Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

कही-अनकही 12 : बेटी होने और बेटी-जैसी होने में अंतर है...

अनन्या मिश्रा
'हमें लगता है समय बदल गया, लोग बदल गए, समाज परिपक्व हो चुका। हालांकि आज भी कई महिलाएं हैं जो किसी न किसी प्रकार की यंत्रणा सह रही हैं, और चुप हैं। किसी न किसी प्रकार से उनपर कोई न कोई अत्याचार हो रहा है चाहे मानसिक हो, शारीरिक हो या आर्थिक, जो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता, क्योंकि शायद वह इतना 'आम' है कि उसके दर्द की कोई 'ख़ास' बात ही नहीं। प्रस्तुत है एक ऐसी ही 'कही-अनकही' सत्य घटनाओं की एक श्रृंखला। मेरा एक छोटा सा प्रयास, उन्हीं महिलाओं की आवाज़ बनने का, जो कभी स्वयं अपनी आवाज़ न उठा पाईं।'
 
 
परिदृश्य : एना और आदि की शादी है और आदि का परिवार एना के माता-पिता को आश्वासन दे रहा है...
 
‘आप चिंता न करें भाईसाहब, हमारे घर भी दो-दो बेटियां हैं । जैसी वो दोनों, वैसी ही एना भी हमारे लिए रहेगी।’
 
‘जी भाभी जी, आप मत परेशान हों। एना भी बेटी जैसी ही रहेगी। फिर थोड़ा बहुत एडजस्टमेंट तो सभी को करना ही होता है न...’
 
दृश्य 1: एना और आदि का रिसेप्शन 
‘अरे हमको भी एना के साथ फोटो चाहिए। आदि इतने दूर क्यों खड़े हो, एना के गले में हाथ डाल लो।’
 
‘हां  भैया, हम भी भाभी के कंधे पर हाथ रख के खड़े हो जाएंगे।’
 
‘एना शरमाओ मत, हमारे घर की हो तुम अब। आदि का हाथ पकड़ लो’
 
‘अरे एक कपल डांस तो ज़रूरी है । एकदम रोमांटिक वाला!’
 
दृश्य 2 : ससुराल, रात का समय
 
‘एना, सुनो, तुम सुबह 6 बजे उठ जाना। हो सकता है बाकि सब सोते रहें, लेकिन एक चक्कर लगा लेना घर का कि कहीं कुछ काम तो नहीं। थोड़ी ठण्ड रहेगी, लेकिन तुम स्वेटर पहन लेना।’
 
‘और सुनो, साड़ी पहन कर और सिर पर घूंघट ले कर ही कमरे से निकलना। या बुला लेना किसी को’
 
‘मैं सलवार कुर्ते में ही सोऊंगी, तो दुपट्टे से सिर ढांक लूंगी... आप मत परेशान होइएगा।’
 
‘भले ही आधी रात को वॉशरूम जाना हो, छत से हो कर जाओगी तो भी सिर ढांक कर रखना। कोई देख लेगा आधी रात को छत पर तो बातें होंगी।’
 
दृश्य 3 : एना-आदि का कमरा, सुबह
 
‘एना तुम बस पांच ही साड़ियां लाई हो? माना कि यहां बस 3 दिन रुकना है, लेकिन तुमको मम्मी ने दी नहीं सारी साड़ियां? इतने सलवार सूट क्यों ले आई?’
 
‘दीदी आप ही ने तो कहा था कि हमारे यहां इतना कोई बड़ा मुद्दा नहीं है साड़ी का। घर की सभी बेटियां भी तो कुर्ते-लेगिंग ही पहन रही हैं। और तो और मैंने ये सूट खासतौर पर सिलवाए हैं यहीं पहनने। कुर्ती में तो पूरा ढंका भी रहता है बदन। साड़ी में फिर घूंघट गिरने का टेंशन होता है।’
 
‘बेटियां पहन सकती हैं एना, तुम साड़ी ही पहनो, तुम बेटी नहीं हो न।’
 
सीन 4 : घर का आंगन, दोपहर
 
‘एना तुमने सुबह उठ कर सबके पैर छुए या नहीं? दादीजी से ले कर कामवाली तक?’
‘जी...’
‘हमने तो देखा नहीं... अंकल के छुए? जाओ वापस जा कर छुओ, हम देख रहे हैं अभी।’
‘जी...’
‘घर में सबके छूने हैं। बेटियां नहीं छूती हैं यहां। लेकिन तुम बेटियों के भी छूना। उम्र से फर्क नहीं पड़ता यहां।’
 
सीन 5 : किचन, शाम का समय
‘एना, आदि से क्या बात कर रही थीं तुम? सब वहीं बैठे थे। अच्छा नहीं लगता ऐसे।’
 
‘हां एना, भाई-बहन बात कर सकते हैं, बेटियां कर सकती हैं। तुम ऐसे आदि से सबके सामने बात मत करना। और हाँ, यहां सारे मर्द अलग कमरे में, सबसे पहले खाना खाते हैं। वहां जाना मत। अगर परोसने जाओ, तो कुछ बोलना मत और घूंघट डाले रखना।’
 
‘और दिक्कत हो तो बेटियों में से किसी को भेज देना परोसने। उनको दुपट्टे-कुर्ती-घूंघट का टेंशन नहीं होता।’
 
सीन 6 : एना-आदि का कमरा, रात का समय
‘आदि, तुमने पूछा तक नहीं दिनभर से मैंने खाया या नहीं? तुम कहां दूर-दूर रहते हो पूरे दिन?’
 
‘एना, साथ खाना नहीं खाते यहां... मुझे लगा तुमने बाकि घर की औरतों के साथ खा ही लिया होगा।’
 
‘आदि, साथ आ कर दिन में बैठ तो सकते थे जब सब बैठे हुए थे?’
 
‘नहीं... अभी-अभी शादी हुई है न। तुम्हारे साथ नहीं बैठ सकता, हॉल में भी खिड़कियां हैं, मोहल्ले वाले बालकनी से देखते हैं घर में अन्दर।’
 
‘अरे तो? शादी के समय तो सब चिपक-चिपक कर डांस करने आ रहे थे, तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में दे रहे थे, फोटो के लिए पोज़ कर रहे थे और रोमांटिक डांस की डिमांड कर रहे थे... और यहां घर में हम साथ भी नहीं बैठ सकते? बाहर मॉडर्न होने का दिखावा था?’
 
‘दिखावा? कोई अंतर किया क्या किसी ने तुम्हारे और मेरी बहनों के बीच? तुम्हारा घूंघट गिर रहा था तो आंटी ने हॉल की खिड़कियां ही बंद कर दी ताकि तुम्हें दिक्कत न हो। फिर भी तुमने दिक्कत ढूंढ ही ली?’
 
‘आदि, खिड़की इसलिए बंद नहीं की कि मुझे बिना घूंघट के रहने मिले, इसलिए बंद की ताकि लोग बातें न बनाएं। इसी दिखावे की बात कर रही थी। 
 
लक्ष्मी मान कर जिस ‘बहू’ का गृह प्रवेश कराया, उसे ‘नवरात्रि’ में  ‘दुर्गा’ मान कर पूजे जाने वाली बेटियों से अलग बर्ताव क्यों किया जाता है? बेटी होना और बेटी-जैसी होने में यही अंतर है। हैं तो दोनों एक ही ना? सालों लगेंगे शायद जब देश में बहुओं को भी ‘बेटी’ ही माना जाए गा, और ‘बेटी-जैसी’ होने का डर फिर किसी लड़की को नहीं लगेगा।’
 
आदि सोच में पड़ गया कि बात तो एना ने सही कही है, लेकिन वह सही मान कैसे ले? उसके अहं को ठेस पहुंचती और उसके घरवालों के खिलाफ तो वह बोल ही नहीं सकता... वरना एना को चुप रह कर सहने की ट्रेनिंग कैसे मिलेगी? एना की ‘कही’ को आदि ने अनसुना ही छोड़ दिया... अनकही फिर रह गई.... वह बात जो कहनी चाहिए थी...  


अनन्या मिश्रा की ऐसी ही अन्य मर्मस्पर्शी कहानियां यहां पढ़ें 

ALSO READ: कही-अनकही 11 : तुमसे तो कुछ भी बोलना ही बेकार है
ALSO READ: कही-अनकही 10 : स्पेशल डे

सम्बंधित जानकारी

सभी देखें

जरुर पढ़ें

इस Festive Season, इन DIY Ubtans के साथ घर पर आसानी से बनाएं अपनी स्किन को खूबसूरत

दिवाली पर कम मेहनत में चमकाएं काले पड़ चुके तांबे के बर्तन, आजमाएं ये 5 आसान ट्रिक्स

दिवाली पर खिड़की-दरवाजों को चमकाकर नए जैसा बना देंगे ये जबरदस्त Cleaning Hacks

जानिए सोने में निवेश के क्या हैं फायदे, दिवाली पर अच्छे इन्वेस्टमेंट के साथ और भी हैं कारण

दीपावली की तैयारियों के साथ घर और ऑफिस भी होगा आसानी से मैनेज, अपनाएं ये हेक्स

सभी देखें

नवीनतम

दीपावली पर कैसे पाएं परफेक्ट हेयरस्टाइल? जानें आसान और स्टाइलिश हेयर टिप्स

Diwali Skincare : त्योहार के दौरान कैसे रखें अपनी त्वचा का ख्याल

Diwali 2024 : कम समय में खूबसूरत और क्रिएटिव रंगोली बनाने के लिए फॉलो करें ये शानदार हैक्स

धनतेरस पर कैसे पाएं ट्रेडिशनल और स्टाइलिश लुक? जानें महिलाओं के लिए खास फैशन टिप्स

पपीते का ये हिस्सा जिसे बेकार समझकर फेंक देते हैं, फायदे जानकर आज से ही करने लगेंगे स्टोर

આગળનો લેખ
Show comments