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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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चीन ने ताइवान पर हमला किया तो किस राह जाएगा भारत?

चीन ने ताइवान पर हमला किया तो किस राह जाएगा भारत?
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राम यादव

अमेरिका संभवतः यह मान कर चल रहा है कि ताइवान को अपना भू-भाग बताने वाला चीन उस पर हमले की तैयारी कर रहा है। अमेरिकी समाचार पोर्टल ब्लूमबर्ग का कहना है कि अमेरिकी सरकार ने चीनी हमले की संभावना को देखते हुए कुछ समय पूर्व भारत सरकार से यह बताने का अनुरोध किया कि उसका अपना आकलन क्या कहता है। ताइवान पर चीनी हमले के प्रति भारत का अपना रुख क्या होगा।

ब्लूमबर्ग के अनुसार अमेरिका के इस अनुरोध के बाद, कोई 6 सप्ताह पूर्व, भारत के उच्च रैंकिंग वाले सैन्य अधिकारी और रक्षा मंत्री के सलाहकार अनिल चौहान ने ताइवान पर सैन्य संघर्ष के प्रभावों के बारे में एक अध्ययन शुरू किया। अध्ययन में किसी सैन्य हस्तक्षेप के लिए भारत के विकल्पों की भी जांच-परख की जानी है। ब्लूमबर्ग का कहना है कि भारत सरकार के दो प्रतिनिधियों ने गुमनाम रहते हुए इस अध्ययन की पुष्टि की है। यह भी संभव है कि भारत में यह अध्ययन अमेरिकी अनुरोध से पहले ही शुरू हो गया रहा हो।

अध्ययन का उद्देश्यः भारतीय अध्ययन का उद्देश्य ताइवान पर चीनी आक्रमण की स्थिति में युद्ध और संघर्ष के विभिन्न परिदृश्यों की जांच-पड़ताल करना और संकट की स्थिति में भारत सरकार को समुचित कार्रवाई के लिए ठोस विकल्प सुझाना है। ब्लूमबर्ग के अनुसार कुछ भारतीय सैन्य अधिकारियों का मानना है कि ताइवान को लेकर सैन्य संघर्ष बहुत बढ़ने से पहले ही, एक कड़ी और निर्णायक प्रतिक्रिया द्वारा, संघर्ष बढ़ने की नौबत ही नहीं आने देना सही रणनीति होगी। भारत को इस बात की भी आशंका है कि ताइवान पर चीनी हमला, यूक्रेन में रूस के युद्ध जैसा लंबा खिंच सकता है। भारत इसे हर हालत में टालना चाहेगा।

भारत भी अकेला नहीं रहना चाहेगाः ब्लूमबर्ग पोर्टल का कहना है कि यूक्रेन के प्रसंग में भारत द्वारा रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का समर्थन करने से इनकार कर देने के बाद, ताइवान के प्रसंग में संभावित युद्ध की तैयारी में भारत के सहयोग को पश्चिम के लिए भारत की रियायत के रूप में देखा जा रहा है। इसी प्रकार, चीन के साथ अपने तनावपूर्ण रिश्ते के कारण भारत को भी अमेरिका और उसके साथी देशों के सहयोग की आवश्यकता है। 1962 से चला आ रहा भारत-चीन सीमा विवाद 2020 में पुनः उग्र हो गया। वह कभी भी एक नए और बड़े सशस्त्र संघर्ष का रूप ले सकता है। उस स्थिति में भारत भी अकेला नहीं रहना चाहेगा।

कांग्रेस भी पश्चिम से एकजुटता चाहती हैः G-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत की कांग्रेस पार्टी के एक नेता और सांसद मनीष तिवारी ने बर्लिन के एक प्रमुख दैनिक 'बेर्लिनर त्साइटुंग' के साथ एक बातचीत में कहा कि हमारे ‘संबंध स्पष्ट रूप से सामान्य नहीं हैं... इसलिए हम चीन के साथ व्यवहार करते समय पश्चिम से अधिक एकजुटता देखना चाहेंगे’ इसका अर्थ यही लगाया जा रहा है कि चीन के प्रसंग में मोदी सरकार की अमेरिका से निकटता का कांग्रेस पार्टी विरोध नहीं करेगी।

भारत ने हाल के वर्षों में अमेरिका के साथ रक्षा संबंधों को काफी बढ़ाया है। अमेरिका, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया के साथ मिल कर चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के उद्देश्य से 'क्वाड' नामक सुरक्षा वार्ता में भी शामिल हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी की पिछली अमेरिका यात्रा के समय राष्ट्रपति बाइडन ने उनकी जैसी अपूर्व आवभगत की और जिस प्रकार कई महत्वपूर्ण समझौते आदि हुए, वे भी यही गवाही देते हैं कि चीन के विस्तारवाद की रोकथाम के लिए भारत को पश्चिमी देशों के सहयोग की, और पश्चिमी देशों को भारत के सहयोग की परम आश्यकता है।
Edited by navin rangiyal 

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