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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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चांद हिन्दू धर्म में क्यों है महत्वपूर्ण? कौन रहता है चंद्रमा पर?

चांद हिन्दू धर्म में क्यों है महत्वपूर्ण? कौन रहता है चंद्रमा पर?
Hindu dharma and chandrama : दुनिया चांद पर चली गई है। मतलब कि दुनिया के कुछ देशों ने चांद पर अपने मानव रहित यान उतार दिए हैं। इस मामले में भारत एक कदम आगे बढ़ गया है। चंद्रयान 3 के तहत भारत चंद्रमा के दक्षिण भाग पर अपना रोवर उतारेगा। आओ जानते हैं चंद्रमा के बारे में हिन्दू पौराणिक मान्यता और यह भी कि कौन रहता है चांद पर।
 
हिन्दू धर्म और चंद्रमा : हिन्दू धर्म के अधिकतर व्रत चंद्रमा की गति पर ही आधारित रहते हैं। जैसे दूज का चांद, गणेश चतुर्थी, करवाचौथ, एकादशी या प्रदोष का व्रत, पूर्णिमा, अमावस्या आदि सभी पर व्रत रखा जाता है जिससे चंद्र दोष भी दूर होता है। होली, रक्षा बंधन, दिवाली, जन्माष्टमी, शिवरात्रि, शरद पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा आदि सभी चंद्रमा से जुड़े ही पर्व या त्योहार हैं।
चंद्रदेव : चंद्रमा को सोम भी कहते हैं जो भगवान शिव के भक्त हैं और जिन्होंने ही सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। ब्रह्मा के पुत्र अत्रि ने कर्दम ऋषि की पुत्री अनुसूया से विवाह किया था। अनुसूया की माता का नाम देवहूति था। अत्रि को अनुसूया से एक पुत्र जन्मा जिसका नाम दत्तात्रेय था। अत्रि-दंपति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा, महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में आविर्भूत हुए। अत्रि पुत्र चन्द्रमा ने बृहस्पति की पत्नी तारा से विवाह किया जिससे उसे बुध नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ, जो बाद में क्षत्रियों के चंद्रवंश का प्रवर्तक हुआ। इस वंश के राजा खुद को चंद्रवंशी कहते थे। इसके अलावा चंद्र देव ने प्रजापति दक्ष की 27 कन्याओं से विवाह किया था।
 
पुराणों अनुसार चंद्र नामक एक राजा थे जिन्होंने चंद्रवंश की स्थापना की थी। देव और दानवों द्वारा किए गए सागर मंथन से जो 14 रत्न निकले थे उनमें से एक चंद्रमा भी थे जिन्हें भगवान शंकर ने अपने सिर पर धारण कर लिया था। इस तरह हमने जाना की चंद्र नामक एक राजा थे और चंद्र नामक एक रत्न भी, जिसे पुराणों ने ग्रह का दर्जा दिया।
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चंद्र ग्रह : सौरमंडल का 5वां सबसे विशाल प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा पृथ्‍वी के सबसे नजदीक है। पृथ्वी से लगभग 3,84,365 किलोमीटर दूर चंद्रमा का धरातल असमतल है और इसका व्यास 3,476 किलोमीटर है तथा द्रव्यमान, पृथ्वी के द्रव्यमान का लगभग 1/8 है। पृथ्वी के समान इसका परिक्रमण पथ भी दीर्घ वृत्ताकार है। सूर्य से परावर्तित इसके प्रकाश को धरती पर आने में 1.3 सेकंड लगता है। चन्द्रमा, पृथ्वी की 1 परिक्रमा लगभग 27 दिन और 8 घंटे में पूरी करता है और इतने ही समय में अपने अक्ष पर एक घूर्णन करता है। यही कारण है कि चन्द्रमा का सदैव एक ही भाग दिखाई पड़ता है।
 
चंद्रमा लगभग 4.5 करोड़ वर्ष पूर्व धरती और थीया ग्रह (मंगल के आकार का एक ग्रह) के बीच हुई भीषण टक्कर से जो मलबा पैदा हुआ, उसके अवशेषों से बना था। यह मलबा पहले तो धरती की कक्षा में घूमता रहा और फिर धीरे-धीरे एक जगह इकट्टा होकर चांद की शक्ल में बदल गया। अपोलो के अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा लाए गए पत्‍थरों की जांच से पता चला है कि चंद्रमा और धरती की उम्र में कोई फर्क नहीं है। इसकी चट्टानों में टाइटेनियम की मात्रा अत्यधिक पाई गई है।
 
पितृ देव रहते हैं चांद पर : हिन्दू धर्म में यमलोक और पितृलोक की स्थिति पास पास बताई गई है। चंद्रलोक में ही पितृलोक का स्थान है। धर्मशास्त्रों के अनुसार पितरों का निवास चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना गया है। आत्माएं यहीं पर मृत्यु के बाद 1 से लेकर 100 वर्ष तक मृत्यु और पुनर्जन्म की मध्य की स्थिति में रहती हैं। यहां उनके कर्मों का न्याय होता है।
 
यमराज की गणना भी पितरों में होती है। काव्यवाडनल, सोम, अर्यमा और यम- ये चार इस जमात के मुख्य गण प्रधान हैं। अर्यमा को पितरों का प्रधान माना गया है और यमराज को न्यायाधीश। इन चारों के अलावा प्रत्येक वर्ग की ओर से सुनवाई करने वाले हैं, यथा- अग्निष्व, देवताओं के प्रतिनिधि, सोमसद या सोमपा-साध्यों के प्रतिनिधि तथा बहिर्पद-गंधर्व, राक्षस, किन्नर सुपर्ण, सर्प तथा यक्षों के प्रतिनिधि हैं। इन सबसे गठित जो जमात है, वही पितर हैं। यही मृत्यु के बाद आत्मा का न्याय करती है। भगवान चित्रगुप्तजी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और करवाल हैं। ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलता है। 
श्राद्धपक्ष में ही पितर चंद्रलोक से आते हैं- आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ऊपर की किरण (अर्यमा) और किरण के साथ पितृ प्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। सूर्य की सहस्त्रों किरणों में जो सबसे प्रमुख है उसका नाम 'अमा' है। उस अमा नामक प्रधान किरण के तेज से सूर्य त्रैलोक्य को प्रकाशमान करते हैं। उसी अमा में तिथि विशेष को चंद्र (वस्य) का भ्रमण होता है, तब उक्त किरण के माध्यम से चंद्रमा के उर्ध्वभाग से पितर धरती पर उतर आते हैं इसीलिए श्राद्ध पक्ष की अमावस्या तिथि का महत्व भी है।

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