6 जनवरी : देशभक्त गुरु गोकुल दास महाराज की जयंती
6 जनवरी 1907 को गुरु गोकुल दास महाराज का जन्म उत्तरप्रदेश के बेलाताल गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम करणदास तथा माता का नाम श्रीमती हर्बी था। समाज परिवर्तन में मुख्य भूमिका निभाने वाले गोकुल दास जी मेघवंश, डोम, डुमार, बसोर, धानुक, नगारची, हेला आदि समाज के महान संत थे। वे एक तपस्वी, बाल ब्रह्मचारी महाराज थे। वे स्वभाव से शांत स्वरूपा थे। एकांतवास में रहना उन्हें बहुत प्रिय था। गुरु गोकुल दासजी हमेशा शोरगुल से दूर, एकांत स्थान पर रहते थे और अधिकतर समय मौन ही रहते थे।
महापुरुष कृपालु होते हैं, उनका दिल दया से पूर्ण होता है और दुःखियों के दुःख दूर करने के लिए स्वयं को कष्टों में डालते हैं। महाराजजी का कार्य क्षेत्र अपार था। वे ताप करते हुए ज्ञान गंगा बहाते रहते थे और जिज्ञासु उनका उपदेशामृत प्राप्त कर ज्ञान प्राप्त करते रहते थे। महाराजजी का समस्त जीवन यज्ञमय था। उनका सम्पूर्ण जीवन लोगों के हित करने में ही बीता।
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात 1962 में चीन के आक्रमण किए जाने पर उन्होंने प्रधानमंत्री नेहरूजी से भेंट की थी तथा अपने अनुयायियों को देश के लिए लड़ने और मरने की सलाह दी और स्वयं ने चित्रकूट की पहाड़ियों में घोर तपस्या करते हुए 7 दिन तक अन्न-जल का त्याग करके तप किया था।
अपने अनुयायियों के साथ सत्संगरत रहने वाले गोकुलदासजी ने पूरे देश का भ्रमण किया था। सन् 1964 में भारत के आक्रमण पर तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री से भेंट करके उन्होंने चित्रकूट की पहाड़ियों में भारत की विजय होने तक घोर तपस्या की थी।
गुरु गोकुल दासजी में देशभक्ति कूट-कूटकर भरी हुई थी। वे एक सच्चे देशभक्त थे। आजादी के आंदोलन में हिस्सा लेने वालों का वे बहुत सम्मान करते थे। वे हमेशा यही कहा करते थे कि संकट की घड़ी में हर भारतीय को धर्म, जाति के भेदभाव से ऊपर उठकर देश की सेवा करना चाहिए।
समाज के सजग प्रहरी और देशभक्त गोकुलदासजी समाज की पूजा-पद्धति, सामाजिक रीति-रिवाज, वैवाहिक पद्धति आदि को समान रूप से मानते थे। वे एक महान संत थे जिन्होंने अपना जीवन समाज को समर्पित कर उसे पहचान दिलाई। उनकी जयंती के अवसर पर गुरु पूजा व आरती का आयोजन भी किया जाता है। ऐसे महान संत को नमन!
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