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श्रीलंका : महिंदा राजपक्षे की वापसी से क्यों चिंतित है भारत

श्रीलंका : महिंदा राजपक्षे की वापसी से क्यों चिंतित है भारत
, शनिवार, 27 अक्टूबर 2018 (11:00 IST)
श्रीलंका में पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने एक नाटकीय घटनाक्रम में शुक्रवार को प्रधानमंत्री के पद पर वापसी की। राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने उन्हें शपद दिलाई। प्रधानमंत्री के रूप में पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे का शपथ ग्रहण समारोह जब मीडिया और टीवी चैनलों पर दिखाया गया तो सभी हैरान रह गए।


चीन समर्थक माने जाने वाले राजपक्षे के आने की अटकलें लंबे समय से लगाई जा रही थीं लेकिन वे किस तरह से सत्ता में वापसी करेंगे इसको लेकर स्थिति साफ नहीं थी। श्रीलंका की राजनीति में यह बदलाव अचानक तब आया जब इससे पहले सिरिसेना की पार्टी यूनाइटेड पीपुल्स फ्रीडम अलायंस ने सत्तारुढ़ गठबंधन से समर्थन वापस लिया।

यूपीएफए के महासचिव महिंदा अमरवीरा ने बिना किसी सूचना के ही बयान जारी कर दिया। वर्ष 2015 में भारतने राजपक्षे को सत्‍ता से बेदखल करने के लिए अपने प्रभाव का प्रयोग कर सिरिसेना और विक्रमसिंघे के बीच समझौता कराया था। भारत ने यह कदम तब उठाया जब राजपक्षे ने सामरिक दृष्टि से बेहद महत्‍वपूर्ण हंबनटोटा बंदरगाह को चीन को कई वर्षों की लीज पर दे दिया।

यही नहीं, तत्‍कालीन श्रीलंकाई राष्‍ट्रपति राजपक्षे ने चीन को राजधानी कोलंबो के बंदरगाह को बनाने और चीनी पनडुब्बियों को श्रीलंका के बंदरगाह तक आने की अनुमति दे दी। इसके बदले में चीन ने श्रीलंका को बड़े पैमाने पर कर्ज दिया और आज श्रीलंका, चीनी कर्जे के जाल में बुरी तरह से फंसा हुआ है। पिछले तीन महीने में श्रीलंका के सत्‍ताधारी गठबंधन में दरार उत्‍पन्‍न हो गई थी।

इस दौरान भारत ने श्रीलंका की राजनीति के तीनों धुरंधरों को साधने की कोशिश की थी। इसी कड़ी में पिछले हफ्ते विक्रमसिंघे नई दिल्‍ली आए थे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी। चीनी समर्थक राजपक्षे के सत्‍ता में वापस आने से भारत का चिंतित होना स्‍वाभाविक है।

यही नहीं भारत विरोधी भाषणबाजी का दौर श्रीलंका में एक बार फिर से शुरू हो गया है। पिछले सप्‍ताह श्रीलंका के पोर्ट मिनिस्‍टर महिंदा समरासिंघे ने कहा था कि वे भारत को पूर्वी कंटेनर टर्मिनल नहीं सौपेंगे। उनका यह बयान वर्ष 2017 में दोनों देशों के बीच हुए समझौते का उल्‍लंघन है। 

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