स्वामी विवेकानंद के 10 अनमोल विचार जानिए...
* स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि जिस पल मुझे यह ज्ञात हो गया कि हर मानव के हृदय में भगवान हैं तभी से मैं अपने सामने आने वाले हर व्यक्ति में ईश्वर की छवि देखने लगा हूं और उसी पल मैं हर बंधन से छूट गया। हर उस चीज से जो बंद रखती है, धूमिल हो जाती है और मैं तो आजाद हूं।
* विवेकानंद कहते हैं कि ईसा मसीह की तरह सोचो और तुम ईसा बन जाओगे। बुद्ध की तरह सोचो और तुम बुद्ध बन जाओगे। जिंदगी बस महसूस होने का नाम है। अपनी ताकत, हमारी कला-कौशल का नाम है जिनके बिना ईश्वर तक पहुंचना नामुमकिन है।
* बाहर की दुनिया बिलकुल वैसी है, जैसा कि हम अंदर से सोचते हैं। हमारे विचार ही चीजों को सुंदर और बदसूरत बनाते हैं। पूरा संसार हमारे अंदर समाया हुआ है, बस जरूरत है चीजों को सही रोशनी में रखकर देखने की।
* अगर पैसा मनुष्यों की अच्छे काम करने में मदद करता है तो पैसा महत्वपूर्ण है, पर अगर वह दूसरों की मदद नहीं करता तो फिर यह पैसा किसी काम का नहीं सिवाय एक बुराई के। इसीलिए इससे जितनी जल्दी पीछा छूटे, उतना ही अच्छा।
* चारों ओर बस प्रेम ही प्रेम है। प्यार फैलाव है, तो स्वार्थ सिकुड़न है। अत: दुनिया का बस एक ही नियम होना चाहिए, प्रेम... प्रेम... प्रेम...! जो प्रेम करता है, प्रेम से रहता है, वही सही मायने में जीता है। जो स्वार्थ में जीता है, वो मर रहा है इसलिए प्यार पाने के लिए प्यार करो, क्योंकि यही जिंदगी का नियम है।
* सबसे पहले यह अच्छे से जान-समझ लो कि हर बात के पीछे एक मतलब होता है। इस दुनिया की हर चीज बहुत अच्छी है, पवित्र और सुंदर है। अगर आपको कुछ बुरा दिखाई देता है तो इसका मतलब यह नहीं कि वो बुरा है। इसका मतलब यह है कि आपने उसे सही रोशनी में नहीं देखा।
* तुम किसी को दोष मत दो। अगर तुम अपने हाथ आगे बढ़ाकर किसी की मदद कर सकते हो तो करो, अगर नहीं कर सकते हो तो अपने हाथ बांधकर खड़े रहो। अपने वालों को शुभकामनाएं दो और उन्हें उनके रास्ते जाने दो। आप दोष देने वाले कोई नहीं होते हैं।
* कभी भी यह मत सोचो कि तुम्हारे लिए, तुम्हारी आत्मा के लिए कुछ भी नामुमकिन है। यह सोच ही सबसे ज्यादा दुखदायी है। अगर कोई पाप है, तो वो सिर्फ और सिर्फ अपने आपको या दूसरों को कमजोर मानना है।
* तुम्हें अंदर से सीखना है सबकुछ। तुम्हें कोई नहीं पढ़ा सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। अगर यह सब कोई सिखा सकता है तो यह केवल आपकी आत्मा है।
* सच्चाई के लिए कुछ भी छोड़ देना चाहिए, पर किसी के लिए भी सच्चाई नहीं छोड़ना चाहिए।
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