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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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होलाष्टक की पौराणिक और प्रामाणिक कथा

होलाष्टक की पौराणिक और प्रामाणिक कथा

अनिरुद्ध जोशी

फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा ​तिथि तक होलाष्टक माना जाता है। होलाष्टक होली दहन से पहले के 8 दिनों को कहा जाता है। इस बार 21-22 मार्च से 28 मार्च 2021 तक होलाष्टक रहेगा। आओ जानते हैं होलाष्टक की पौराणिक और प्रामाणिक कथा।

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बाल्यावस्था में प्रहलाद विष्णु की भक्ति करने लग गए थे। यह देखकर उनके पिता हिरण्याकश्यप ने उनके गुरु से कहा कि ऐसा कुछ करो कि यह विष्णु का नाम रटना बंद कर दे। गुरु ने बहुत कोशिश की किन्तु वे असफल रहे। तब असुरराज ने अपने पुत्र की हत्या का आदेश दे दिया।
 
सबसे पहले प्रहलाद को विष पिलाया गया परंतु श्रीहरि विष्णु की कृपा से उसका कोई असर नहीं हुआ। फिर उस पर तलवार से प्रहार किया गया, विषधरों के सामने छोड़ा गया, हाथियों के पैरों तले कुचलवाना चाहा, पर्वत से नीचे फिंकवाया, लेकिन हर बार श्रीहरि विष्णु ने प्रहलाद की जान बचाई और उनकी कृपा से प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ।
 
मान्यता है कि होली के पहले के आठ दिनों यानी अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक विष्णु भक्त प्रहलाद को काफी यातनाएं दी गई थीं। प्रहलाद को फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी को ही हिरण्यकश्यप ने बंदी बना लिया था। प्रहलाद को जान से मारने के लिए तरह-तरह की यातनाएं दी गईं। लेकिन प्रह्लाद विष्णु भक्ति के कारण भयभीत नहीं हुए और विष्णु कृपा से हर बार बच गए। अंत में अपने भाई हिरण्यकश्यप की परेशानी देख उसकी बहन होलिका आईं। होलिका को ब्रह्मा ने अग्नि से ना जलने का वरदान दिया था। लेकिन जब होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया तो वो खुद जल गई और प्रह्लाद बच गए।
 
बाद में जब प्रहलाद को स्वयं हिरण्याकश्यप ने मारना चाहा तो भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर नृसिंह भगवान प्रकट हुए और प्रह्लाद की रक्षा कर हिरण्यकश्यप का वध किया। तभी से भक्त पर आए इस संकट के कारण इन आठ दिनों को होलाष्टक के रूप में मनाया जाता है। प्रह्लाद पर यातनाओं से भरे उन आठ दिनों को तभी से अशुभ मानने की परंपरा चली आ रही है।

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इस कथा के अलावा एक और कथा है और वह यह कि देवताओं के अनुरोध पर कामदेव ने रति के साथ मिलकर शिवजी की तपस्या भंग करना का प्रयास किया था। वे 8 दिनों तकर हर प्रकार से शिवजी की तपस्या भंग करने में लगे रहे। अंत में शिव ने क्रोधित होकर कामदेव को फाल्गुन की अष्टमी पर ही भस्म कर दिया था। बाद में शिवजी ने रति का विलाप करने पर उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारा पति श्रीकृष्ण के यहां जन्म लेगा।
 
यही कारण है कि होलाष्टक के समय शिवजी, नृसिंह भगवान और श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है।

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