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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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Su-30MKI : अब भारत में बनेंगे रूसी युद्धक विमान सुखोई

Su-30MKI : अब भारत में बनेंगे रूसी युद्धक विमान सुखोई
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राम यादव

रूसी युद्धक विमान सुखोई-30 भारतीय वायुसेना की रीढ़ के समान हैं। भारत में उनकी मरम्मत और समय-समय पर तकनीकी उन्नयन (अपग्रेडेशन) का काम तो होता ही था अब उनके हिस्सों-पुर्जों के भारत में ही निर्माण और असेंबली का काम सतत बढ़ाया जाएगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 2 अगस्त 2024 को हुई मंत्रिमंडलीय रक्षा समिति की बैठक में निर्णय लिया गया कि 26,000 करोड़ रुपए की लागत से, देश के 272 रूसी Su-30 MKI लड़ाकू विमानों के बेड़े के लिए 240 नए जेट इंजनों की व्यवस्था की जाएगी।

भारत की सरकारी विमान निर्माता कंपनी 'हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड-HLA' इन इंजनों को Su-30MKI विमानों में लगाने का और देश की रक्षा तैयारियों को मज़बूत करने का काम करेगी। नए इंजन अंशतः उड़ीसा के कोरापुट में स्थित HLA के संयंत्र में बनाए जाएंगे। 54 प्रतिशत अंश भारतीय होंगे और बाक़ी हिस्सों एवं प्रणालियों को रूस से मंगाया जाएगा। किसी युद्धक विमान का जीवनकाल आमतौर पर 30 से 40 वर्षों तक का ही होता है। उसके इंजनों को इस दौरान 2 से 3 बार बदला जाता है, ताकि विमान की कार्यक्षमता बनी रहे।

63,000 करोड़ रुपए का उन्नयन कर्यक्रमः वायु सेना के Su-30MKI विमानों के लिए 63,000 करोड़ रुपए की लागत वाला एक उन्नयन (अपग्रेडेशन) कर्यक्रम भी इस समय चल रहा है। इन उन्नयनों में भारत में ही बनी इलेक्ट्रॉनिक स्कैनिंग (क्रमवीक्षण) करने वाली AERST राडार प्रणाली, एक उन्नत इन्फ्रारेड (अवरक्त किरण) खोज और ट्रैक सेंसर (IRST), नए इलेक्ट्रॉनिक घटक और कंप्यूटर आदि शामिल हैं।

मंत्रिमंडलीय रक्षा समिति ने इसी साल फ़रवरी में रूस से ही मिले 60 मिग-29 युद्धक जेट विमानों के लिए 5,300 करोड़ रुपये मूल्य के RD-33 क़िस्म के जेट इंजनों के निर्माण की स्वीकृति दी थी। उनका निर्माण भी रूस के सहयोग से कोरापुट संयंत्र में ही किया जाएगा।

सुखोई Su-30MKI का निर्यात भी है संभवः रूस के ही सहयोग से भारत ने 'ब्रह्मोस' नाम की दुनिया की जो एक सबसे तेज़ सुपरसॉनिक (पराध्वनिक) मिसाइल बनाई है और उसे किसी तीसरे देश में निर्यात करने में भी रूस ने जिस तरह भारत का हाथ बंटाया है, उसी से प्रेरित हो कर दोनों देश भारत में सुखोई Su-30MKI के उत्पादन को पुनर्जीवित करने और इसे विदेशी ख़रीदारों को निर्यात करने के लिए भी बातचीत कर रहे हैं। यह विमान दशकों तक देश की वायुसेना की रीढ़ बना रहेगा।

भारत ने कई किश्तों में रूस से 272 Su-30 प्राप्त करने का अनुबंध किया था। उनमें से 222 के विभिन्न हिस्सों को HAL ने, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के अंतर्गत 2004 से महाराष्ट्र में स्थित नासिक के अपने संयंत्र में जोड़ कर तैयार किया।

इन 272 लड़ाकू विमानों में से 40 को सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइल 'ब्रह्मोस' के हवाई प्रक्षेपण वाले संस्करण से लैस करने के लिए संशोधित किया जा रहा है। भारतीय वायु सेना ने 2020 में तमिलनाडु के तंजावुर एयर बेस पर ब्रह्मोस से लैस अपने विशेष स्क्वैड्रन 'टाइगर शार्क' को तैनात किया। वहां तैनात सुखोई विमान भारतीय प्रायद्वीप और हिंद महासागर क्षेत्र की पहरेदारी करते हैं।

दुर्घटनाग्रस्त विमानों कमी होगी पूरीः भारतीय वायुसेना पिछले कुछ वर्षों में हुई दुर्घटनाओं में खोए दिए गए विमानों की कमी भरने के लिए 12 नए सुखोई विमान चाहती है। उनका निर्माण भी रूस की सहायता से य़थासंभव भारत में ही किया जाएगा। उनमें स्वदेशीकरण का प्रतिशत और अधिक होगा। वे हथियारों की नवीनतम भारतीय प्रणालियों और राडार से लैस होंगे।

नए Su-30MKI विमानों की ख़रीद एक ऐसे समय में की जा रही है, जब भारतीय वायुसेना युद्ध के समय आवश्यक स्क्वैड्रनों की कमी से जूझ रही है। वायुसेना के पास युद्धक विमानों के कम से कम 42 स्क्वैड्रन होने चाहिए। सरकार इसे स्वीकार भी करती है। पर इस स्वीकृत क्षमता की तुलना में हैं केवल 31 स्क्वैड्रन। एक स्क्वैड्रन में 16 से 18 युद्धक विमान होते हैं। सुखोई, दोहरे इंजन वाले बहुमुखी उपयोग के लड़ाकू विमान हैं। भारत के अलावा, Su-30 के विभिन्न संस्करण चीन, अल्जीरिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, युगांडा, वेनेज़ुएला और वियतनाम के पास हैं।

नज़र है निर्यात पर भीः भारतीय वायुसेना से मिला ऑर्डर पूरा करने के बाद नासिक में स्थित Su-30MKI की उत्पादन लाइन, विमानों की भलीभांति जांच-परख और मरम्मत (ओवरहाल) का काम कर रही है। निर्यात पर नज़र रखते हुए उत्पादन लाइनों को फिर से शुरू करने से भारत अपनी वर्तमान क्षमताओं का भी उपयोग कर सकेगा और निर्यात की तरफ भी ध्यान दे सकेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस वर्ष जुलाई में हुई रूस यात्रा के दौरान मॉस्को में दोनों पक्ष Su-30MKI के संयुक्त विनिर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए काम करने पर सहमत हुए।

भारतीय वायुसेना के संपूर्ण सुखोई बेड़े का एक बड़ा उन्नयन कार्य भी चल रहा है। इन विमानों के 2050-60 तक भारतीय वायुसेना के लिए उड़ान भरते रहने की संभावना है। उन्नत सुखोई बेड़े का सबसे घातक प्रहार इन विमानों में समेकित, हवा से ज़मीन पर मार करने वाली एक साथ तीन ब्रह्मोस मिसाइलें ले जाने और दागने की उनकी क्षमता होगी। वायुसेना के वे एकमात्र ऐसे जेट हैं, जो शक्तिशाली ब्रह्मोस मिसाइलें ले जाने के सक्षम हैं।

78 प्रतिशत स्वदेशी घटकः उन्नयन के बाद, हर Su-30MKI विमान में 78 प्रतिशत स्वदेशी घटक होंगे। रूस में बने घटकों पर निर्भरता को कम करना भी एक उद्देश्य है, ताकि Su-30MKI को भारत-निर्मित एवं भारत में रखरखाव योग्य बनाया जा सके और समय के साथ कभी ऐसे विमान स्वयं ही पूरी तरह बनाना संभव हो सके। बताया जाता है कि भारतीय 'गैस टर्बाइन अनुसंधान प्रतिष्ठान' ने Su-30MKI के AL-31F इंजनों को घरेलू स्तर पर उन्नत किया था, जिससे उनका सेवाकाल 1,500 उड़ान घंटे तक बढ़ गया।

ऐसे परिदृश्य में मेक-इन-इंडिया कार्यक्रम के अतर्गत रूसी मूल के युद्धक जेट विमानों को यथासंभ स्वयं बनाना और मित्र देशों को निर्यात करना भी समझदारी होगी। हाल ही में भारत ने फिलीपींस को ब्रह्मोस सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइलों का निर्यात किया है। इन मिसाइलों का निर्माण भारत-रूस संयुक्त उद्यम के अधीन किया जाता है।

जब भारत ने रूस का हाथ बंटायाः Su-30MKI सौदा न केवल भारत की भू-राजनीतिक मजबूरियों के कारण तय हुआ था, बल्कि 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद के झटके से जूझ रहे रूसी रक्षा उद्योग को सहारा देने के भी काम आया था। रूसी अर्थव्यवस्था उस समय जर्जर स्थिति में थी। भारत ने रूसी रक्षा उद्योग को उबारने में हाथ बंटाया। भारतीय वायुसेना के पास पहले से ही MIG श्रृंखला के लड़ाकू विमान थे, इसलिए भारत ने उनके बदले इस बार Su-30 को चुना। इन विमानों को भारतीय वायुसेना के लिए अनुकूलित किया गया और उन्हें Su-30 MKI नाम दिया गया।

रूस के साथ सन 2000 में तीन अरब डॉलर के सौदे ने 20 वर्षों में SU-30MKI के सभी घटकों के भारत में स्वदेशी उत्पादन का मार्ग प्रशस्त किया, जिसमें 'AL-31FP' थ्रस्ट-वेक्टरिंग इंजन भी शामिल थे। भारत से कुछ साल पहले रूस ने चीन को Su-30 बेचे थे, लेकिन उन्हें बनाने का लाइसेंस चीन को नहीं दिया था। इस जेट को भारत की "लिखित" सहमति के बिना रूस किसी तीसरे देश को नहीं बेच सकता, क्योंकि इसे भारतीय पैसे से विकसित किया गया है। इसके प्रौद्योगिकी अधिकारों में भारत की हिस्सेदारी है।

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