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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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लघुकथा : मौकापरस्त मोहरे!

लघुकथा : मौकापरस्त मोहरे!
- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
 
वह तो रोज की तरह ही नींद से जागा था, लेकिन देखा कि उसके द्वारा रात में बिछाए गए शतरंज के सारे मोहरे सवेरे उजाला होते ही अपने आप चल रहे हैं। उन सभी की चालें भी बदल गई थीं। घोड़ा तिरछा चल रहा था, हाथी और ऊंट आपस में स्थान बदल रहे थे, वजीर रेंग रहा था, बादशाह ने प्यादे का मुखौटा लगा लिया था और प्यादे अलग-अलग वर्गों में बिखर रहे थे।
 
वह चिल्लाया, 'तुम सब मेरे मोहरे हो, ये बिसात मैंने बिछाई है, तुम मेरे अनुसार ही चलोगे।' लेकिन सारे के सारों मोहरों ने उसकी आवाज को अनसुना कर दिया। उसने शतरंज को समेटने के लिए हाथ बढ़ाया तो छू भी नहीं पाया।
 
वह हैरान था और इतने में शतरंज हवा में उड़ने लगा और उसके सिर के ऊपर चला गया। उसने ऊपर देखा तो शतरंज के पीछे की तरफ लिखा था- 'चुनाव के परिणाम'।
 

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