प्रथमेश व्यास
शिवांगी वालिया एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और फूड व्लॉगर हैं। यूट्यूब पर इनके 5 हजार से ज्यादा सब्सक्राइबर्स हैं। आजकल शिवांगी अपने एक वीडियो को लेकर खूब वायरल हो रही हैं, जिसमें उन्होंने कहा है कि जो कुलचे हैं, वो मुगलों की देन हैं। शाहजहां के कहने पर उनके खानसामों ने गोभी, आलू और पनीर के कुलचों का आविष्कार किया। शिवांगी ने वीडियो में दावा किया कि कुलचों से बाद में पराठे बनाए गए।
ये वीडियो ट्विटर पर वायरल हुआ और लोगों ने शिवांगी को आड़े हाथ लेना शुरू कर दिया। लोगों ने कहा कि कुलचे और पराठे शताब्दियों पहले से भारत में हैं और इनका आविष्कार भी भारतीय राजाओं के कार्यकाल के दौरान ही किया गया था। इस मसले पर #Mughals ट्विटर पर ट्रेंडिंग में भी रहा। तो आइए हम विस्तार से जानते हैं कि आखिर कुलचे और परांठे भारत में आए कहां से ....
दक्षिण भारत की पूरणपोली से बने पराठे:
इतिहास के पन्नो को पलटने पर पता चलता है कि पराठा शब्द संस्कृत के परा+स्थितः से लिया गया है, जिसका मतलब है विभिन्न मसालों और सब्जियों से भरकर बनाई गई गेहूं की रोटी। महाराजा रणजीत सिंह के कार्यकाल के प्रचलित लेखक 'निज्जर' अपने द्वारा लिखी गई किताब Panjāb under the sultāns में लिखते हैं कि पराठों का जन्म दक्षिण भारत की लोकप्रिय पूरणपोली से लगभग 1000 से 1526 ईस्वी के बीच हुआ। यानी की शाहजहां के जन्म से कई साल पहले पराठे भारत में आ गए थे।
12वीं शताब्दी में मिलता है पराठों का जिक्र:
चालुक्यवंश के राजा सोमेश्वर द्वितीय द्वारा एक किताबी लिखी गई - मानसोल्लास, जिसे 12वीं शताब्दी की संस्कृत इनसाइक्लोपीडिया भी कहा जाता है। इस किताब में भी पराठों का जिक्र किया गया था कि किस तरह चालुक्य साम्राज्य में पराठे बनाए और खाए जाते थे। इन पराठों का स्वाद पहले मीठा हुआ करता था, उसके बाद इन्हे सब्जी और मसालों से भरकर बनाया जाने लगा। ये बात है शाह जहां के जन्म से करीब 300 साल पहले की।
कुलचे के बारे में ये कहा खुसरो ने:
इसके अलावा 1300 ईस्वी में जाने माने कवि और अलाउद्दीन खिलजी के दरबारी अमीर खुसरो ने अपने किताब में लिखा कि भारत में नान बहुत लोकप्रिय हुआ करते थे, जिन्हे बाद में सब्जियों की 'स्टफिंग' के साथ परोसा जाने लगा।
ये कहना गलत नहीं होगा कि मुगल बादशाह शाहजहां को कुलचे बहुत पसंद थे। उन्होंने अपने खानसामों से कुलचे भी बनवाए और तरह-तरह के पराठे भी। लेकिन, निज्जर और सोमेश्वर द्वितीय द्वारा लिखी गई किताबों से इस बात का पता चलता है कि शाहजहां के जन्म से कई साल पहले ही भारत में पराठों और कुलचों का आविष्कार हो गया था।