उनके पिता आशुतोष बाबू अपने जमाने ख्यात शिक्षाविद् तथा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। अत: महानता के सभी गुण डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भी विरासत में मिले थे। उनका विवाह सुधा देवी से हुआ था तथा उनको 2 पुत्र और 2 पुत्रियां हुईं। उन्होंने 22 वर्ष की आयु में एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा वे 24 वर्ष की उम्र में कोलकाता विश्वविद्यालय सीनेट के सदस्य बने।
उनका ध्यान गणित की ओर विशेष था। इसके अध्ययन के लिए वे विदेश गए तथा वहां पर लंदन मैथेमेटिकल सोसायटी ने उनको सम्मानित सदस्य बनाया। वहां से लौटने के बाद डॉ. मुखर्जी ने वकालत तथा विश्वविद्यालय की सेवा में कार्यरत हो गए।
डॉ. मुखर्जी ने सन् 1939 से राजनीति में भाग लिया और इसी को अपना कर्मक्षेत्र बनाया तथा आजीवन इसी में लगे रहे। उन्होंने गांधी जी व कांग्रेस की नीति का विरोध किया, जिससे हिन्दुओं को हानि उठानी पड़ी थी।
उन्होंने एक बार कहा था कि- 'वह दिन दूर नहीं जब गांधी जी की अहिंसावादी नीति के अंधानुसरण के फलस्वरूप समूचा बंगाल पाकिस्तान का अधिकार क्षेत्र बन जाएगा।' तथा उन्होंने नेहरू जी और गांधी जी की तुष्टिकरण की नीति का सदैव खुलकर विरोध किया। इसी कारणवश उन्हें संकुचित सांप्रदायिक विचार का द्योतक समझा जाने लगा।
डॉ. मुखर्जी ने स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में अगस्त 1947 को एक गैर-कांग्रेसी मंत्री के रूप में वित्त मंत्रालय का काम संभाला। तथा उन्होंने चितरंजन में रेल इंजन और विशाखापट्टनम में जहाज और बिहार में खाद बनाने का कारखाना आदि स्थापित करवाए। उनके सहयोग से ही हैदराबाद निजाम को भारत में विलीन होना पड़ा।
जब सन् 1950 में भारत की दशा दयनीय थी, तब इस स्थिति से डॉ. मुखर्जी के मन को गहरा आघात लगा और उन्होंने भारत सरकार की अहिंसावादी नीति के फलस्वरूप मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देकर संसद में विरोधी पक्ष की भूमिका का निर्वाह करने लगे।
एक ही देश में 2 झंडे और 2 निशान भी उन्हें स्वीकार नहीं थे। अतः कश्मीर का भारत में विलय करने के लिए डॉ. मुखर्जी ने प्रयत्न प्रारंभ कर दिए। इसके लिए उन्होंने जम्मू की प्रजा परिषद पार्टी के साथ मिलकर आंदोलन छेड़ दिया।
जब डॉ. मुखर्जी ने 8 मई 1953 को जम्मू के लिए कूच किया, तब सीमा प्रवेश के बाद उनको जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। वे 40 दिनों तक जेल में बंद रहे और 23 जून 1953 को जेल में रहस्यमय ढंग से उनका निधन हो गया।
इस तरह अखिल भारतीय जनसंघ के संस्थापक और राजनीति एवं शिक्षा के क्षेत्र में सुविख्यात रहे डॉ. मुखर्जी की 23 जून 1953 को मृत्यु की घोषणा की गईं। भारत देश में 'दो विधान, दो निशान नहीं चलेंगे' का नारा देने वाले डॉक्ट श्यामा मुखर्जी ने अपना पूरा जीवन देश को समर्पित कर दिया था।