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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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कही-अनकही 10 : स्पेशल डे

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अनन्या मिश्रा

'हमें लगता है समय बदल गया, लोग बदल गए, समाज परिपक्व हो चुका। हालांकि आज भी कई महिलाएं हैं जो किसी न किसी प्रकार की यंत्रणा सह रही हैं, और चुप हैं। किसी न किसी प्रकार से उनपर कोई न कोई अत्याचार हो रहा है चाहे मानसिक हो, शारीरिक हो या आर्थिक, जो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता, क्योंकि शायद वह इतना 'आम' है कि उसके दर्द की कोई 'ख़ास' बात ही नहीं। प्रस्तुत है एक ऐसी ही 'कही-अनकही' सत्य घटनाओं की एक श्रृंखला। मेरा एक छोटा सा प्रयास, उन्हीं महिलाओं की आवाज़ बनने का, जो कभी स्वयं अपनी आवाज़ न उठा पाईं।'
 
दृश्य 1: फ्लैशबैक
‘कोई बात नहीं रिद्धि, बस ये एक साल और, फिर तो तुम्हारे सारे बर्थ-डे बेहद स्पेशल होने वाले हैं मेरे साथ शादी के बाद! चलो प्लान करें क्या-क्या करेंगे हम तुम्हारे बर्थ-डे पर...’—रिद्धि का मंगेतर रौनक उसे फ़ोन पर उसके बर्थ-डे पर विश कर रहा था ।
 
दृश्य 2: शादी के बाद रिद्धि का पहला जन्मदिन है। लेकिन कुछ दिनों से रिद्धि और रौनक में अनबन चल रही है, क्योंकि रौनक के पास बात तक करने का समय नहीं है। जन्मदिन से तीन हफ्ते पहले से रौनक टूर पर जाता रहा है। दो-चार दिन के लिए लौट कर आता है, फिर चला जाता है। खैर, आखिरी बार जब टूर पर गया था, तो रिद्धि के लिए ब्रांडेड पर्स लाया था।
 
 'तोहफा'-....और मजाक कर रहा था कि बस यही है अब जन्मदिन का स्पेशल तोहफा। फालतू माँगना मत कुछ। खैर, वैसा ही स्पेशल पर्स घर की बाकी महिलाओं के लिए भी आया था।
 
 जन्मदिन के एक दिन पहले, रौनक रिद्धि को डिनर पर ले गया, जहाँ वह पूरे समय अपने फ़ोन पर ही लगा रहा। खाना हो गया और दोनों घर आ गए। 12 बजे रात को बड़े बेमन से रौनक ने रिद्धि से केक कटवाया, जिससे रिद्धि उदास हो गई।
 
‘तुम कम से कम आज के दिन मुंह मत लटकाओ रिद्धि।’
 
‘तो और क्या करूँ? तुम बात तक तो करते नहीं हो। ये कैसा बर्थ-डे हुआ?’
 
‘ये केक, डिनर... मायने नहीं रखता क्या? मैं रिजाइन ही कर देता हूँ अपने जॉब से। तब तुम्हें शांति मिलेगी।’ ऐसा कह कर रौनक आधी रात को रिद्धि को रोते हुए छोड़ कर घर से चला गया। देर रात वापस आया, और बिना कुछ बात किये सो गया। अगले दिन भी दोनों अपने-अपने ऑफिस चले गए, दिनभर कोई बात नहीं हुई। रात को रौनक ने रिद्धि को फिर डिनर पर चलने को कहा। 
 
‘सच में रौनक? चलो, चलते हैं।’
 
‘जल्दी चलो, मुझे आ कर ऑफिस का बहुत सारा काम है रिद्धि।’
 
‘तो तुम काम कर लो, हम ऑर्डर कर देते हैं रौनक। वैसे भी मुझे बहुत सारे दोस्तों को फ़ोन करना है, उन्होंने विश करने फ़ोन किया था लेकिन मैं बात नहीं कर पाई। समय भी बचेगा। ’
 
‘तुमसे बहस करना बेकार है। एक तो तुमको ले जा रहा हूँ, ऊपर से तुमको मिर्ची लग जाती है मेरे काम से।’
 
खैर, डिनर से लौट कर रिद्धि कपड़े बदल कर आती उसके पहले तो रौनक सो चुका था। 
 
‘रौनक, उठो। सो क्यों रहे हो? काम नहीं करना है क्या ऑफिस का?’
 
‘काम तो है, लेकिन मैं रात को 2 बजे उठ कर करूँगा। अभी थक गया हूँ।’
 
‘तो जाग ही लो मेरे साथ रौनक... दिनभर से हमने बात नहीं की...’
 
‘नहीं मैं सो रहा हूँ। कल बात करेंगे।’
 
दृश्य 3: रौनक की मम्मी आई हुई हैं और उनका दो हफ्ते में जन्मदिन आने वाला है। रिद्धि की तो ऑफिस की छुट्टी नहीं थी, लेकिन रौनक ने छुट्टी ले कर उन्हें काफी सारी शॉपिंग कराई –जो मम्मी ने रिद्धि को शाम को बताया। मम्मी के जन्मदिन के पहले रिद्धि भी मम्मी के लिए उनकी पसंद के तोहफे लाई। रौनक ने उनके लिए स्पेशल केक मंगाया, 12 बजे पूरे परिवार ने हंसी-ख़ुशी केक काटा, अगले दिन के लिए रौनक ने सरप्राइज पार्टी भी प्लान की। दिन बेहद अच्छा गुज़रा और सब बहुत खुश थे। रात को फिर...
 
‘रिद्धि, थैंक यू।.. तुम मदद नहीं करतीं तो मैं तो मम्मी के लिए तोहफा नहीं ला पाता।’
 
‘मम्मी तो मेरी भी हैं वो, रौनक। मेरा हक़ है। अच्छा हुआ तुमने उनको दो हफ्ते पहले ही गिफ्ट्स दिला दिए थे ।’
 
‘हां, वो तो ऐसे ही। इतने सालों बाद वो अपने घर से दूर यहाँ हमारे घर जन्मदिन मना रही थीं। मैं चाहता था स्पेशल रहे। लेकिन बर्थ-डे वाले दिन की तो बात ही अलग होती है न रिद्धि... वो दिन स्पेशल होना चाहिए। उस दिन भी तो तोहफा मिले, साथ वक़्त बिताएं, खुश रहे बर्थ-डे गर्ल... और क्या चाहिए! ’ 
 
रिद्धि ने रौनक को आश्चर्य से देखा जैसे कह रही हो—‘काश तुम्हारी सोच सबके लिए एक जैसी होती...’ लेकिन फिर ‘अनकहा’ ही छोड़ दिया । खैर, शायद रौनक तुरंत समझ भी गया, और तुरंत करवट ले कर सो गया।
 
 

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