Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

जयंती विशेष: दो संस्कृतियों के संगम संत कबीरदास

ललि‍त गर्ग
महामना संत कबीर भारतीय संत परंपरा और संत-साहित्य के महान हस्ताक्षर हैं। हमारे यहां संत-साहित्य का एक विशिष्ट महत्व रहा है। क्योंकि इस साहित्य ने कभी भोग के हाथों योग को नहीं बेचा, धन के बदले आत्मा की आवाज को नहीं बदला तथा शक्ति और पुरुषार्थ के स्थान पर कभी संकीर्णता और अकर्मण्यता को नहीं अपनाया। ऐसा इसलिये संभव हुआ क्योंकि कबीर अध्यात्म की सुदृढ़ परंपरा के संवाहक भी थे।
 
सत्व, रज, तम तीनों गुणों को छोड़कर वे त्रिगुणातीत बन गए थे। वे निर्गुण रंगी चादरिया रे, कोई ओढ़े संत सुजान को चरितार्थ करते हुए सद्भावना और प्रेम का गंगा को प्रवाहित किया। उन्होंने इस निर्गुणी चदरिया को ओढ़ा है। उन्हें जो दृष्टि प्राप्त हुई है, उसमें अतीत और वर्तमान का वियोग नहीं है, योग है। उन्हें जो चेतना प्राप्त हुई, वह तन-मन के भेद से प्रतिबद्ध नहीं है, मुक्त है। उन्हें जो साधना मिली, वह सत्य की पूजा नहीं करती, शल्य-चिकित्सा करती है। सत्य की निरंकुश जिज्ञासा ही उनका जीवन-धर्म रहा है। वही उनका संतत्व रहा। वे उसे चादर की भांति ओढ़े हुए नहीं हैं, बल्कि वह बीज की भांति उनके अंतस्तल से अंकुरित होता रहा है। कबीर एक ऐसे संत है, जिनके लिये पंथ और ग्रंथ का भेद बाधक नहीं। वे दो संस्कृतियों के संगम हैं। उनका मार्ग सहजता है, यही कारण है कि उन्होंने सहज योग का मार्ग सुझाया। वे जाति-पांति के भेदभावों से मुक्त एक सच्चा इंसान थे। उन्होंने अपने आध्यात्मिक चिंतन का सार इन अनुभूत शब्दों में व्यक्त किया है कि - 
 
क्या गाएं क्या लिखि बतलाएं, क्या भ्रमे संसार।
क्या संध्या तपन के कीन्हें जो नहिं तत्व विचारा।।
 
झूठ बनाने और अनर्थ गर्व करने से कुछ नहीं होने वाला है। इससे सिर्फ भ्रम पैदा होता है। संध्या तपंन से भी कोई लाभ नहीं होता, अगर मन में सत्य विचार नहीं। इसलिए उन्होंने सगुण-साकार भक्ति पर जोर दिया है, जिसमें निर्गुण निहित है। हर जाति, वर्ग, क्षेत्र और संप्रदाय का सामान्य से सामान्य व्यक्ति हो या कोई विशिष्ट व्यक्ति हो - सभी में विशिष्ट गुण खोज लेने की दृष्टि उनमें थी। गुणों के आधार से, विश्वास और प्रेम के आधार से व्यक्तियों में छिपे सद्गुणों को वे पुष्प में से मधु की भांति उजागर करने में सक्षम थे। परस्पर एक-दूसरे के गुणों को देखते हुए, खोजते हुए उनको बढ़ाते चले जाना कबीर के विश्व मानव या वसुधैव कुटुम्बकम् के दर्शन का द्योतक है।  
 
संत कबीर जन्म लहरतारा के पास जेठ पूर्णिमा को हुआ था। उनके पिता नीरू नाम के जुलाहे थे। वे किसी भी सम्प्रदाय और रूढियों की परवाह किए बिना खरी बात करते थे। 119 वर्ष की आयु में उन्होने मगहर में अपना देह त्यागी। कुछ लोगों का कहना है कि वे जन्म से मुसलमान थे और युवा अवस्था में स्वामी रामानंद के प्रभाव से उन्होंने हिन्दू धर्म की विशेषताओं को स्वीकारा। कबीर ने हिन्दु, मुसलमान का भेद मिटाकर हिन्दु भक्तों तथा मुसलमान फकीरों के साथ सत्संग किया और दोनो की अच्छी बातों को आत्मसात किया। उनके जीवन में कुरान और वेद ऐसे एकाकार हो गए कि कोई भेदरेखा भी नहीं रही। कबीर पढ़े लिखे नहीं थे पर उनकी बोली बातों को उनके अनुयायियों ने लिपिबद्ध किया जो लगभग 80 ग्रंथों के रूप में उपलब्ध है। कबीर ने भाईचारे, प्रेम और सद्भावना का संदेश दिया है। उनके प्रेरक एवं जीवन निर्माणकारी उपदेश उनकी साखी, रमैनी, बीजक, बावन अक्षरी, उलट बासी में देखे जा सकते हैं।
 
महात्मा कबीर समाज में फैले आडम्बरों के सख्त विरोधी थे। उन्होंने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। उन्होंने भगवान को कहीं बाहर नहीं अपने भीतर ही ढूंढ़ा। स्वयं को ही पग-पग पर परखा और निथारा। स्वयं को भक्त माना और उस परम ब्रह्म परमात्मा का दास कहा। वह अपने और परमात्मा के मिलन को ही सब कुछ मानते। शास्त्र और किताबें उनके लिये निरर्थक और पाखंड था, सुनी-सुनाई तथा लिखी-लिखाई बातों को मानना या उन पर अमल करना उनको गंवारा नहीं। इसीलिये उन्होंने जो कहा अपने अनुभव के आधार पर कहा, देखा और भोगा हुआ ही उन्होंने व्यक्त किया, यही कारण है कि उनके दोहे इंसान को जीवन की नई प्रेरणा देते थे। कबीर ने जिस भाषा में लिखा, वह लोक प्रचलित तथा सरल थी। कबीर शब्दों का महासागर है, ज्ञान का सूरज है। उनके बारे में जितना भी कहो, थोड़ा है, उन पर लिखना या बोलना असंभव जैसा है। सच तो यह है कि बूंद-बूंद में सागर है और किरण-किरण में सूरज। उनके हर शब्द में गहराई है, सच का तेज और ताप है।
 
कबीर सर्वधर्म सद्भाव के प्रतीक थे, साम्प्रदायिक सद्भावना एवं सौहार्द को बल दिया। उनको हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही संप्रदायों में बराबर का सम्मान प्राप्त था। दोनों संप्रदाय के लोग उनके अनुयायी थे। यही कारण था कि उनकी मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। हिन्दू कहते थे कि उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से होना चाहिए और मुस्लिम कहते थे कि मुस्लिम रीति से। किंतु इसी छीना-झपटी में जब उनके शव पर से चादर हट गई, तब लोगों ने वहां फूलों का ढेर पड़ा देखा। यह कबीरजी की ओर से दिया गया बड़ा ही चमत्कारी और सशक्त संदेश था कि इंसान को फूलों की तरह होना चाहिए- सभी धर्मों के लिए एक जैसा भाव रखने वाले, सभी को स्वीकार्य। बाद में वहां से आधे फूल हिन्दुओं ने ले लिए और आधे मुसलमानों ने तथा अपनी-अपनी रीति से उनका अंतिम संस्कार किया।
 
आमतौर पर माना यह जाता है कि कबीर एक विद्रोही संत थे, जिन्होंने सामाजिक कुरीतियों और धार्मिक पाखंडों के खिलाफ आवाज उठाई। लेकिन उन्होंने मन, चेतना, दंड, भय, सुख और मुक्ति जैसे सूक्ष्म विषयों पर भी किसी गंभीर मनोवैज्ञानिक की तरह विचार किया था और व्यक्ति को अध्यात्म की एकाकी यात्रा का मार्ग सुझाया था।
 
कबीर ने लोगों को एक नई राह दिखाई। घर-गृहस्थी में रहकर और गृहस्थ जीवन जीते हुए भी शील-सदाचार और पवित्रता का जीवन जिया जा सकता है तथा आध्यात्मिक ऊंचाइयों को प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि पूजा-पाठ और धार्मिक आडंबरों से आध्यात्मिक प्रगति नहीं होती है। आध्यात्मिक प्रगति होती है अपने मन को वश में रखने से, उसे निर्मल करने से और मन की पवित्रता से।
 
संत कबीर ने कहा है, ‘बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय। जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।’ इस दोहे में कबीर ने बताया है कि व्यर्थ में हम किसी दूसरे में दोष क्यों ढूंढने लगते हैं? हमें अपने अंदर झांक कर देखना चाहिए कि कहीं मुझमें कोई गलती तो नहीं। हमारी सबसे बड़ी गलतफहमी हमारी यह सोच होती है कि हम ही सही हैं, हमसे कभी भूल नहीं हो सकती। दरअसल, यह हमारा अहं है, जो हमें इस तरह सोचने पर मजबूर करता है। अपनी गलतियों के कारण ही हम दूसरों में दोष खोजते हैं। 
 
कबीर ने मानव चेतना के विकास के हर पहलू को उजागर किया। श्रीकृष्ण, श्री राम, महावीर, बुद्ध, जीसस के साथ-ही-साथ भारतीय अध्यात्म आकाश के अनेक संतों-आदि शंकराचार्य, नानक, रैदास, मीरा आदि की परंपरा में कबीर ने भी धर्म की त्रासदी एवं उसकी चुनौतियों को समाहित करने का अनूठा कार्य किया। जीवन का ऐसा कोई भी आयाम नहीं है जो उनके दोहों/विचारों से अस्पर्शित रहा हो। अपनी कथनी और करनी से मृतप्रायः मानव जाति के लिए कबीर ने संजीवनी का कार्य किया। इतिहास गवाह है, इंसान को ठोंक-पीट कर इंसान बनाने की घटना कबीर के काल में, कबीर के ही हाथों हुई। शायद तभी कबीर कवि मात्र ना होकर युगपुरुष  और युगस्रष्टा कहलाए। ‘मसि-कागद’ छुए बगैर ही वह सब कह गए जो श्रीकृष्ण ने कहा, नानक ने कहा, ईसा मसीह ने कहा और मुहम्मद साहब ने कहा। आश्चर्य की बात, अपने साक्ष्यों के प्रसार हेतु कबीर सारी उम्र किसी शास्त्र या पुराण के मोहताज नहीं रहे। न तो किसी शास्त्र विशेष पर उनका भरोसा रहा और ना ही उन्होंने जीवन भर स्वयं को किसी शास्त्र में बांधा। कबीर ने समाज की दुखती रग को पहचान लिया था। वे जान गए थे कि हमारे सारे धर्म और मूल्य पुराने हो गए हैं। नई समस्याएँ नए समाधान चाहती हैं। नए प्रश्न, नए उत्तर चाहते हैं। नए उत्तर, पुरानेपन से छुटकारा पाकर ही मिलेंगे।
 
कबीर कहते हैं कि जो कल करना है उसे आज करो और जो आज करना है उसे अभी करो। जीवन बहुत छोटा होता है अगर पल भर में समाप्त हो गया तो क्या करोगे। उनका मानना था कि अगर हमारा मन शीतल है तो इस संसार में हमारा कोई बैरी नहीं हो सकता। अगर अहंकार छोड़ दें तो हर कोई हम पर दया करने को तैयार हो जाता है। ये अनुभवजनित विचार कबीर की व्यापक सोच एवं धरती से सीधे संवाद का परिणाम है। उन्होंने धरती और धरती के लोगों की धड़कन को सुना। धड़कनों के अर्थ और भाव को समझा। इन धड़कनों को वे जितना आत्मसात करते चले, उतना ही उनका जीवन ज्ञान एवं संतता का ग्रंथ बनता गया। यह जीवन ग्रंथ शब्दों और अक्षरों का जमावड़ा मात्र नहीं, बल्कि इसमें उन सच्चाइयों एवं जीवन के नए अर्थों-आयामों का समावेश है, जो जीवन को शांत, सुखी एवं उन्नत बनाने के साथ-साथ जीवन को सार्थकता प्रदान करते हैं। उनके अनुभवों और विचारों ने एक नई दृष्टि प्रदान की। इस नई दृष्टि को एक नए मनुष्य का, एक नए जगत का, एक नए युग का सूत्रपात कहा जा सकता है। 
 
कबीर भारत की उज्ज्वल गौरवमयी संत परंपरा में सर्वाधिक समर्पित एवं विनम्र संत हैं। वे गुरुओं के गुरु थे, उनका फक्कड़पन और पुरुषार्थ, विनय और विवेक, साधना और संतता, समंवय और सहअस्तित्व की विलक्षण विशेषताएं युग-युगों तक मानवता को प्रेरित करती रहेगी। उनके जन्म दिवस पर न केवल भारतवासी बल्कि सम्पूर्ण मानवता उनके प्रति श्रद्धासुमन समर्पित कर गौरव की अनुभूति कर रहा हैं। 
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

पढ़ाई में सफलता के दरवाजे खोल देगा ये रत्न, पहनने से पहले जानें ये जरूरी नियम

Yearly Horoscope 2025: नए वर्ष 2025 की सबसे शक्तिशाली राशि कौन सी है?

Astrology 2025: वर्ष 2025 में इन 4 राशियों का सितारा रहेगा बुलंदी पर, जानिए अचूक उपाय

बुध वृश्चिक में वक्री: 3 राशियों के बिगड़ जाएंगे आर्थिक हालात, नुकसान से बचकर रहें

ज्योतिष की नजर में क्यों है 2025 सबसे खतरनाक वर्ष?

सभी देखें

धर्म संसार

24 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

24 नवंबर 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

Budh vakri 2024: बुध वृश्चिक में वक्री, 3 राशियों को रहना होगा सतर्क

Makar Rashi Varshik rashifal 2025 in hindi: मकर राशि 2025 राशिफल: कैसा रहेगा नया साल, जानिए भविष्‍यफल और अचूक उपाय

lunar eclipse 2025: वर्ष 2025 में कब लगेगा चंद्र ग्रहण, जानिए कहां नजर आएगा

આગળનો લેખ
Show comments