End of Solar System: ब्रह्मांड की खोज-ख़बर रखने वाले खगोलविद पाते हैं कि वहां मंदाकिनियों (गैलेक्सियों) का अपस में टकराना और ग्रहों-नक्षत्रों का अंत हो जाना सामान्य बातें हैं। ऐसा ही कभी हमारे सौरमंडल के साथ भी होगा।
हमारा सूर्य आग के एक विराट गोले की तरह धधकता हुआ एक तारा है और हमारी पृथ्वी उसकी परिक्रमा कर रहे आठ ग्रहों में से एक ग्रह है। सूर्य, उसके ग्रहों और ग्रहों के सभी उपग्रहों वाले मिले-जुले परिवार को सौरमंडल कहा जाता है। सूर्य ही इस सौरमंडल का हृदय-सम्राट है। वही हमें रोशनी, गर्मी और जीवन देता है। पर क्या यह सब हमेशा ऐसे ही चलता रहेगा? या कभी इसका अंत भी होगा? प्रकृति का नियम तो यही है कि इस समय जो कुछ भी है, वह कभी न कभी नहीं रहेगा!
हम स्वयं भी देख रहे हैं कि पृथ्वी पर तापमान लगातार बढ़ रहा है। वैज्ञानिक पाते हैं कि अपने सौरमंडल को इकठ्ठा रखने वाला 5 अरब 57 करोड़ वर्ष पुराना हमारा सूर्य भी समय के साथ बदल रहा है। पृथ्वी सहित उसके सभी ग्रह भी बदलते रहे हैं, आगे भी बदलते रहेंगे। अनुमान है कि 7-8 अरब वर्ष बाद हमारा सौरमंडल नहीं रह जाएगा। ब्रह्मांड के अनगिनत तारकमंडलों के साथ भी यही हुआ है और भविष्य में भी होता रहेगा।
सूर्य जैसे दूसरे तारे बताते हैं सूर्य का भविष्य : 2013 में सूर्य जैसा ही एक तारा कोरोज़ोल-1 देखा गया। मोनोज़ेयोस नाम के तारकमंडल में स्थित इस तारे का द्रव्यमान भी ठीक वही है, जो हमारे सूर्य का है। लेकिन, दोनों के बीच एक बहुत महत्वपूर्ण अंतर भी मिला : कोरोज़ोल-1 में क्षारीय धातुवर्ग के लीथियम की मात्रा बहुत कम पाई गई। इसका अर्थ यह था कि हमारे सूर्य से वह कई अरब वर्ष पुराना है। सूर्य के जैसे ही, किंतु उससे कई अरब वर्ष पुराने तारे को जानने-समझने में दिलचस्पी का अर्थ यही है कि उसकी वर्तमान दशा हमारे सूर्यदेव का भविष्य बाताती है।
कोई तारा जितना अधिक पुराना होता है, उतना ही अधिक विकिरण अंतरिक्ष में उछाल चुका होता है। हर तारे के भीतर बहुत ऊंचे तापमान पर हाइड्रोजन के नाभिकों के संलयन से, यानी उनके आपस में जुड़कर एकाकार होने से, हीलियम बनता रहता है। इससे एक तरफ़ तो तारे को फूलना चाहिए, पर दूसरी तरफ़ उसके भीतर का गुरुत्वाकर्षण बल सब कुछ अपने गुरुत्वकेंद्र की तरफ खींचते हुए उसे फूलने नहीं देता। फैलाव और खिंचाव के बीच की यह निरंतर रस्साक़शी किसी तारे को, और हमारे मामले में हमारे सूर्य को, कुल मिलाकर स्थिरता प्रदान करती है।
सूर्य का भीतरी संतुलन डगमागाने लगा है : साढ़े चार अरब वर्षों से हमारे सूर्य के भीतर यह संतुलन बना हुआ था। लेकिन समय के साथ यह संतुलन डगमागाने लगा है। अपने भीतर का हाइड्रोजन जला कर सूर्य प्रतिसेकंड – हाइड्रोजन की अपेक्षा अधिक परमाणु भार वाला – 6 अरब टन हीलियम पैदा कर रहा है।
इससे सूर्य के भीतर की नाभिकीय क्रिया में हाइड्रोजन की खपत और खपत के बढ़ने से मुक्त हो रही ऊर्जा की मात्रा बढ़ रही है। परिणाम यह होगा कि हर एक अरब वर्ष बीतने के साथ सूर्य की चमक 10 प्रतिशत बढ़ती जाएगी। यानी, सूर्य की बढ़ती हुई आयु के साथ-साथ उसका तथा पूरे सौरमंडल का तापमान भी बढ़ता जाएगा। निश्चित है कि इसके नतीजे बहुत ही नाटकीय होंगे। इस समय सूर्य का तपामान 6045 डिग्री सेल्सियस है।
हमारे सौरमंडल में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है, जिस पर जीवन होने और पनपने लायक सबसे अनुकूल परिस्थितियां हैं। लेकिन, सूर्य से आ रही गर्मी के बढ़ने से पृथ्वी पर रहने-बसने लायक जगह कम होती जाएगी। अमेरिका की खगोलविद प्रोफ़ेसर लिन रोटचाइल्ड का कहना हैः 'कोई दो अरब वर्ष बाद हमारी पृथ्वी की दशा वैसी ही होगी, जैसी शुक्र ग्रह की आज है। दोनों एक-जैसी सामग्रियों के बने हैं। लगभग एक-जैसे बड़े हैं। अंतर इतना ही है कि पृथ्वी की अपेक्षा शुक्र ग्रह सूर्य के अधिक निकट है। शुक्र की ऊपरी सतह पूरे सौरमंडल में सबसे अधिक विकृत है।'
शुक्र ग्रह पर तापमान 497 डिग्री : शुक्र ग्रह पर हवाएं 500 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से दौड़ती हैं। हमारी पृथ्वी पर सबसे भयंकर तूफ़ानों की गति भी, इस समय, अधिक से अधिक 200 किलोमीटर के आस-पास होती है। तब भी तूफ़ान कितने प्रलयंकारी होते हैं, इसे हम भलीभांति जानते हैं। शुक्र ग्रह पर तापमान भी सब कुछ जला देने वाले 497 डिग्री सेल्सियस के बराबर है। आश्चर्य की बात यह है बुध ग्रह, सूर्य के और अधिक निकट है, पर उसका तापमान शुक्र ग्रह से कम है!
अप्रैल 2006 में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी 'ईएसए' (एसा) का 'वीनस एक्सप्रेस' नाम का एक अन्वेषण यान शुक्र ग्रह की परिक्रमा-कक्षा में पहुंचा। उसने पाया कि शुक्र ग्रह बहुत ही घने बादलों की 20 किलोमीटर मोटी एक परत से ढका हुआ है। इन बादलों में हाइड्रोजन के ही एक भारी आइसोटोप (समस्थानिक) ड्यूटेरिम की मात्रा बहुत अधिक है।
इससे पता चलता है कि शुक्र ग्रह पर अतीत में कभी पानी भी था। यानी, शुक्र ग्रह अतीत में कभी एक दूसरी ही दुनिया हुआ करता था। वहां तरल पानी था। ठीक-ठाक वायुमंडल और वायुमंडलीय दबाव था और संभवतः किसी न किसी रूप में जीवन भी था। दूसरे शब्दों में, शुक्र ग्रह अतीत में कभी एक ऐसी स्थिति में था, जो किसी ग्रह पर जीवन पनपने के उपयुक्त कहलाती है।
किंतु, कोई तीन अरब वर्ष पूर्व, सूर्य की चमक और गर्मी बढ़ जाने से शुक्र ग्रह पर का पानी भाप बनकर उड़ने लगा। सभी जानते हैं कि जलवाष्प, यानी भाप, एक तापमानवर्धक गैस है। अतः किसी कांचघर (ग्रीन हाउस) की तरह शुक्र ग्रह का तापमान, समय के साथ लगातार बढ़ता ही गया। आज पूरे सौरमंडल में सबसे अधिक तापमान वाला ग्रह वही है।
बुध ग्रह सूर्य से और अधिक निकट होते हुए भी शुक्र ग्रह जितना इसलिए गरम नहीं है, क्योंकि उसके पास न तो अपना कोई वायुमंडल है और न वहां पानी था। पृथ्वी पर ये दोनों चीज़ें हैं। सूर्य की बढ़ती हुई धूप से हमारे सागरों-महासागरों का पानी यदि सदा भाप बनकर उड़ता रहा, तो इसके विनाशकारी परिणाम उससे कहीं अधिक भयंकर होंगे, जितने हम मनुष्यों की विभिन्न गतिविधियों के कारण बढ़ने वाले भावी तापमान से कभी हो सकते हैं। शुक्र ग्रह इसे समझने के लिए एक अच्छा मॉडल है।
तीन अरब वर्षों में पृथ्वी पर से जीवन लुप्त : वैज्ञानिकों का अनुमान है कि चिलचिलाती धूप और तापमानवर्धक गैसों के संहारक प्रभाव से, तीन अरब वर्षों से भी कम समय में, पृथ्वी पर हर प्रकार का जीवन लुप्त हो जाएगा। तीन अरब वर्ष हालांकि एक बहुत लंबा समय भी है। मनुष्य एक बुद्धिमान प्राणी है। पिछले 20-30 हज़ार वर्षों में ही यदि वह गुफ़ाओं में रहने और शिकार करने को भुलाकर आज चंद्रमा और मंगल पर जाने और वहां बस्तियां बसाने के सक्षम हो गया है, तो वह पृथ्वी पर अभी एक लंबे समय तक रहने-जीने के तकनीकी उपाय भी ज़रूर ढूंढ निकालेगा।
हम मनुष्यों के पास तकनीक है, जो अन्य जीव-जंतुओं के पास नहीं है। दूर भविष्य में पृथ्वी को यदि त्यागना ही पड़ा, तो मनुष्य किसी दूसरे ग्रह-उपग्रह पर या किसी दूसरे सौरमंडल में जा कर वहां रहने-बसने के उपक्रम भी ज़रूर करेगा। अमेरिका की प्रोफ़ेसर लिन रोटचाइल्ड मानती हैं कि जब पृथ्वी पर का तापमान रहने लायक नहीं रह जाएगा, तब सूर्य की उसी गर्मी से मंगल का तापमान बढ़ते हुए हमारे रहने के काफ़ी अनुकूल बन जाएगा। वहां ऑक्सीजन के अभाव और ख़तरनाक सौर-विकिरण के दुष्प्रभाव से निपटने के उपाय भी मिल ही जाएंगे, हालांकि मंगल पर भी मनुष्य बहुत लंबे समय तक रह नहीं सकेगा।
सूर्य के भीतर मचेगी भारी उथल-पुथल : वैज्ञानिकों ने हिसाब लगाया है कि हमारे सूर्य की आयु जब क़रीब साढ़े आठ अरब वर्ष हो जाएगी, तब उसके भीतर भारी उथल-पुथल मचेगी। साफ़ रातों में वैज्ञानिक इस उथल-पुथल को ऐसे कई तारों में देखते हैं, जो अपने जीवनकाल के इस नाटकीय चरण से गुज़र रहे हैं। लाल रंग के इन तारों को 'रेड जायन्ट' (लाल दैत्य) कहा जाता है। कुछेक 'रेड जायन्ट' हमारे सूर्य से भी दसियों लाख गुना दैत्याकार हैं। हमारा सूर्य भी, साढ़े आठ अरब वर्ष बाद, किसी गुब्बारे की तरह फूल कर किसी लाल दैत्य जैसा हो जाएगा।
'रेड जायन्ट' तारों का अध्ययन अपने सौरमंडल के भविष्य में झांकने के समान है। हमारे सूर्य का लाल दैत्य के रूप में कायापलट, उसके भीतर बहुत गहराई में उस जगह शुरू होगा, जहां वह सबसे अधिक गरम है। सूर्य की संपूर्ण द्रव्यराशि के केवल दो प्रतिशत के बराब का उसका नाभिकीय क्रोड़ (कोर) एक ऐसी केंद्रीय भट्ठी है, जहां हाइड्रोजन जलता है।
फ़िलहाल ऐसा माना जा रहा है कि सूर्य का यह क्रोड़ अगले पांच अरब वर्षों तक वैसा ही रहेगा, जैसा इस समय है। यानी तब तक सूर्य के क्रोड़ में गुरुवाकर्षण वाले खिंचाव और उससे उलटी दिशा वाले गैसीय दबाव के बीच संतुलन बना रहेगा। लेकिन एक ऐसा भी समय आएगा, जब क्रोड़ के भीतर का हाइड्रोजन ईंधन खप जाएगा। और तब सूर्य का क्रोड़ गुरुवाकर्षण बल के आगे टिक नहीं पाएगा। वह सिकुड़ने-पिचकने लगेगा।
सूर्य गुब्बारे की तरह फूलने लगेगा : वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा होने पर क्रोड़ को घेरे हुए हाइड्रोजन का आवरण पिघलने लगेगा। इससे सबसे पहले यह होगा कि सूर्य को पहले की अपेक्षा कहीं अधिक ज्वलनशील ईंधन मिलने लगेगा। तब सूर्य के भीतर जो बढ़ी हुई प्रचंड गर्मी पैदा होगी, उसे गुरुत्वाकर्षण शक्ति बांध नहीं पाएगी। सूर्य किसी गुब्बारे की तरह फूलने लगेगा।
अनुमान है कि आज का जीवनदायी सूर्य, कोई पांच अरब वर्षों में, आग के एक विराट गोले जैसा जीवनग्रासी लाल दैत्य बन जाएगा। उसका आकार बहुत बढ़ जाने से सौरमंडल के ग्रहों और उसके बीच की दूरी बहुत घट जाएगी। इससे सभी ग्रहों पर तापमान बढ़ेगा। पृथ्वी तब रहने-जीने लायक कतई नहीं रह जायेगी। किंतु सूर्य से पृथ्वी की अपेक्षा और अधिक दूरी पर के इस समय के बहुत ही ठंडे ग्रहों का तापमान बढ़ते रहने से, वहां रहने-जीने की नई संभावनाएं उभर सकती हैं।
गुरु (बृहस्पति/ ज्यूपिटर) एवं शनि बहुत बड़े और गैसीय ग्रह होने के कारण रहने-बसने लायक तो नहीं होंगे, पर उनके कुछेक उपग्रह इस लायक बन सकते हैं। अनुमान है कि गुरु का रंग शायद बदलकर गहरा नीला हो जाएगा। शनि अपने बर्फीले वलय (रिंग) खो बैठेगा। सौरमंडल के सबसे बाहरी ग्रह यूरेनस, नेप्चून और प्लूटो, जो इस समय बर्फ की कठोर चट्टानों जैसे अत्यंत ठंडे हैं, हो सकता है कि तब तक मनुष्यों के रहने लायक हो जाएं।
सू्र्य का आकार 250 गुना बड़ा हो जाएगा : अंतरिक्ष के कुछ अवलोकन दिखाते हैं कि लाल दैत्य बन गए तारे अपने निकट के ग्रहों को निगल भी जाते हैं। हमारे सौरमंडल में हो सकता है कि गुब्बारे की तरह फूल रहा सूर्य बुध, शुक्र और शायद पृथ्वी को भी निगल जाए। सूर्य जब तक शुक्र ग्रह को निगलेगा, पृथ्वी पर के सारे सागर-महसागर उसकी गर्मी से तब तक सूख चुके होंगे।
अमेरिकी खगोलविद रॉबर्ट स्मिथ ने 2001 में पता लगाना शुरू किया कि सूर्य का आखिर कितना विस्तार होगा। उनकी एक गणना के अनुसार, सूर्य जब लाल दैत्य बन गया होगा, तब उसका आकार, उसके इस समय के आकार से 250 गुना बड़ा हो चुका होगा। हमारी पृथ्वी, सूर्य के इस समय के आकार से 215 गुनी के बराबर दूरी पर रहकर उसकी परिक्रमा कर रही है। यानी, संभावना यही है कि सूर्य हमारी प्यारी धरती मां को पहले सुखा-जला डालेगा और फिर डकार भी जाएगा।
डॉ. रॉबर्ट स्मिथ ने किंतु यह भी पाया कि हमारी पृथ्वी का भाग्य सौर-आंधियों से भी जुड़ा है। सौर-आंधियां सूर्य द्वारा उछाले गए विद्युत आवेशधारी कणों की बनी होती हैं। हमें वे दिखाई नहीं पड़तीं, पर उनका असर देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, उनके धक्के के कारण धूमकेतुओं (कॉमेट) की पूंछ हमेशा सूर्य से परे जाती दिखाई पड़ती है।
सौर-आंधियां स्वयं सूर्य को भी इस दृष्टि से प्रभावित करती हैं कि उनके आवेशधारी कणों के रूप में सूर्य की भीतरी द्रव्यराशि भी हर बार कुछ न कुछ कम होती जाती है। द्रव्यराशि घटने से सूर्य का गुरत्वाकर्षण बल भी हर बार कुछ न कुछ कम होता जाएगा। गुरुत्वाकर्षण बल क्षीण होने के अनुपात में, सूर्य की परिक्रमा कर रहे सभी ग्रहों की परिक्रमा-कक्षा लगातार चौड़ी होने से, उनके तथा सूर्य के बीच की दूरी लगातार बढ़ती जाएगी।
सूर्य के ग्रहों की दूरियां बदलेंगी : डॉ. रॉबर्ट स्मिथ ने इन तथ्यों के आधार पर एक दूसरी गणना भी की और पाया कि लाल दैत्य बनने तक सूर्य अपना 20 प्रतिशत द्रव्यमान खो चुका होगा। उनकी इस दूसरी गणना के अनुसार, मंगल ग्रह तब तक वहां पहुंच चुका होगा, जहां इस समय क्षुद्रग्रहों (एस्टेरॉइड) का जमघट है, और हमारी पृथ्वी वहां होगी, जहां इस समय मंगल ग्रह सूर्य की परिक्रमा करता है। डॉ. स्मिथ का कहना है कि सूर्य जब पृथ्वी से कोई एक करोड़ 60 लाख किलोमीटर दूर होगा, तब उसका गुब्बारे की तरह फूलना थम जाएगा। यानी पृथ्वी, सूर्य द्वारा निगले जाने से तब बच जाएगी, भले ही पूरी तरह उजाड़ और निर्जन हो चुकी होगी।
किंतु, जल्द ही पता चला कि एक और चीज़ है, जिस पर वैज्ञानिकों का ध्यान नहीं गया था– यह बात कि पृथ्वी, सूर्य की दिशा में खिसक भी सकती है। देखा गया है कि विशालकाय लाल तारों और उनके ग्रहों के बीच ज्वार-भाटे जैसा एक संबंध भी होता है। नए समीकरणों में इस संबंध के प्रभावों को शामिल करने पर संकेत मिलता है कि एक ऐसा भी समय आ सकता है, जब हमारे सूर्य और पृथ्वी के बीच एकसमान शक्तियां काम कर रही होंगी।
यह इसलिए संभव है कि सूर्य जब फूल कर फैलने लगेगा, तो अपने अक्ष पर घूमने की उसकी गति धीमी पड़ने लगेगी। तब पृथ्वी सहित सूर्य की परिक्रमा कर रहे सभी ग्रहों की गति भी धीमी होती जाएगी। इसी को सूर्य और उसके ग्रहों के बीच ज्वार-भाटे वाले संबंध के तौर पर देखा जाता है। जब भी ऐसा होगा, तब पृथ्वी सहित दूसरे सभी ग्रह भी धीरे-धीरे सूर्य के निकट आते जाएंगे।
ज्वार-भाटा बल और सौर आंधी : डॉ. स्मिथ के गणित के अनुसार, पृथ्वी को खींचने वाला ज्वार-भाटा बल, सौर-आंधी वाले प्रभाव के उलट काम कर सकता है। उनका कहना है, 'ज्वार-भाटा बल दुर्भाग्य से इतना शक्तिशाली है कि पृथ्वी किसी सर्पिल कुंडली (स्प्रिंग) की तरह घूमती हुई सूर्य के निरंतर निकट आती जाएगी और अंत में सूर्य उसे निगल जाएगा। लेकिन, तब तक पृथ्वी वैसे भी रहने-जीने लायक नहीं रह जाएगी, इसलिए इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।'
उस समय सूर्य का अपना तापमान भी, आज की तुलना में, 20 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका होगा और पृथ्वी पर पहुंच रहा सूर्य-प्रकाश भी, आज की अपेक्षा 3000 गुना अधिक होगा। पृथ्वी की ऊपरी सतह का तापमान 1400 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा। यानी, पृथ्वी की उपरी सतह पिघलने लगी होगी। अनुमान है कि तब तक पृथ्वी तरल लावा से ढक चुकी होगी। सूर्य द्वारा पृथ्वी के निगले जाने तक तापमान बढ़ता ही जाएगा। आज की तुलना में सूर्य 16 हज़ार गुना अधिक शक्ती के साथ पृथ्वी को खींचकर निगल जाएगा। सूर्य के भीतर समा जाने के बाद तो पृथ्वी का कोई अस्तित्व ही नहीं बचेगा। पृथ्वी के केंद्र में स्थित उसका लौह-क्रोड़ ही शायद कुछ समय के लिए उसकी निशानी रह जाएगा।
सौरमंडल की कोई निशानी नहीं बचेगी : लाल दैत्य कहलाने वाले तारे भी – गुब्बारे जैसे फूले हुए अपने गैसीय आवरण को, और अपनी अधिकांश द्रव्यराशि को भी समय के साथ किसी फूटते हुए गुब्बारे की चिंदियों और गैसीय बुलबुलों की तरह अंतरिक्ष में उड़ा देते हैं। अपनी अधिकांश द्रव्यराशि खो देने के बाद लाल दैत्य सिकुड-सिमटकर सफ़ेद बौने (व्हाइट ड्वार्फ) बन जाते हैं।
वे गरम तो होते हैं, पर आकार में पृथ्वी जितने ही बड़े रह जाते हैं। खुद दिखाई नहीं पड़ते। उनको घेरे हुई गैसों वाले बादलों से उनके होने का सुराग मिलता है। भस्म होकर गैस बन गया हमारा आधा सौरमंडल भी गैसों के ही रूप में क़रीब 10 हज़ार वर्षों तक देखने में आएगा। ये गैसें, समय के साथ, अंतरिक्ष में बिखर कर विलीन हो जाएंगी और तब हमारी दुनिया का कहीं, कोई नामोनिशान नहीं रह जाएगा!