कृष्ण काल में नंदा नाम की एक गाय थी। चारा चरते हुए झुंड से बिछड़ गई और वहां पहुंच गई जहां एक बाघ बैठा था। बाघ गरजते हुए नंदा पर टूट पड़ा। नंदा की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। उसे अपना नन्हा बछड़ा याद आने लगा। उसके आंसुओं की धारा बह निकली।
बाघ बोला- मालूम होने के बावजूद तुम मेरे इलाके में आ गई। ऐसा लगता है कि तुम्हें अब जीवन से प्यार नहीं रहा।
नंदा ने गिड़गिड़ाते हुए कहा- मेरा अपराध क्षमा करो, मुझे अपने जीवन का शोक नहीं। मैं अपने बच्चे के लिए शोक कर रही हूं। वह अभी बहुत छोटा है। मेरे न रहने पर उसकी क्या दशा होगी। मैं उसे दूध पिलाना चाहती हूं। यदि तुम मुझे थोड़ी देर के लिए छोड़ दो तो मैं उसे प्यार कर और उसके हित का उपदेश देकर लौट आऊंगी। फिर तुम मुझे खा जाना।
बहुत शपथें खाने के बाद। नंदा को बाघ ने छोड़ दिया। नंदा दौड़ती हुई अपने बछड़े के पास गई और उसे जी भरके दूध पिलाया तथा सभी गायों और बछड़े को बाघ को दी शपथ भी बताई। सभी ने उसे वापस जाने के लिए मना किया, लेकिन वह नहीं मानी। सत्य की रक्षा के लिए वह बाघ के पास चली गई। उसका बछड़ा और सभी गायें रोती रही।
नंदा ने कहा- मैं सत्यधर्म का पालन करती हूं, इसीलिए तुम्हारे पास आ गई हूं। अब तुम मेरे मांस से अपनी इच्छा की पूर्ति करो।
नंदा की सत्यनिष्ठा को देखकर बाघ आश्चर्यचकित हो गया। उसने कहा कि सत्य की परीक्षा के लिए ही मैंने तुम्हें छोड़ा था। तुम्हारी धर्मनिष्ठा ने मेरे जीवन को बदल दिया है। आज से तुम मेरी बहन हुई।