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लाला लाजपत राय : जानें पंजाब केसरी के बारे में 7 खास बातें

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शुक्रवार, 28 जनवरी 2022 (11:44 IST)
पंजाब केसरी के नाम से मशहूर प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय का जन्म पंजाब के मोगा जिले के दुधिया में 28 जनवरी 1865 में हुआ था। लाला लाजपतराय अकेले नहीं थे। उनकी तिकड़म थी। तीन प्रमुख नेता थे जिन्‍हें लाल-बाल-पाल कहा जाता था। वे इंडियन नेशनल कांग्रेस में गरम दल के नेताओं में से थे। 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ उन्‍होंने प्रदर्शन में बढ़कर हिस्सा लिया था। हालांकि इस दौरान, उन्‍हें पुलिस लाठीचार्ज में गंभीर चोट आई थी। असहनीय दर्द के बाद उनकी 17 नवंबर,1928 को लाहौर में 63 साल की उम्र में निधन हो गया था। उनकी जन्‍म जयंती विशेष पर जानतें है उनके बारे में 7 बड़ी बातें -

- पंजाब के लाला लाजपत राय देश की उन वीरों में से थे जो स्वतंत्रता संग्राम की आग में आंखों पर पट्टी बांधकर कूद गए। और मातृभूमि के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी।

- 28 जनवरी, 1865 को लाला लाजपत राय का जन्‍म पंजाब के मोगा जिले में हुआ था। पिता जी पेशे से अध्यापक और उर्दू लेखक थे जिस वजह से उन्‍हें भी भाषण और लेखन में बहुत रुचि थी। उन्‍होंने हिसार और लाहौर से वकालत शुरू की थी।

- लाला लाजपतराय को शेर-ए-पंजाब का सम्‍मानित संबोधन देकर बोला जाता था। उनका एक ही मकसद था स्वावलंबन से स्‍वराज्‍य लाना चाहते थे।
 
- ब्रिटिश शासन था इसलिए कुछ भी करने के लिए ढेर सारे विचारों का नकारना उसके बाद कोई कदम उठाते थे। ऐसा सिर्फ पंजाब केसरी ही कर सकते थे। 1897 और 1899 में लाला लाजपत राय ने अकाल में पीड़ितों की तन, मन और धन से देश की सेवा की थी। उस दौरान आए भूकंप और अकाल समय में ब्रिटिश शासन ने कुछ मदद नहीं की थी तब लाला लाजपत राय ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और विपिनचंद्र पाल जैसे शेर आंदोलनकारियों से हाथ मिलाकर लोगों की मदद की। और अंग्रेजों के इस फैसले की जमकर बगावत की।

- वह वक्त लौट आया जब लाला जी की लोकप्रियता से अंग्रेज भी डरने लगे थे। सन् 1914-1920 तक लाला लाजपत राय को भारत आने की इजाजत नहीं दी गई।

- 1920 में जब वह भारत आए तब तक उनकी लोकप्रियता सातवें आसमान पर जा चुकी थी। 1920 में ही कलकत्ता में कांग्रेस के एक विशेष सत्र में गांधी से उनकी मुलाकात हुई। इसके बाद वे भी असहयोग आंदोलन का हिस्सा बन गए। पंजाब में उनके नेतृत्व में असहयोग आंदोलन हुआ। जिसके बाद से उन्‍हें पंजाब का शेर और पंजाब केसरी के नाम से पुकारा जाने लगा। कहा जाता है लाला लाजपत राय ने अपना सर्वोच्च बलिदान साइमन कमीशन में समय दिया।

-  30 अक्टूबर,1928 को इंग्लैंड के प्रसिद्ध  वकील सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक सात सदस्यीय आयोग लाहौर पहुंचा। सभी सदस्य अंग्रेज थे। समूचे भारत में इस कमीशन का पुरजोर विरोध हुआ। लाहौर महानगर बंद था। चहुओर 'साइमन कमीशन गो बैक, इंकलाब जिंदाबाद' की गूंज सुनाई दे रही थी।

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