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इस्कॉन के संस्थापक भक्तिवेदान्त स्वामी श्रील प्रभुपाद का जीवन परिचय

इस्कॉन के संस्थापक भक्तिवेदान्त स्वामी श्रील प्रभुपाद का जीवन परिचय

WD Feature Desk

, गुरुवार, 14 नवंबर 2024 (11:32 IST)
ISKCON : दुनिया में कृष्ण भक्ति का सबसे बड़ा आंदोलन और संगठन है इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्णाकांशसनेस अर्थात इस्कॉन। इस आंदोलन की शुरुआत श्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपादजी ने की थी। स्वामी प्रभुपादजी ने ही इस्कॉन की स्थापना 1966 में न्यूयॉर्क सिटी में की थी। आओ जानते हैं श्रील प्रभुपाद जी का संक्षिप्त जीवन परिच।
 
स्वामी प्रभुपाद ने देश-विदेश में सौ से अधिक मंदिरों की भी स्थापना की और दुनिया को भक्ति योग का मार्ग दिखाने वाली कई किताबें लिखीं। उनके द्वारा स्थापित इस्कॉन को आमतौर पर हरे कृष्ण आंदोलन के रूप में जाना जाता है। ज्ञात हो कि इस्कॉन ने श्रीमद्भगवद् गीता और अन्य वैदिक साहित्य का 89 भाषाओं में अनुवाद किया, जो दुनियाभर में वैदिक साहित्य के प्रसार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। 
 
स्वामी प्रभुपाद का जीवन परिचय: 
स्वामी प्रभुपादजी का जन्म 1 सितम्बर 1896 को कोलकाता में हुआ। 55 बरस की उम्र में संन्यास लेकर पूरे विश्व में स्वामी जी ने हरे रामा हरे कृष्णा का प्रचार किया। 14 नवम्बर 1977 को वृंदावन में 81 वर्ष की उम्र में उन्होंने देह छोड़ दी।
 
उनके पिता गौर मोहन डे कपड़े के व्यापारी थे और उनकी माता का नाम रजनी था। उनका घर उत्तरी कोलकाता में 151, हैरिसन रोड पर था। गौर मोहन डे न अपने बेटे अभय चरण का पालन पोषण एक कृष्ण भक्त के रूप में किया। श्रील प्रभुपाद ने 1922 में अपने गुरु महाराज श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी से भेंट की। इसके ग्यारह वर्ष बाद 1933 में वे प्रयाग में उनके विधिवत दीक्षा प्राप्त शिष्य हो गए।
 
अब यह पत्रिका बैक टू गॉडहैड पश्चिमी देशों में भी चलाई जा रही है और तीस से अधिक भाषाओं में छप रही है। श्रील प्रभुपाद के दार्शनिक ज्ञान एवं भक्ति की महत्ता पहचान कर गौडीय वैष्णव समाज ने 1947 ईं. में उन्हें भक्ति वेदांत की उपाधि से सम्मानित किया।
 
1950 ईं. में चौवन वर्ष की उम्र में श्रील प्रभुपाद ने गृहस्थ जीवन से अवकाश लेकर वानप्रस्थ ले लिया जिससे वे अपने अध्ययन और लेखन के लिए अधिक समय दे सकें। श्रीलप्रभुपाद ने फिर श्री वृंदावन धाम की यात्रा की, जहां वे बड़ी ही सात्विक परिस्थितियों में मध्यकालीन ऐतिहासिक श्री राधा दामोदर मंदिर में रहे।
 
वहां वे अनेक वर्षों तक गंभीर अध्ययन एवं लेखन में संलग्न रहे। 1959 ई. में उन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया। श्री राधा दामोदर मंदिर में ही श्रील प्रभुपाद ने अपने जीवन के सबसे श्रेष्ठ और महत्वपूर्ण ग्रंथ का आरंभ किया था। यह ग्रंथ था अठारह हजार श्लोक संख्या के श्रीमद्भागवत पुराण का अनेक खण्डों में अंग्रेजी में अनुवाद और व्याख्या।
 
श्रीमद्भावगत के प्रारंभ के तीन खण्ड प्रकाशित करने के बाद श्रील प्रभुपाद सितबंर 1965 ईं में अपने गुरू के निर्देश का पालन करने के लिए अमेरिका गए। जब वे मालवाहक जलयान द्वारा पहली बार न्यूयार्क नगर में आए तो उनके पास एक पैसा भी नहीं था। अत्यंत कठिनाई भरे करीब एक वर्ष के बाद जुलाई 1966 ईं में उन्होंने अतंर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ की स्थापना की।
 
14 नवंबर 1977 ईं को कृष्ण बलराम मंदिर, वृंदावन धाम में अप्रकट होने के पूर्व तक श्रील प्रभुपाल ने अपने कुशल मार्ग निर्देशन के कारण इस संघ को विश्व भर में सौ से अधिक मंदिरों के रूप में आमों, विद्यालयों, मंदिरों, संस्थानों और कृषि समुदायों का वृहद संगठन बना दिया।
 
ऐसे महान संत विश्व भर में भगवान श्रीकृष्ण भक्ति का प्रचार करने और वैदिक सदाचार का परचम फहराने के लिए विख्यात श्रीमद्‍ ए.सी. भक्ति वेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद का 23 अगस्त को आविर्भाव दिवस है। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ अर्थात्‌ इस्कॉन की स्थापना कर संसार को कृष्ण भक्ति का अनुपम उपचार प्रदान किया।
 
आज विश्व भर में इस्कॉन के आठ सौ से ज्यादा केंद्र, मंदिर, गुरुकुल एवं अस्पताल आदि प्रभुपाद की दूरदर्शिता और अद्वितीय प्रबंधन क्षमता के जीते जागते साक्ष्य हैं।
 

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