रविवार की शाम ग्रैंड थिएटर लुमियर में इस साल के फेस्टिवल के अवार्ड्स दिए गए। रेड कॉरपेट पर जितनी चमक मुमकिन हो सकती थी उस से भी कहीं ज्यादा थी। आखिरकार यह आखिरी शाम थी, इसके बाद अगले साल तक इंतज़ार करना होगा। यही वजह थी कि अनसर्टेन रेगार्ड सेक्शन की जूरी प्रेजिडेंट उमा थुरमन, जो पूरे फेस्टिवल में आम से कपड़ों में नज़र आई, वह भी झिलमिलाते गाउन में रेड कारपेट पर मौजूद थीं।
मोनिका बेलुची ने फेस्टिवल के 70 साल पूरे होने के मौके पर उन सभी डायरेक्टर्स को याद किया जो इन बरसों में अपनी फिल्मों के जरिये इस फेस्टिवल को ख़ास बनाते रहे हैं। लेकिन इसके अलावा ज्यादा कोई तामझाम नहीं था। कम्पटीशन फिल्मों की जूरी प्रेजिडेंट पेड्रो अल्मोडोवर ने जूरी मेंबर्स और फेस्टिवल को शुक्रिया कहा और अवार्ड्स दिए गए।
इस साल एक नया अवार्ड जोड़ा गया है '70th anniversary jury prize' और यह निकोल किडमैन को मिला। इस साल 3 फिल्मों और एक टीवी ड्रामा को मिला कर 4 प्रोजेक्ट्स में निकोल की मौजूदगी थी। निकोल की 2 फिल्में (किलिंग ऑफ़ सेक्रेड डियर और द बिगाइल्ड ) कम्पटीशन सेक्शन में थीं , एक फिल्म (हाउ टू टॉक टू गर्ल्स एट पार्टीज़ ) आउट ऑफ़ कम्पटीशन में दिखाई गई। इतना ही नहीं निकोल जेन कैंपियन के टीवी सीरीज 'टॉप ऑफ़ द लेक' में भी काम कर रही हैं जिसके 2 एपिसोड भी आउट ऑफ़ कम्पटीशन के तहत दिखाए गए। जेन कैंपियन अभी तक इकलौती महिला डायरेक्टर हैं जिन्हें पाम डी'ओर अवार्ड मिला है।
120 बीट्स पर मिनट फ्रेंच फिल्म को ग्रां प्री अवार्ड दिया गया। यह फिल्म उस दौर की कहानी है जब एड्स एक महामारी की तरह फ़ैल चुका था और स्टूडेंट्स इलाज के लिए सरकार से लड़ाई लड़ रहे थे। फिल्म उन स्टूडेंट्स को बहुत नजदीक से दिखाती है जो एड्स के साथ जी तो रहे हैं। लेकिन किस तरह ?? वो अपने इलाज के लिए खुद ही नई नई रिसर्च के बारे में जानकारी जमा कर रहे हैं और दवा कंपनी से, सरकार से लड़ रहे हैं। फेस्टिवल की शुरुआत में दिखाई गई यह फिल्म आखिरी वक़्त तक सबसे बड़े अवार्ड की आस में थी। और जब जूरी प्रेजिडेंट इस बारे में बात कर रहे थे, जो खुद LGBT एक्टिविस्ट हैं, उनका गला लगभग रुंध गया यह कहते हुए कि मुझे बहुत पसंद आई लेकिन यह जूरी बहुत ही डेमोक्रेटिक जूरी है।
शाम का सबसे ख़ास अवार्ड पाम डी'ओर अवार्ड स्वीडन की फिल्म 'द स्क्वेयर' को मिला। यह फिल्म कला की दुनिया और हक़ीक़त को एक शानदार व्यंग्य से जोड़ती है। फिल्म में क्रिस्टियन जो एक म्यूजियम में क्यूरेटर हैं, का पर्स और फ़ोन चोरी हो जाता है। लेकिन फ़ोन चालू होने की वजह से उसे कंप्यूटर से ट्रैक किया जा सकता है और बस यहीं से शुरू होता है सिलसिला ऐसी बातों का जो शुरुआत में कुछ अजीब कुछ मजाकिया लगती हैं लेकिन जब उन्हें सोचें तो उनका बहुत ही अलग अर्थ सामने आता है (इस फिल्म पर बाद में लम्बी बात करेंगे ) रुबेन आउस्टलैंड की इससे पहले की फिल्म भी कान फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई थी और फिर ऑस्कर के लिए भी शॉर्टलिस्ट हुई थी।
जो अवार्ड जीत जाता है उनके लिए ख़ुशी की बात है लेकिन जो नहीं जीतता उसे आमतौर पर यही कहा जाता है कि यहाँ होना ही बड़ी बात है। हर बार एक ही बात दोहराने से उसका महत्व कम होता है लेकिन कान फिल्म फेस्टिवल हो या ऑस्कर या ओलंपिक्स, सही मायनों में बेस्ट ऑफ़ बेस्ट की कम्पटीशन में यह सबसे बड़ा सच है। इस साल की अभी तक तैयार फिल्मों में से सबसे बेहतर फिल्में यहां दिखाई गई । और कला की यही सबसे बड़ी खूबसूरती है कि किसी के लिए एक सी नहीं होती है। देखने वाले की नज़र ही नहीं और भी बहुत कुछ बातें हैं जो यह तय करती हैं कि किसी को कोई फिल्म क्यों ज्यादा पसंद आई। एक तरफ जहां विल स्मिथ (जूरी मेंबर ) ने कहा उन्हें जुपिटर'स मून सबसे ज्यादा पसंद आयी वहीं पेड्रो को 120 बीट्स पर मिनट। .और शायद इसलिए डेमोक्रेटिक जूरी का होना बहुत जरूरी है। हां इस बात की खातरी जरूर है कि किसी को भी दुःख नहीं हुआ होगा कि स्क्वेयर को अवार्ड मिला।