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रूस ने किया एक निरस्त्रीकरण संधि का अंत

रूस ने किया एक निरस्त्रीकरण संधि का अंत
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राम यादव

, शुक्रवार, 19 मई 2023 (15:19 IST)
Russia Ukraine War: रूस की सेना यूक्रेन में उस तेजी से आगे नहीं बढ़ पा रही है जिसकी राष्ट्रपति पुतिन (Putin) को आशा थी। अपनी निराशा छिपाने के लिए वे अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ अतीत में हुई निरस्त्रीकरण संधियों (Disarmament Treaty) पर अपनी भड़ास उतारने लगे हैं। रूसी संसद ड्यूमा ने मंगलवार 16 मई को यूरोप में पारंपरिक सशस्त्र बलों (सीएफई) संधि से पीछे हटने के लिए मतदान किया।
 
संसद की वेबसाइट के अनुसार यह निर्णय संसद की पूर्ण सभा में सर्वसम्मति से लिया गया। संसद के सभापति व्याचेस्लाव वोलोदिन ने अपने टेलीग्राम चैनल पर इस निर्णय को सही व राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में बताया। उन्होंने कहा, 'वॉशिंगटन और ब्रुसेल्स ने एकध्रुवीय दुनिया के निर्माण के विचार से ग्रस्त होकर नाटो के पूर्वी दिशा में विस्तार के साथ वैश्विक सुरक्षा प्रणाली को नष्ट कर दिया है।'
 
वोलोदिन की इस टिप्पणी का इशारा इस तथ्य की तरफ था कि सोवियत संघ के पतन के बाद पूर्वी यूरोपीय देशों ने 1999 में नाटो में शामिल होना शुरू किया: चेक गणराज्य, हंगरी और पोलैंड ऐसे पहले देश थे। नाटो में शामिल होने का मुख्य कारण पूर्वी यूरोप के देशों को नाटो की ओर से किसी रूसी आक्रमण के विरुद्ध मिल रही सुरक्षा की गारंटी थी। सीएफई संधि यूरोपीय महाद्वीप पर भारी हथियारों की तैनाती की सीमा निर्धारित करती है। मुख्यत: युद्धक टैंक और बख्तरबंद कार्मिक वाहन, भारी तोपखाने, लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर भारी हथियारों की श्रेणी में गिने जाते हैं।
 
3 दशक पुरानी संधि : रूस 1990 में हुई इस संधि के सह-हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक था, लेकिन 2007 की शुरुआत में उसने इस पर अमल को काफी हद तक रोक दिया था। 2015 से यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप के रूस में बलात विलय के 1 साल बाद रूस ने इस समझौते के परिपालन के लिए बने सलाहकार समूह की बैठकों में भाग लेना भी बंद कर दिया।
 
सीएफई संधि को समाप्त करने का विधेयक स्वयं रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पिछले हफ्ते संसद में पेश किया था। उप विदेशमंत्री सर्गेई रयाबकोव के अनुसार इस संधि से पूरी तरह छुटकारा पाने की प्रक्रिया में लगभग 6 महीने लगेंगे।
 
रयाबकोव ने कहा कि इस समझौते को पुनर्जीवित करने का अब कोई तरीका नहीं है। 'कोई बातचीत तो तब होती, जब पश्चिम के साथ हमारे संबंधों में आया तूफान शांत हो गया होता, जब पश्चिम ने रूस के प्रति अपनी शत्रुतापूर्ण नीति को त्याग दिया होता और नए वैचारिक रास्तों की तलाश करना चाहता।' यूक्रेन पर आक्रमण कर 1 साल से उसके विरुद्ध युद्ध चला रहा रूस बार-बार दावा करता है कि उसे पश्चिमी देशों के किसी संभावित आक्रमण से अपना बचाव भी तो करना है।
 
यूक्रेन के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह : 24 फरवरी, 2022 को रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर युद्ध छेड़ रखा है। कुछ समय पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक स्वतंत्र देश के रूप में यूक्रेन के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया था। साथ ही पूर्वी यूक्रेन के स्वघोषित तथाकथित दोन्येत्स्क और लुहांस्क गणराज्यों को स्वतंत्र देशों के तैर पर मान्यता भी दे दी थी। तभी से दोनों तरफ से हजारों लोगों के मारे जाने की खबरें आ रही
हैं। कितने सैनिक और नागरिक सचमुच मारे गए हैं, इसकी पुष्टि स्वतंत्र रूप से नहीं की जा सकती। तथ्य यह है कि यूक्रेन में मानवीय स्थिति दिन-प्रतिदिन अमानवीय होती जा रही है। लोगों को भागकर दूसरे देशों में शरण लेनी पड़ रही है।
 
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संस्था UNHCR ने यूरोपीय देशों में 9 मई 2023 तक 82 लाख से अधिक यूक्रेनी शरणार्थियों को पंजीकृत किया है। ये शरणार्थी मुख्य रूप से महिलाएं और बच्चे हैं, क्योंकि 18 से 60 वर्ष आयु के बीच के पुरुषों को देश छोड़ने की अनुमति प्राय: नहीं मिलती। उन्हें मोर्चों पर जाकर रूसी सैनिकों से लड़ना पड़ता है।
 
उच्च कोटि के हथियारों की आपूर्ति : यूरोपीय देश और अमेरिका, यूक्रेन को भारी मात्रा में ऐसे उच्च कोटि के हथियारों की आपूर्ति कर रहे हैं जिनके कारण रूसी सेना को भारी क्षति उठानी पड़ रही है। ये देश मानते हैं कि यूक्रेन की जनता रूसी आक्रमणकारियों से केवल अपने लिए ही नहीं लड़ रही है। यूक्रेन पर यदि रूस का क़ब्जा हो गया तो देर-सवेर रूस, यूक्रेन के पश्चिमी पड़ोसियों की तरफ भी पैर पसारने की कोशिश करेगा और तब पश्चिमी
देशों के नाटो सैन्य संगठन को भी युद्ध में कूदना पड़ेगा। तब तीसरा विश्वयुद्ध भी छिड़े बिना नहीं रहेगा।
 
पश्चिमी देश तोपों और टैंकों के बाद यूक्रेन को अब युद्धक विमान भी देने के लिए कमर कस रहे हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने इसी सप्ताह उसे 150 ड्रोन देने का भी आश्वासन दिया है। ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय का कहना है कि गुप्तचर सेवाओं की नवीनतम जानकारी के अनुसार रूस ने अकेले इसी वर्ष में अब तक यानी 2023 के जनवरी और मई महीने के बीच यूक्रेन के साथ युद्ध पर अपनी कुल मिलाकर 140 अरब डॉलर के बराबर धनराशि फूंक दी है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के एक विश्लेषण के अनुसार इस खर्च का दूसरा पक्ष यह है कि 2023 के लिए रूसी रक्षा बजट में पूरे वर्ष के लिए 155 अरब डॉलर के बराबर ही खर्च का प्रावधान है।
 
आग में पड़ता घी : पश्चिमी देश भी आग में घी डालने में अब कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। यूक्रेन को 2022 के अंत तक अमेरिका 22 अरब 86 करोड़ डॉलर, ब्रिटेन 4 अरब 40 करोड़ डॉलर, जर्मनी 2 अरब 49 करोड़ डॉलर और यूरोपीय संघ 9 अरब 18 करोड़ डॉलर के बराबर अस्त्र-शस्त्र सहायता देने की घोषणा कर चुका था।
 
यूरोपीय संघ के देशों ने जनवरी 2023 में 19 अरब डॉलर के बराबर एक और सहायता देने की घोषणा की। इस तरह 2023 में अकेले यूरोपीय देशों से ही यूक्रेन को कुल मिलाकर 55 अरब डॉलर के बराबर सहायता मिलेगी। अमेरिका की ओर से मिलने वाली कुल सहायता भी 51 अरब डॉलर के बराबर हो जाएगी।
 
ये सारा पैसा यूक्रेन को कभी भी लौटाना नहीं होगा। सब कुछ दान-दक्षिणा है, क्योंकि यूक्रेन पश्चिम की आंख के चिरकांटे रूस से लड़ रहा है, क्योंकि वह केवल अपने लिए ही नहीं, पूरे पश्चिमी जगत के लिए भी लड़ रहा है। पश्चिमी नेता और उनके मीडिया बार-बार यही कहते हैं।
 
इन पश्चिमी दानवीरों की आम जनता चकित है कि जब वह अपने देशों में तेजी से बढ़ गई भारी मंहगाई से लड़ने के लिए वेतन आदि बढ़ाने की मांग करती है तो उसे यह कहकर चुप कर दिया जाता है कि 'पैसा नहीं है!' यूक्रेन को युद्ध में विजय दिलाने के लिए पैसा है और महंगाई की मारी अपनी जनता के लिए पैसा नहीं है। मजे की बात यह है कि जनता भी यूक्रेन की सहायता की समर्थक है।

Edited by: Ravindra Gupta
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

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