अथर्व पंवार
कहते हैं विपदाएं ही व्यक्ति को मजबूत बनती है। वास्तविक उदाहरण है बछेंद्री पाल। उन्होंने बचपन से संघर्षों के साथ स्वयं को ढाल लिया और उन परिस्थितियों को पार कर उन्होंने सागर के माथे पर ( सागरमाथा पर्वत ) कदम रख दिए। आइए जानते हैं बछेंद्री पाल के बारे में -
प्रारंभिक जीवन
बछेंद्रीपाल का जन्म 24 मई 1954 को उत्तरकाशी में एक ग्रामीण परिवार में हुआ। उन्हें बचपन से पढ़ने की रूचि थी। उन्होंने अपनी स्नातक की शिक्षा पूरी की और बी एड की ट्रैनिग भी ली। पर बचपन से पहाड़ों की गोद में पल रही बछेंद्री का मन पुनः पहाड़ों में लग गया और वह पर्वत आरोहण करने लगी। उन्होंने नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग से इस विषय का कोर्स किया जिससे उनके जीवन की धारा सही दिशा बहने लगी। उन्होंने 1982 में गंगोत्री और रुदुगरा का पर्वतारोहण किया। इस कैम्प के दौरान उन्हें ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह ने इंस्ट्रक्टर की नौकरी दी।
एवेरेस्ट अभियान -
सागरमाथा (एवेरेस्ट) को फतह करने निकले भारतीय अभियान दल में बछेंद्री भी थी। इस समय विश्व की मात्रा 4 महिलाऐं ही एवेरेस्ट पर चढ़ चुकी थी। 23 मई 1984 को अपने जन्मदिन के एक दिन पूर्व ही स्वयं को उपहार दिया। एक बजकर सात मिनट पर एवेरेस्ट पर फतह करने वाली वह प्रथम भारतीय महिला बनी। इस अभियान दल में बछेंद्री के साथ 7 महिलाएं और 11 पुरुष और भी थे।
आपदाओं में राहत कार्य -
2013 में उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा में भी बछेंद्री पाल राहतकार्य करते नजर आई थी। इसी के अलावा वर्ष 2000 में गुर्जरात में आए भूकंप और 2006 में उड़ीसा में आए चक्रवात के बाद हुई तबाही में उन्होंने अपने अनुभव और देशप्रेम की खातिर राहतकार्य, राशन वितरण,उपचार, रेस्क्यू ऑप्रेशन इत्यादि किए।
अन्य उपलब्धियां -
वर्ष 1994 में उन्होंने गंगा नदी में हरिद्वार से कोलकाता तक 2500 किलोमीटर लम्बे नौका अभियान का नेतृत्व किया था। उन्होंने सियाचिन जैसे जोखिम भरे क्षेत्र से काराकोरम पर्वत श्रृंखला तक यह इस दुर्गम क्षेत्र में हुआ प्रथम महिला अभियान था। लगभग 4000 किलो मीटर लम्बा अभियान पूर्ण किया।
पुरस्कार -
अपने अद्भुत पुरुषार्थ के कारण ही उन्हें अनेक पुरस्कारों ने सम्मानित किया गया। उन्हें भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन से 1984 में स्वर्ण पदक , 1984 में ही सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'पद्मश्री', 1986 में 'अर्जुन अवार्ड' खेल पुरस्कार , उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 1995 में 'यश भारती सम्मान' और वर्ष 2014 में मध्यप्रदेश संस्कृति मंत्रालय द्वारा प्रथम 'वीरांगना लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय सम्मान' प्राप्त हुआ। वर्ष 1990 में इनका नाम 'गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स' में भी सूचीबद्ध किया गया।