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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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सावधान! फिर बढ़ रहा है इस्लामिक स्टेट का आतंक

ISIS Terror
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राम यादव

IS Terror Again Increasing: जो लोग समझते हैं कि किसी त्सुनामी लहर की तरह 2014 में अकस्मात उभरा, अंधाधुंध मारकाट भरा, अबू बकर अल बगदादी का 'अद-दौउला अल-इस्लामिया' कहलाने वाला इस्लामिक स्टेट (IS) 2020 आने तक मर-खप चुका है, वे ख़याली पुलावों की दुनिया में रहते हैं। अफ़ग़ानिस्तान में सिर उठाने के साथ वह न केवल भारत के बहुत निकट पहुंच गया है, यूरोप-अमेरिका में भी एक बार फिर खलबली मचा रहा है।
 
अबू बकर अल बगदादी तो अब ज़िंदा नहीं है, पर उसके कई चेले-चंटे अब भी मारकाट में व्यस्त हैं। बगदादी की ख़लीफ़त वाला इस्लामिक स्टेट IS, इराक़ और सीरिया में अंधाधुंध ख़ून बहाकर कुख्यात हुआ था। उसके चेले-चंटे अब न केवल अफ़ग़ानिस्तान में बमबाज़ी कर रहे हैं, वे अमेरिका और जर्मनी जैसे पश्चिमी देशों में भी अपने पैर पुनः पसारने लगे हैं। आतंकवादियों की टोह लेने वाली पश्चिमी गुप्तचर सेवाएं यही कह रही हैं। 
 
अफ़ग़ानिस्तान में अब सत्ता के सिंहासन पर बैठे तालिबान खुद भी दुनिया की दृष्टि में कुछ कम आतंकवादी नहीं रहे हैं। इसलिए यह समाचार चौंकाने वाला है कि अप्रैल के आरंभ में उन्होंने IS के एक आतंकवादी कमांडर को मार गिराया। तालिबान का मानना है कि यही कमांडर, अगस्त 2021 में, काबुल हवाई अड्डे पर हुए उस बम-प्रहार का मुख्य सूत्रधार था, जिसने 13 अमेरिकी सैनिकों सहित 180 से अधिक प्राणों की बलि ली थी।
 
तालिबान के प्रति आभार : यह बात भी कुछ कम दिलचस्प नहीं है कि तालिबान की इस कामयाबी की ख़बर, अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता, जॉन कर्बी ने 25 अप्रैल को दी। ख़बर कुछ इस तरह से दी गई, मानो अमेरिका IS से लिए गए इस बदले के लिए तालिबान के प्रति आभारी है। इस्लाम को लेकर तालिबानी भी कुछ कम कट्टरपंथी नहीं हैं, पर IS तो उन्हें फूटी आंखों भी नहीं सुहाता। एक सांपनाथ है, तो दूसरा नागनाथ। दोनों एक-दूसरे की जान के प्यासे बन गए हैं। IS अब अपने पैर अफ़ग़ानिस्तान और उसके पड़ोस में भी पसारना चाहता है। तालिबान इसे होने नहीं देने की क़सम खाए बैठा है।
 
पश्चिमी देश अपने लिए तालिबान की अपेक्षा IS को कहीं बड़ा ख़तरा मान रहे हैं। उदाहरण के लिए, 'संविधान रक्षा कार्यालय' नाम की जर्मनी की आंतरिक गुप्तचर सेवा और जर्मन पुलिस को डर है कि देश में आतंकवादी हमले अब बढ़ने लगेंगे। सीरिया और इराक़ में तो IS की कमर टूट गई है, किंतु अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय 'आईएस प्रॉविंस ख़ोरासान(ISPK)' नाम की उसकी शाखा जर्मनी के लिए ख़तरे की नई घंटी है।

'उसकी शक्ति बढ़ने से जर्मनी का सिरदर्द भी बढ़े बिना नहीं रहेगा,'  कहना है जर्मनी की आंतरिक गुप्तचर सेवा के प्रमुख टोमास हाल्डेनवांग का। अमेरिकी सिनेट में कुछ समय पूर्व हुई एक सुनावाई के समय, अमेरिकी सेना की केंद्रीय कमान के कमांडर, जनरल माइकल कुरिला ने आशंका व्यक्त की कि ISPK, छह महीने से भी कम समय में पश्चिमी देशों में भी हमले करने के सक्षम हो जाएगा। 
 
मददगारों का जाल : जर्मनी ही नहीं, फ्रांस और ब्रिटेन सहित अन्य यूरोपीय देशों की गुप्तचर सेवाओं को भी ऐसे संकेत मिले हैं कि ISPK  ने, उनके यहां रहने वाली इस्लामी बिरादरियों के बीच, पिछले कुछ महीनों में अपने ऐसे मददगारों का जाल बुन लिया है, जो यूरोप में घात लगाकर आतंकवादी हमले करेंगे।

जर्मनी की आंतरिक गुप्तचर सेवा 'संविधान रक्षा कार्यालय' के अधिकारियों का कहना है कि ISPK के मददगार गिरोह, इस समय पूरे ज़ोर-शोर से पश्चिमी देशों में बड़े-बड़े आतंकवादी हमले करने की तैयारियों में लगे हैं। इसके लिए यूरोप में रहने वाले चुने हुए उग्र इस्लामवादियों से चैट-ग्रुपों तथा कोडबद्ध संवाद के माध्यमों से संपर्क किए जाते हैं। उन्हें बमों जैसी विस्फोटक सामग्रियां बनाने, उनके रखरखाव एवं छिपाने के गुर सिखाए जाते हैं।
 
जर्मनी में ऐसे ही कुछ मामले मिल भी चुके हैं। सबसे ताज़ा उदाहरण है, इज़रलोन और ब्रेमरहाफ़न नाम के दो शहरों में 16 और 17 साल के ऐसे दो युवाओं की गिरफ्तारी, जो अफ़ग़ानिस्तान में ISPK के आकाओं से मोबाइल फ़ोन पर बातें कर रहे थे। जिन लोगों से वे बातें कर रहे थे, उनमें से एक ताजिकिस्तान का रहने वाला ऊंचे रैंक का एक ऐसा कमांडर था, जो जर्मनी में रह चुका था और अब अफ़ग़ानिस्तान में है। 
 
चैट-ग्रुपों के द्वारा आतंकवाद की शिक्षा : जर्मनी के महाभियोक्ता के अनुसार, इन दोनों युवाओं ने चैट-ग्रुपों के द्वारा, इस्लाम के नाम पर लड़ने-मरने के लिए मचल रहे कुछ दूसरे युवाओं को भी पट्टी पढ़ाकर आतंकवादी हमले करने के लिए तैयार किया है। दूसरे युवाओं को बताया है कि हमले के लिए बम वगैरह कैसे बनाया जाता है और इस्लाम का प्रचार-प्रसार कैसे करना चाहिए। 
 
ब्रेमरहाफ़न में रहने वाले 17 साल के युवक ने पूछताछ के समय बताया कि अफ़ग़ानिस्तान में जिस व्यक्ति के संपर्क में वह था, उसने उससे कहा कि वह जर्मनी में एक 'IS सेल'  बनाए और अपने आप को उसका 'अमीर' समझ कर काम करे। यह लड़का सोशल मीडिया 'टेलीग्राम' पर 30 सदस्यों वाले एक जर्मन भाषा-भाषी ग्रुप का कुछ समय तक मुखिया भी रह चुका है।
 
इज़रलोन शहर के 16 साल के दूसरे लड़के ने बम-धमाका करने की योजना बनाई थी। किंतु बाद में अपना विचार बदल दिया और तय किया कि वह चाकू लेकर पुलिसकर्मियों पर हमले करेगा। इन दोनों लड़कों पर मुकदमा दायर किया गया है, पर सुनवाई अभी शुरू नहीं हुई है। जर्मन सुरक्षा अधिकारियों की चिंताएं इस कारण और भी बढ़ गई हैं कि यूरोप में तो पहले से ही कई इस्लामी आतंकवादी गिरोह हैं, आने वाले दिनों में अब नए, बाहरी गिरोहों की भी घुसपैठ कराई जाएगी। कुछ घुसपैठें शायद हो भी चुकी हैं। अधिकारियों को डर है कि जो नए शरणार्थी इन दिनों यूरोप पहुंचे हैं या पहुंच रहे हैं, उनमें नए हमले करने वाले भावी आतंकवादी भी छिपे हो सकते हैं।
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एक दर्जन आतंकवादी हमलों की योजना : अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के कुछ दस्वेज़ों से पता चला है कि अमेरिकी गुप्तचर सेवाओं के पास भी ISPK द्वारा विदेशों में आतंकवादी हमले करने की योजनाओं के बारे में चिंताजनक जानकारियां हैं। इस साल फ़रवरी महीने के ऐसे ही एक दस्तावेज़ से संकेत मिलता है कि अफ़ग़ानिस्तान में बैठे इस्लामी स्टेट के जल्लादों ने विदेशों में कम से कम एक दर्जन आतंकवादी हमले करने की योजनाएं बना रखी हैं।
 
आत्मघाती आतंकवादी हमले की एक ऐसी ही योजना 2022 के अंत में क़तर में हुई फ़ुटबॉल की विश्व चैंपियनशिप के लिए बनी थी, पर किसी कारण से उस पर अमल हो नहीं पाया। कुछ अन्य योजनाओं के निशाने पर रूस, ताजिकिस्तान और अज़रबैजान में स्थित नीदरलैंड और स्वीडन के दूतावास थे। इन दोनों देशों पर गाज़ इसलिए गिरनी थी, क्योंकि इन दोनों देशों के किन्ही उग्र दक्षिणपंथियों ने वहां कुरान की प्रतियां जलाई थीं। इन दोनों देशों के लिए सोचे गए आतंकवादी हमले कभी भी हो सकते हैं।
 
ड्रोनों से बम गिराने की तैयारी : ISPK के कर्ताधर्ता हवाई ड्रोनों से बम और दूसरी विस्फोटक सामग्रियां गिराने के विकल्प पर भी सोच-विचार कर रहे हैं। यह सुनने के बाद कि यूक्रेन में असैनिक उपयोग के लिए बनी ड्रोनों में कुछ बदलाव करते हुए सैनिक कार्यों लिए भी बड़ी सफलता के साथ उनका उयोग किया जा रहा है, वे यूक्रेन में ऐसे किसी व्यक्ति से संपर्क साधने का प्रयास कर रहे हैं, जो उनके काम आ सके। ऐसी ड्रोनें यदि ISPK के सहयोगी आतंकवादियों के हाथों लगीं, तो उनका उपयोग यूरोप-अमेरिका जैसे दूर-दराज़ के देशों में ही नहीं, भारत जैसे अफ़ग़ानिस्तान के निकटवर्ती देशों में भी किया जा सकता है। ऐसी किसी तैयारी में पाकिस्तान के भारत विरोधी आतंकवादी संगठन भी ISPK का साथ देना और भारतीय कश्मीर को अपना निशाना बनाना चाहेंगे।
 
ISPK के रणनीतिकारों ने 2022 की गर्मियों में ब्रिटेन में रहने वाले अपने एक ऐसे समर्थक से संपर्क किया, जिसका कहना है कि उसे विमान तकनीक और रासायनिक सामग्रियों की अच्छी जानकारी है। यह व्यक्ति ISPK के प्रतिनिधियों से इराक या अफ़ग़ानिस्तान में मिलना चाहता था। उससे कहा गया कि ऐसा कोई जोखिम उठाने से पहले बेहतर है कि वह अपनी बातें फिलहाल गोपनीय ऑनलाइन संवाद के द्वारा बताए। 
 
काफ़िरों को ठिकाने लगाएं : जर्मनी में इज़रलोन और ब्रेमरहाफ़न के 16 और 17 साल के जिन दो इस्लामवादी लड़कों से संपर्क किया गया था, वे भी शायद ISPK के प्रतिनिधियों से मिलने के लिए कहीं भी जाने को तैयार थे। उनसे भी यही कहा गया कि वे जर्मनी में रहकर ही 'काफ़िरों को ठिकाने लगाएं'। दोनों इस समय जेल में हैं। कहा जा रहा है कि वे अब भी अपने 'जिहादी संकल्प पर अटल हैं'। 17 साल वाले लड़के ने जेल में ही इस्लामी स्टेट (IS) के झंडे का एक चित्र बनाया है और वह इस्लाम की स्तुति में रचा अपना एक गीत गाया करता है। 16 साल वाले लड़के के बारे में कहा जा रहा है कि उसके जिहादी उन्माद में भी कोई कमी नहीं आई है। वह अब भी पुलिसकर्मियों को चाकू भोंक कर मार डालने या बुरी तरह घायल कर देने के सपने देखता है।
 
चाकू से हमले रोज़-रोज़ की बातें : इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि जर्मनी में इधर कुछ समय से रेलवे स्टेशनों, ट्रेनों, बसों, ट्रामों, बाजारों, खुली सड़कों, यहां तक कि रेस्त्रां और फ़िटनेस स्टूडियो तक में, चाकू मारकर हत्या कर देने या बुरी तरह घायल कर देने की घटनाएं रोज़-रोज़ की बातें बन गई हैं। ऐसे अपराधियों में उन लोगों का अनुपात कुछ कम नहीं होता, जो इस्लामी देशों से आए शरणार्थी हैं। 
 
हर बार जब ऐसी कोई घटना होती है, तब पुलिस की ओर से पहले यही कहा जाता है कि इसका इस्लामी आतंकवाद से कोई लेना-देना नहीं लगता। लेकिन, जांच-पड़ताल में लगे दो-चार दिनों के बाद कहा जाने लगता है कि संकेत की सुई इस्लामपंथियों की तरफ जा रही है। जर्मन जनता और अधिकारी इस्लाम को बदनाम करने से बचने का भरपूर प्रयास करते हैं, पर इस्लाम के अनुयायी ही अपने 'दीन' को हृदयहीन दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते।
 
यूरोप-अमेरिका तो अफ़ग़ानी तालिबान की नाक में दम कर रहे, लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में ही बैठे, ISPK के जल्लादों से हज़ारों किलोमीटर दूर हैं, जबकि भारतीय कश्मीर वहां से केवल 617 किलोमीटर ही दूर है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर भी यदि कभी भारतीय कशमीर से जुड़ गया, तो भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच 106 किलोमीटर लंबी साझी सीमा होगी। इसलिए, हम इस भ्रम में नहीं रह सकते कि अपने नए नाम ISPK वाला, नई बोतल में पुरानी शराब जैसा, इस्लामिक स्टेट (IS)  हमारा सिरदर्द नहीं है।
   

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