Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

नारी की व्यथा पर कविता : तारीख लगती रही

नारी की व्यथा पर कविता : तारीख लगती रही
- तृप्ति मिश्रा
 
उसे लगा जीत गई
आज उसकी अस्मत
मामला दर्ज हो गया
लौटेगी खोई इज्जत
 
पर शुरू हुई चहल-कदमी
घर से कोर्ट, कोर्ट से घर
तारीख लगी पहली बार
उसे लग गया दिनभर
 
तारीख लगती रही
 
अब हुआ दूसरा बयान
पहली बार दिया था थाने में
सच्ची घटना, एक शब्द न बदला
जाने या अंजाने में
 
तारीख लगती रही
 
चला बयानों का दौर
बाकी सारी गवाही भी आई
अपने-अपने बयान देकर
सबने थी निजात पाई
 
तारीख लगती रही
 
चलता ये यूं कुछ
हुक्म एक तारीख पर
और हुक्म जो पहुंचे सब तक
तो तामील एक तारीख पर
 
तारीख लगती रही
 
कभी किसी तारीख पर
आ न सका मुवक्किल
तो कभी हो गया
अचानक बीमार वकील
 
तारीख लगती रही
 
फैसले आते गए
गुनाहगार को बचाने के लिए
अपील पर अपील
वकील साहब लगाते गए
 
तारीख लगती रही। 

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

Benefits of Makhana : मखाने के सेवन से करें जोड़ों का दर्द दूर