Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

हिन्दी कविता : सरहदें...

सुशील कुमार शर्मा
कई सरहदें बनीं लोग बंटते गए,
हम अपनों ही अपनों से कटते गए।
 
उस तरफ कुछ हिस्से थे मेरे मगर,
कुछ अजनबी से वो सिमटते गए।
 
दर्द बढ़ता गया दूरियां भी बढ़ीं,
सारे रिश्ते बस यूं ही बिगड़ते गए।
 
दर्द अपनों ने कुछ इस तरह का दिया,
वो हंसता रहा मेरे सिर कटते गए।
 
खून बिखरा हुआ है सरहदों पर मगर,
वो भी लड़ते गए हम भी लड़ते गए।
 
एक जमीन टुकड़ों में बंटती गई,
हम खामोशी से सब कुछ सहते गए।
 
सरहदों की रेखाएं खिंचती गईं,
देश बनते रहे रिश्ते मिटते गए।
 
सभी देखें

जरुर पढ़ें

शिशु को ब्रेस्ट फीड कराते समय एक ब्रेस्ट से दूसरे पर कब करना चाहिए शिफ्ट?

प्रेग्नेंसी के दौरान पोहा खाने से सेहत को मिलेंगे ये 5 फायदे, जानिए गर्भवती महिलाओं के लिए कैसे फायदेमंद है पोहा

Health : इन 7 चीजों को अपनी डाइट में शामिल करने से दूर होगी हॉर्मोनल इम्बैलेंस की समस्या

सर्दियों में नहाने से लगता है डर, ये हैं एब्लूटोफोबिया के लक्षण

घी में मिलाकर लगा लें ये 3 चीजें, छूमंतर हो जाएंगी चेहरे की झुर्रियां और फाइन लाइंस

सभी देखें

नवीनतम

सार्थक बाल साहित्य सृजन से सुरभित वामा का मंच

महंगे क्रीम नहीं, इस DIY हैंड मास्क से चमकाएं हाथों की नकल्स और कोहनियां

घर में बेटी का हुआ है जन्म? दीजिए उसे संस्कारी और अर्थपूर्ण नाम

क्लटर फ्री अलमारी चाहिए? अपनाएं बच्चों की अलमारी जमाने के ये 10 मैजिक टिप्स

आज का लाजवाब चटपटा जोक : अर्थ स्पष्ट करो

આગળનો લેખ
Show comments