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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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डेली कॉलेज की तर्ज पर बना मल्हार आश्रम

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अपना इंदौर

इंदौर में 1885 ई. में लॉर्ड डफरिन द्वारा डेली कॉलेज का उद्घाटन किया गया था। वर्तमान भवन में वह 1912 में स्थानांतरित हुआ था। इस संस्था की स्थापना हेतु होलकर राज्य द्वारा भूमि व धन भी दिया गया था। महाराजा तुकोजीराव (तृतीय) चाहते थे कि डेली कॉलेज की तर्ज पर एक आवासीय शैक्षणिक संस्‍था इंदौर में कायम हो। 1922 में इंदौर राज्य के संस्‍थापक मल्हारराव होलकर की स्मृति में 'मल्हार आश्रम' की स्‍थापना की गई। 1921 में 'नार्मल स्कूल' के लिए एक भवन निर्मित किया गया था। उसी बीच मल्हार आश्रम की स्‍थापना की घोषणा की गई। इसलिए नार्मल स्कूल की बिल्डिंग में ही मल्हार आश्रम संचालित होने लगा। वर्तमान भवन बनने पर नार्मल स्कूल भवन से उसे यहां स्थानांतरित कर दिया गया।
 
डेली कॉलेज में सेंट्रल इंडिया के राजे-रजवाड़ों, ठिकानेदारों व जमींदारों के पुत्रों को शिक्षा के लिए प्रवेश दिया जाता था। मल्हार आश्रम का उद्देश्य सीमित था। इसमें केवल धनगर जाति के विद्यार्थियों को ही प्रवेश दिया जाता था। प्रारंभ में इसमें 50 विद्यार्थियों की व्यवस्था थी। एक वर्ष बाद ही अर्थात जुलाई 1923 में यहां 80 विद्यार्थियों के रहने का प्रबंध कर दिया गया।
 
इस विद्यालय में 10 से 12 वर्ष के बालकों को प्रवेश दिया जाता था। विद्यालय परिसर में ही उनके आवास, भोजन, शिक्षा व मनोरंजन की व्यवस्था की गई थी। छात्रावास में रहने वाले विद्यार्थियों को काष्ठ कला, सिलाई, बागवानी, संगीत, लेखा, प्राथमिक चिकित्सा, साबुन बनाना आदि का प्रशिक्षण दिया जाता था। सभी छात्रावासी स्काउट थे। विज्ञान का अध्ययन सभी को अनिवार्य रूप से करना पड़ता था। छात्रों को ड्रिल व सैनिक प्रशिक्षण भी दिया जाता था। खेलकूद के लिए विद्यालय में ही मैदान था। यहां हॉकी, फुटबॉल व क्रिकेट खेलने की सुविधाएं थीं। छात्रों को कोई एक खेल अवश्य खेलना होता था। सभी छात्रों को तैराकी का प्रशिक्षण दिया जाता था ताकि संकट के समय वे अपने प्राणों की रक्षा कर सकें।
 
मल्हार आश्रम
 
मल्हार आश्रम से पहला छात्र दल 1925 में मैट्रिक परीक्षा में सम्मिलित हुआ। उसी वर्ष इस संस्था को हाईस्कूल का दर्जा प्राप्त हुआ।
 
इस विद्यालय में 1925 में 10 विद्यार्थियों को दक्षिण भारत से लाकर भर्ती किया गया था। राज्य द्वारा यद्यपि इस आश्रम में दाखिल धनगर विद्यार्थियों के बौद्धिक व शारीरिक विकास पर पर्याप्त ध्यान दिया गया, किंतु इसमें प्रवेश सीमित कर संकुचित भावना दर्शाई गई थी, जो उचित न थी। इस विद्यालय में अध्ययन कर निकले विद्यार्थी बड़े गर्व से कहा करते थे कि उन्होंने मल्हार आश्रम में अध्ययन किया है। आजादी के बाद भी इस संस्था में पूर्व सुविधाएं जारी रहीं, अलबत्ता प्रवेश सभी के लिए खोल दिया गया। नगर में आज भी इस संस्था में अध्ययन किए हुए अनेक लोग हैं, जिनकी पुरानी स्मृतियां रोमांचित करती हैं।

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