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ट्रंप और जिनपिंग की रस्साकशी का दौर

ट्रंप और जिनपिंग की रस्साकशी का दौर
, सोमवार, 11 दिसंबर 2017 (17:30 IST)
हालांकि वर्ष 2017 की शुरुआत ही अमेरिकी राजनीति के चौंकाने वाले परिणाम से हुई जब अलोकप्रिय समझे जाने वाले रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप ने हिलेरी क्लिंटन को हराकर अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीत लिया, यह बात अलग है कि लोकप्रिय वोटों के मामले में ट्रंप पीछे रहे। वर्ष के दौरान  भारत और चीन के बीच डोकलाम का मुद्दा अहम बना रहा और लम्बे गतिरोध के बाद दोनों देशों की  सेनाएं अपने-अपने क्षेत्र में लौट गईं, लेकिन लेकिन वर्ष के समाप्त होते-होते फिर से बड़ी संख्या में चीनी सैनिक डोकलाम में फिर से डट गए और फिर किसी गतिरोध को टालने के लिए विदेश मंत्री  सुषमा स्वराज को नए सिरे से राजनयिक प्रयासों की जरूरत पड़ गई है।
 
 
अमेरिका के आधिपत्य को दुनिया में चुनौती देने वाले चीन का सपना है कि वह दुनिया की एकमात्र महाशक्ति बने और चीनी राजनीति और राजनेता इस दिशा में लगातार आगे बढ़ रहे हैं। डोकलाम में हालांकि चीन की कोशिश सफल नहीं हो सकी थी, लेकिन चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग दोबारा राष्ट्रपति बनने और पार्टी व सत्ता पर अपनी पकड़ बनाने में सफल हुए हैं।
 
 
अमेरिकी ट्रंप को दूरदर्शी राष्ट्रपति नहीं मानते हैं, क्योंकि वे विवादास्पद और एकपक्षीय फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं। इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए उन्होंने यरुशलम को इसराइली राजधानी के रूप में मान्यता दे दी, जबकि यरुशलम में एक भी विदेशी दूतावास नहीं है। स्वाभाविक है कि ट्रंप के इस कदम से मुस्लिम जगत में खलबली मच गई। अगर कहा जाए कि इस वर्ष के दौरान अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच परमाणु हथियारों की जंग को लेकर शीतयुद्ध छाया रहा तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। उत्तर कोरिया ने अपनी हरकतों से और परमाणु मिसाइलों के परीक्षणों से अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया की नाक में दम किए रखा।
 
 
चीन ने जहां अपनी कारगुजारियों से अपने विरोधियों और पड़ोसियों को तंग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भारत में अरुणाचल को लेकर दवाब, ब्रह्मपुत्र को गंदा करने के साथ हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहने का दंभ जोर पकड़ता रहा।‍ चीन के करीबी सहयोगी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पनामा गेट मामले में प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा, वहीं देश के कई हिस्सों से अस्थिरता के समाचार आते रहे। वर्ष के दौरान कंप्यूटर वायरस रेनसमवेयर के हमले ने करीब 150 देशों में खलबली मचा दी। 22 मई को इंग्लैंड, मेनचेस्टर के एरियाना ग्रेंड कन्सर्ट पर एक आतंकवादी बम हमले में 22 लोगों की मौत और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए।
 
 
जुलाई-अगस्त माह में म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ चलाए जा रहे सैन्य अभियान को जातीय संहार का उदाहरण बताया गया है। इस बात का दावा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायोग ने किया है। लाखों की संख्या में रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश और भारत में घुस आए, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि रोहिंग्या मुस्लिम, हिंदू शरणार्थी, बांग्लादेश और भारत में नारकीय जीवन बिता रहे हैं और दुनिया की ओर से उन्हें कोई सहायता भी नहीं मिल रही है।
 
 
अमेरिका में हथियारों की बिक्री सब्जी-भाजी की तरह होने का परिणाम देश के लॉसवेगास शहर में हमले के तौर पर सामने आया। स्टीफन पैडक नाम के एक व्यक्ति ने संगीत समारोह को सुनने के लिए जुटे 22 हजार की भीड़ पर गोलियों की बरसात कर दी जिसमें 58 लोग मारे गए और 546 लोग घायल हो गए। इससे पहले अमेरिकी इतिहास में एक अकेले व्यक्ति के हमले में ऑरलैंडो नाइट टक्लब शूटिंग में 2016 में दर्जनों लोग मारे गए थे और घायल हुए थे।
 
 
जबकि 14 अक्टूबर को सोमालिया में आतंकवादी संगठन अल शबाब के हमले में हुए एक भीषण विस्फोट में राजधानी मोगादिशू में कम से कम 512 लोग मारे गए और 316 अन्य लोग घायल हो गए। इस वारदात के लिए आतंकवादियों ने एक ट्रक में विस्फोटक भरकर उसे उड़ा दिया था। आतंकवाद के इस दौर के साथ-साथ अलगाववाद की भी हवा चली। स्पेन में कैटेलोनिया ने स्वतंत्रता की घोषणा तो कर दी, लेकिन कैटलान गणराज्य को न तो स्पेनिश सरकार या अन्य किसी देश ने मान्यता प्रदान की। 
 
वर्ष के दौरान प्राकृतिक त्रासदियों ने भी लोगों की जान सांसत में डाले रखी। 12 नवंबर को ईरान और इराक की सीमा पर रिक्टर पैमाने पर 7.3 की तीव्रता का भूकंप आया, जिससे कम से कम 530 लोगों की मौत हो गई और 70 हजार से ज्यादा लोग बेघर हो गए, जबकि मिस्र सिनाई के एक आतंकवादी हमले में 305 श्रद्धालुओं की मौत हो गई और सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हुए। विदित हो कि यह आतंकवादी हमला एक ‍मस्जिद पर किया गया था।

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