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कहानी : नीली कुर्ती

अंजू निगम
आज परीक्षा का पहला दिन था। नीला ने पूरी तैयारी कर ली थी। वो होनहार छात्रा थी, उसमें व अव्या में होड़ लगी रहती कक्षा में प्रथम आने की और उसके लिए दोनो कड़ी मेहनत करते थे।

यूं तो नीला को अपनी मेहनत पर पूरा यकीन था, पर जाने क्यों उसे अपनी नीली कुर्ती पर अपनी मेहनत से ज्यादा यकीन था। उसे लगता कि जब भी वह नीली कुर्ती पहनेगी, उसके हर काम सफल होंगे, चाहे वो पढ़े या न पढ़े। मां ने कोशिश तो बहूत की, कि नीला के मन से यह वहम निकल जाए, पर वो भी नीला का यह विश्वास न डिगा पाई।
 
कल रात ही नीला ने वो कुर्ती धो कर प्रेस कर ली थी। अब उसे परीक्षा में प्रथम आने से कोई न रोक पाएगा। कुरती बदरंग हो चुकी थी और कई जगहों से घिस गई थी पर नीला पर तो भूत सवार था। मां को यही लगता कि लोग यही कहेंगे कि बिटिया को ढंग की कुरती भी नहीं दिला पाए।
 
पहला पेपर गणित का था। जरुरत से ज्यादा जागने और पढ़ लेने का नतीजा यह हुआ कि नीला की आंखें नींद से भारी होने लगी और उसके सवाल हो गए गलत। समय पर पूरा पेपर भी हल न हो पाया। नीला ने दो-तीन बार अपनी कुर्ती चेक की। वही कुर्ती है न!!!! कहीं बदल तो नहीं गई, तो उसका पेपर ठीक न हो पाएगा। पर कुरती तो वही थी, उसकी पसंद की। नीला का वो भ्रम अब टुटने लगा था। उसकी नीली कुरती अब वाकई पुरानी होने लगी थी। उसका वो 'जादू' अब खत्म हो गया था।
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