाटा का इस्तेमाल यह निर्णय लेने में करता है कि क्या सोचा जा रहा है। मिले हुए डाटा को इमेज फॉरमेट में कंवर्ट किया जाता है। वास्तविक डिकोडिंग करने वाले एक जटिल न्यूरल नेटवर्क के जरिए डेटा भेजकर यह संभव होता है। 
 
लेकिन यह टेक्नोलॉजी चलते-फिरते बस यूं ही सबकुछ नहीं समझ सकती। इसके लिए सबसे पहले मशीन को इस चीज के लिए प्रशिक्षित करना होगा कि इंसान का मस्तिष्क किस तरह काम करता है। इसे कैसे रक्त के प्रवाह को ट्रैक करने में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। 
 
जब एक बार मशीन इस प्रक्रिया को पकड़ लेती है, तो उससे मिलती-जुलती तस्वीरें पेश करना शुरू कर देती है, जिसके बारे में सब्जेक्ट सोच रहा था। 
 
यह केवल डीएनएन या डीप न्यूरल नेटवर्क की कई लेयर्स के जरिए ही ऐसा मुमकिन होगा। डीएनएन को जब इमेज की प्रोसेसिंग का टास्क दिया जाता है, डीजीएन या डीप जनरेटर नेटवर्क का इस्तेमाल ज्यादा स्पष्ट और सटीक तस्वीर बनाने में किया जाता है। डीजीएन के साथ और इसके बिना तस्वीरें क्रिएट करने में एक बड़ा अंतर होता है। 
 
परीक्षण की विधि में दो स्टेप होते हैं। पहला, सब्जेक्ट को एक तस्वीर दिखाई जाती है और उसके बाद एआई उन तस्वीरों को रि-क्रिएट करता है। अगले पार्ट में सब्जेक्ट के दिमाग में तस्वीरों को विजुलाइज किया जाता है। इसके बाद एआई सिस्टम रियल टाइम में इमेज को रिक्रिएट करता है।
 
इस तकनीक के भविष्य के जो प्रयोग हैं, वह काफी विस्तृत तो है हीं, लेकिन कई मामलों में काफी डरावने भी हैं। जरा कल्पना करके देखिए कि आप जो सोच रहे हैं, आपके जो विचार हैं वे उजागर होने लगें। बेशक इसके जरिए मशीन वायरलेस तरीके से मस्तिष्क की तरंग और गतिविधियों को रिकॉर्ड भी कर सकेंगी। हालांकि फिलहाल यह संभव नहीं है। 
 
लेकिन संभव है कि वक्त के साथ इसे इस तरह विकसित किया जाए कि यह दूर से ही हमारे विचारों का पता लगा ले। आने वाले सालों में इमेजिंग टेक्नोलॉजी भी ज्यादा सटीक होने वाली है। हालांकि, इस सिस्टम की उपलब्धियों को नजरअंदाज करना मुश्किल है। 
 
इसका उद्देश्य लोगों की मदद करना ही है। उस दुनिया की कल्पना की जा सकती है जब अपराधी और क्रिमिनल्स को उनकी योजनाओं के बारे में सोचते वक्त स्कैन किया जा सकेगा। फिर भी देखना बाकी है कि यह टेक्नोलॉजी कैसे बदलाव लाती है।

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