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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के सामने है चुनौतियों का अंबार

ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के सामने है चुनौतियों का अंबार
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राम यादव

ब्रिटेन के लिए 2022 एक बहुत ही घटना-प्रधान वर्ष सिद्ध हुआ है। 70 वर्षों तक राजसिंहासन को सुशोभित करने के बाद रानी एलिज़ाबेथ इस दुनिया से चली गईं। देश ने एक ही साल में दो प्रधानमंत्रियों को जाते और तीसरे को आते देखा। जनता पिछले 40 वर्षों की सबसे रिकॉर्ड-तोड़ मंहगाई झेल रही है और सड़कों पर प्रदर्शन करने लगी है। एक ही साथ इतनी सारी समस्याएं उठ खड़ी हुई हैं कि भारतवंशी नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक का भी माथा चकरा रहा है।
 
ब्रिटिश इतिहास में सबसे लंबे समय तक राज कर चुकीं रानी एलिज़ाबेथ के अंतिम संस्कार के ठीक बाद, केवल 31 दिनों तक प्रधानमंत्री रहीं लिज़ ट्रस की शानदार विफलता ने, वहां कई छोटी-बड़ी तबाहियों की श्रृंखला शुरू कर दी। इसके वास्तविक कारण, हालांकि, बहुत पीछे जाते हैं। कारणों की जड़ें ब्रिटेन की रूढ़िवादी टोरी पार्टी में हैं, जो इस समय सत्तारूढ़ है और अपनी ही भीतरी गुटबंदी और कलह में उलझकर दिशाहीन हो गई है।
 
एक ही साल में ब्रिटेन के तीसरे प्रधानमंत्री बने ऋषि सुनक भी इसी टोरी पार्टी के हैं। वे बहुत सोच-समझ कर पैर रखने वाले विवेकपूर्ण नेता हैं। पर समस्याओं और चुनौतियों का अंबार हर दिन इतना बड़ा होता गया है कि वे उसके नीचे दबे जा रहे हैं। एक साथ अनेक मोर्चों पर लड़ नहीं पा रहे हैं। सबसे बड़ी चुनौती है, 10 प्रतिशत से भी अधिक मंहगाई से जूझ रही ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को जल्द से जल्द पटरी पर लाना। उनके पूर्वगामी, बड़बोले बोरिस जॉन्सन ने, ब्रिटिश जनता को सब्ज़बाग दिखाकर अपने तथाकथित 'ब्रेक्सिट अभियान' द्वारा यूरोपीय संघ को छोड़ तो दिया, पर इस निर्गमन ने ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति को अच्छी-ख़ासी चपत लगा दी है।
 
बोरिस जॉन्सन के वादे पड़ रहे हैं भारी : बोरिस जॉन्सन कहा करते थे कि यूरोपीय संघ की सदस्यता त्याग देने के बाद ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था सरपट दौड़नें लगेगी। हो रहा है इसका उलटा। जॉन्सन ने जो झूठे वादे किए, उन्हीं की टोरी पार्टी के ऋषि सुनक या तो उन्हें अब पूरा करें या फिर अपनी फ़जीहत होती देखें। जॉन्सन को पिछली गर्मियों में अपना पद त्यागना पड़ा, क्योंकि कोरोनावायरस वाले लॉकडाउन के दिनों में वे प्रधानमंत्री निवास 10, डॉउनिंग स्ट्रीट में लॉकडाउन की धज्जियां उड़ाते हुए पार्टियां मनाने में लगे थे।
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सुनक हालांकि एक तर्क एवं विवेकसंगत व्यक्ति ज़रूर हैं, पर उनके पास भी उन वर्तमान आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं का झटपट समाधान निकालने की कोई जादुई छड़ी नहीं है, जो ब्रेक्सिट के बाद से जमा हो रही हैं। उदाहरण के लिए, दिसंबर के मध्य से ब्रिटेन, श्रमिक हड़तालों की 1980 वाले दशक के बाद की सबसे बड़ी लहर का सामना कर रहा है। रेल कर्मचारी, डाकिये और यहां तक कि अस्पताली नर्सों और आपातकालीन सेवाओं के कर्मचारी भी एक ऐसी पार्टी की सरकार नहीं चाहते, जिसने देश को आर्थिक मंदी की तरफ धकेल दिया है। बोरिस जॉन्सन की सरकार में ऋषि सुनक वित्तमंत्री थे, इसलिए वे भी अपनी ज़िम्मेदारी को झुठला नहीं सकते।
 
सुनक हैं चौतरफा निशानों पर : स्वाभाविक है कि सुनक का कोई दोष हो या न हो, अक्टूबर के अंत में 10, डाउनिंग स्ट्रीट में पदभार संभालने के बाद से वे ही हर तरफ़ से निशाने पर हैं। उनसे ठीक पहले, जब लिज़ ट्रस एक महीने तक ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थीं, तब उनकी सरकार ने उच्च आय वर्ग के लोगों के लिए आयकर की दर में कटौती की घोषणा की। इस कटौती से लाभान्वित होने वाले लोग कुल मिलाकर 45 अरब पाउंड की बचत करते, पर राजकोष को 45 अरब पाउंड का घाटा होता। इस घाटे को पाटने का कोई उपाय नहीं बताए जाने के कारण शेयर बाज़ार में खलबली मच गई।
 
ऋषि सुनक को पदभार संभालते ही, 180 अंश घूमना और कहना पड़ा कि करों में कटौती नहीं हो सकती। कटौती के बदले करों में बढ़ोतरी तथा यथासंभव बचत द्वारा राजकोष में कम से कम 55 अरब पाउंड और पहुंचाने होंगे। यह एक ऐसी मितव्ययिता नीति है, जो डेविड कैमरन की सरकार वाली मितव्ययिता नीति के समान है और जिसके लिए वर्तमान टोरी सरकार के पास वास्तव में कोई जनादेश नहीं है।
 
ऋषि सुनक के पास जनादेश नहीं है : 2019 के ब्रिटिश आम चुनाव के विजेता रहे और प्रधानमंत्री बने बोरिस जॉन्सन ने उस समय जनता से वादा किया था कि उनकी पार्टी विशेष रूप से उत्तरी ब्रिटेन की ग़रीब जनता की वित्तीय सहायता करेगी। समझा जाता है कि यह लुभावना वादा ही उनकी पार्टी की चुनावी विजय का एक बड़ा कारण बना। इसी जनादेश के आधार पर बोरिस जॉनसन प्रधान मंत्री बने। किंतु, ऋषि सुनक किसी आम चुनाव द्वारा प्रधानमंत्री नहीं बने हैं। उनकी पार्टी ने अपने सांसदों के बीच मतदान द्वारा उन्हें चुना है। इसलिए उनका पक्ष इस दृष्टि से कमज़ोर पड़ जाता है कि वे अपने प्रति किसी जनादेश का दावा नहीं कर सकते। उनके हाथ उन पुराने वादों से काफ़ी कुछ बंधे हुए हैं, जो बोरिस जॉन्सन ने किए थे।
 
प्रेक्षकों का यह भी कहना है कि टोरी पार्टी के भीतर ऋषि सुनक की स्थिति इतनी सुदृढ़ भी नहीं है कि वे अपनी हर बात मनवा सकें। वे जो बचत करना चाहते हैं, उसके लिए ब्रिटेन में बहुत गुंजाइश भी नहीं है। सरकारी सेवाओं और राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली (नैश्नल हेल्थ सिस्टम—NHS) को बचत के नाम पर पिछले कई वर्षों में पहले ही इतना निचोड़ लिया गया है कि अब निचोड़ने लायक कुछ बचा ही नहीं है। आजकल की मंहगाई दर के चलते बचत का हर नया प्रयास न केवल व्यापक असंतोष और हड़तालों की बलि चढ़ सकता है, उनकी अपनी कुर्सी को भी गिरा सकता है। अगला चुनाव विपक्षी लेबर पार्टी के पक्ष में जा सकता है।
 
ब्रेक्सिट के बाद से अर्थव्यवस्था लुढ़की : टैक्स अनुमानों के लिए ब्रिटेन के स्वतंत्र संस्थान (OBR) ने हाल ही में गणना की है कि यूरोपीय संघ छोड़ने के बाद से ब्रिटेन का सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GDP) पहले ही 4 प्रतिशत घट गया है। यह रुझान घटने की जगह बढ़ रहा है। यानी, ब्रेक्सिट छोड़ने के लाभों के जो सब्ज़बाग जनता को दिखाए जाते थे, वे सब अभी तक नदारद हैं।

ऐसे में बुद्धिमत्ता इसी में दिखती है कि ब्रिटेन में जिस किसी पार्टी की सरकार हो, वह देश को पहुंच रही आर्थिक हानियों को न्यूनतम रखने के लिए, एक सीमित समय के लिए ही सही, यूरोपीय संघ से हाथ मिलाने की सोचे। इस भूलसुधार की संभावना हालांकि बहुत कम ही है, क्योंकि प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भी ब्रेक्सिट के पैरोकार रहे हैं और फिलहाल अपने आप को ब्रेक्सिट समर्थक अपनी पार्टी के शिकंजे में पाते हैं। 
 
ब्रिटेन में यदि अभी नए चुनाव होते हैं, तो देश के अधिकांश हिस्सों में टोरियों का लगभग सफ़ाया हो जाएगा। इससे अपनी पार्टी को अनुशासित करने की ऋषि सुनक की क्षमता भी कमज़ोर होगी। टोरी पार्टी के 13 सांसदों ने पहले ही घोषणा कर दी है कि वे अगले चुनाव से पहले इस्तीफ़ा दे देंगे। कई अन्य भी निराश हैं और नए कामों की तलाश में हैं। संसद में किसी मतदान के समय, किसी संदेह की स्थिति में, वे अपनी इच्छानुसार मतदान कर सकते हैं। उनके ऊपर संसदीय दल का दबाव नहीं होगा। 
 
भारत में जो लोग और नेतागण हर समय मंहगाई और बेरोज़गारी का रोना रोते हैं, उन्हें चाहिए वे कभी-कभी यूरोप और अमेरिका के उन देशों का भी हालचाल जान लिया करें, जिन्हें वे इस धरती पर स्वर्ग के समान समझते हैं। जहां तक बेचारे 'बर्तानिया महान' की बात है, तो हम तो यही आशा व कामना करेंगे कि ब्रिटेन का पहला भारतवंशी प्रधानमंत्री इतना लोकप्रिय बने कि अभी एक लंबे समय तक वहां की जनता का सबसे चहेता प्रधानमंत्री कहलाए।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala
 

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