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सर्वधर्म समभाव की मिसाल थी थियोसॉफिकल सोसायटी

अपना इंदौर
थियोसॉफिकल सोसायटी एक वह संस्था थी, जो सर्वधर्म सद्भाव और सत्य ही मुख्य ध्येय को लेकर स्थापित की गई थी। 17 नवंबर 1875 को न्यूयॉर्क में स्थापित, जिसका मुख्यालय भी यहीं था, जो 1879 में मुंबई शिफ्ट हो गया था। 1882 में थियोसॉफिकल सोसायटी का ऑफिस चेन्नई में स्थानांतरित हो गया।
 
आखिर क्या वजह है कि थियोसॉफिकल सोसायटी का इंदौर से कोई संबंध है। ऊंचे बनते भवन और शहरी संस्कृति में इस तरह ही कई संस्थाएं नगर में कहीं खो गईं। कई संस्थाएं, जो होलकर काल में नगर में थीं, का वजूद अब कहीं खोजने पर मिल जाए तो बड़ी बात होगी।
 
थियोसॉफिकल सोसायटी की इंदौर लॉज की स्थापना 1912 में हुई थी। उस वक्त राज्य के तुकोजीराव तृतीय राजा थे। समस्त भेदभाव से परे तुलनात्मक धर्म दर्शन तथा विज्ञान के अध्ययन को बढ़ावा देना इस संस्था का मुख्य उद्देश्य था।
 
इंदौर के वर्तमान में आरएनटी मार्ग पर देवी अहिल्या विश्वविद्यालय और झाबुआ टॉवर के समीप काफी समय पहले तक थियोसॉफिकल सोसायटी लॉज का इंदौर ऑफिस था। थियोसॉफिकल लॉज के इस ऑफिस, जो कॉर्नर की भूमि पर स्थित झाड़ियों और पेड़ों की छत्रछाया में एक पुरानी जर्जर हालत में भवन था, में इस संस्था का कार्य संचालित होता था। इस संस्था के भवन में अध्यात्म, धर्म और दर्शन की करीब 125 साल पहले प्रकाशित पुस्तकों का संग्रह था। सोसायटी का मुखपत्र, जो 1907 से प्रकाशित होता था, के प्रकाशन वर्ष से 90 के दशक तक की सभी प्रतियां सुरक्षित इस भवन में रखी थीं। इस भवन में कई दार्शनिक संतों के युवावस्था के चित्र भवन की दीवारों पर अपनी शोभा बढ़ा रहे थे।
 
सोसायटी की इंदौर लॉज में समय पर व्याख्यान और विद्वतजनों के विचारों के कार्यक्रम आयोजित होते रहते थे। समय के साथ इस तरह के कार्यक्रमों में आमजन की रुचि कम होती गई।
 
भवन की भूमि पर होता अतिक्रमण भी चिंता का विषय था। जाहिर है बौद्धिक वर्ग विवाद में न उलझकर अपनी कार्यशैली में व्यस्त रहना पसंद करता है। धीरे-धीरे टेलीविजन फिर मोबाइल संस्कृति ने एक सामाजिक सोच की संस्था का अस्तित्व ही खत्म कर दिया। आज के वक्त में मिलना-जुलना और विचारों का आदान-प्रदान तो करीब-करीब ख़त्म ही हो गया है।
 
अब थियोसॉफिकल सोसायटी के प्राचीन भवन के स्थान पर बहुमंजिला भवन निर्मित हो गया है। उम्मीद करें कि इस तरह के बौद्धिक स्तर की संस्थाओं को जिंदा रखे जाना हमारी संस्कृति का हिस्सा बने और मृत संस्था को पुन: जीवित कर एक नए कार्य की शुरुआत करें।

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