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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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आप नहीं जानते होंगे नंदी कैसे बने भगवान शिव के गण?

आप नहीं जानते होंगे नंदी कैसे बने भगवान शिव के गण?

अनिरुद्ध जोशी

नंदी बैल : भगवान शिव के प्रमुख गणों में से एक है नंदी। भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय भी शिव के गण हैं। माना जाता है कि प्राचीनकालीन किताब कामशास्त्र, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र और मोक्षशास्त्र में से कामशास्त्र के रचनाकार नंदी ही थे। बैल को महिष भी कहते हैं जिसके चलते भगवान शंकर का नाम महेश भी है।

 
नंदी कैसे बने शिव के गण : शिव की घोर तपस्या के बाद शिलाद ऋषि ने नंदी को पुत्र रूप में पाया था। शिलाद ऋषि ने अपने पुत्र नंदी को संपूर्ण वेदों का ज्ञान प्रदान किया। एक दिन शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुण नाम के दो दिव्य ऋषि पधारे। नंदी ने अपने पिता की आज्ञा से उन ऋषियों की उन्होंने अच्छे से सेवा की। जब ऋषि जाने लगे तो उन्होंने शिलाद ऋषि को तो लंबी उम्र और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दिया लेकिन नंदी को नहीं।

 
तब शिलाद ऋषि ने उनसे पूछा कि उन्होंने नंदी को आशीर्वाद क्यों नहीं दिया? इस पर ऋषियों ने कहा कि नंदी अल्पायु है। यह सुनकर शिलाद ऋषि चिंतित हो गए। पिता की चिंता को नंदी ने जानकर पूछा क्या बात है पिताजी। तब पिता ने कहा कि तुम्हारी अल्पायु के बारे में ऋषि कह गए हैं इसीलिए मैं चिंतित हूं। यह सुनकर नंदी हंसने लगा और कहने लगा कि आपने मुझे भगवान शिव की कृपा से पाया है तो मेरी उम्र की रक्षा भी वहीं करेंगे आप क्यों नाहक चिंता करते हैं।

 
इतना कहते ही नंदी भुवन नदी के किनारे शिव की तपस्या करने के लिए चले गए। कठोर तप के बाद शिवजी प्रकट हुए और कहा वरदान मांगों वत्स। तब नंदी के कहा कि मैं उम्रभर आपके सानिध्य में रहना चाहता हूं। नंदी के समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को पहले अपने गले लगाया और उन्हें बैल का चेहरा देकर उन्हें अपने वाहन, अपना दोस्त, अपने गणों में सर्वोत्तम के रूप में स्वीकार कर लिया।
 
बैल की पूजा या कथा विश्व के सभी धर्मों में मिल जाएगी। सिंधु घाटी, मेसोपोटामिया, मिस्र, बेबीलोनिया, माया आदि सभी प्राचीन सभ्यताओं में बैल की पूजा का उल्लेख मिलता है। सभ्यताओं के प्राचीन खंडहरों में भी बैल की मूर्ति मिल जाएगी। सुमेरियन, असीरिया और सिंधु घाटी की खुदाई में भी बैल की मूर्ति पाई गई है। भारत में बैल खेती के लिए हल में जोते जाने वाला एक महत्वपूर्ण पशु रहा है।

 
बैल को लेकर दो कहावतें हैं- 'आ बैल मुझे तू मार' और 'कोल्हू का बैल'।
 
बैलों का योगदान : बैल एक चौपाया पालतू प्राणी है। यह गोवंश के अंतर्गत आता है। बैल प्राय: हल, बैलगाड़ी आदि खींचने का कार्य करते हैं। सांड इसका एक अन्य रूप है जिसे नंदी कहा जाता है। मानव विकास में बैलों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कृषि युग में बैल ने जहां खेतों को खोदा वहीं उसने आवागमन के साधन के रूप में गाड़ी को खींचा। इसी कारण बैल की विशेषता शक्ति-संपन्नता के साथ-साथ कर्मठता भी मानी जाने लगी।

 
एक समय था, जब बैल रेलगाड़ी भी खींचते थे। इंजन के अभाव में बैल ही मालगाड़ी को खींचा करते थे। भारतीय रेलवे के 160 वर्ष पूरे होने पर उसने 'भारतीय रेलवे की विकास गाथा' में इसका जिक्र किया है। इसका मतलब बैलों ने जहां बैलगाड़ी चलाई, वहीं रेलगाड़ी भी। बैलों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं उसमें एक कस्तूरी बैल भी है।
 
बैल है धर्म : वेदों ने बैल को धर्म का अवतार माना है और गाय को विश्व की माता माना है। वेदों ने बैल को गाय से अधिक मूल्यवान माना है इसलिए उससे काम कराते समय उसे अनुचित कष्ट न हो इस तरह से काम करवाने के नियम भी बनाए हैं। हमारे देश के 6 करोड़ 32 लाख (सन् 1992 के आंकडों के अनुसार) बैल खेतों में, रास्तों पर, तेल पीलने के कोल्हूओं में, आटा पीसने की चक्कियों में, कुओं पर लगे रेहट में रात-दिन काम करते हैं।चिलचिलाती धूप में, बर्फानी शीत में, मूसलधार वर्षा में या रात्रि के गाढ़े अंधकार में ये बैल मानव जाति के सुख, आराम व शांति के लिए काम करते हैं।

 
बैल का मेहनताना : बैल मनुष्य की जो सेवा करता है उसका उसे कोई मेहनताना नहीं मिलता है। अंतत: बूढ़े और घायल हो चुके बैल को कत्लखाने के लिए बेच दिया जाता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार ऐसे मनुष्य को नर्क में उबलते हुए तेल के कढ़ाव में डाला जाता है और वह वहां अनंतकाल तक तड़पते हुए उबलता रहता है। कम से कम बैल को अपने अंतिम वक्त में स्वतंत्र और खुद के तरीके से जीने का अधिकार मिलना चाहिए।

 
बैल का चरित्र : आमतौर पर खामोश रहने वाले बैल का चरित्र उत्तम और समर्पण भाव वाला बताया गया है। इसके अलावा वह बल और शक्ति का भी प्रतीक है। बैल को मोह-माया और भौतिक इच्छाओं से परे रहने वाला प्राणी भी माना जाता है। यह सीधा-साधा प्राणी जब क्रोधित होता है तो सिंह से भी भिड़ लेता है। यही सभी कारण रहे हैं जिसके कारण भगवान शिव ने बैल को अपना वाहन बनाया।


शिवजी का चरित्र भी बैल समान ही माना गया है। जिस तरह गायों में कामधेनु श्रेष्ठ है उसी तरह बैलों में नंदी श्रेष्ठ है। बैल के कई रूप हैं, उनमें से नंदी बैल प्रमुख है। बैल भगवान शिव की सवारी है। वृषभ राशि का प्रतीक भी पवित्र बैल है।

- अनिरुद्ध जोशी 'शतायु' 
 

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