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हिन्दी कविता : पापा, आना सरहद पार से...

डॉ. निशा माथुर
पापा, आना सरहद पार से,
दुश्मन के घरबार से।
 
रस्ता देखे थकी हैं अंखियां,
चुप हूं मेरी खो गई निंदिया।
सुन चिट्ठी तेरे नाम पे,
पापा, आना सरहद पार से।
 
दादी करे भगवान से बातें,
बूढ़े दादा यूं दिनभर खांसे।
बस तेरी फोटो थाम के,
पापा, आना सरहद पार से।
 
मां मेरी तो निष्प्राण पड़ी है,
छोटी बहन भी शून्य खड़ी है।
यूं हाथ कलेजा थाम के,
पापा, आना सरहद पार से।
 
पुरवइया फिर लोरी गा देंगी,
यादें हमारी मरहम रख देंगी।
हां, तेरी घायल चाम पे,
पापा, आना सरहद पार से।
 
मां कहती तू अब ना आएगा,
ना ही तेरा कोई शव आएगा।
हम बैठे तिरंगा थाम के,
पापा, आना सरहद पार से,
दुश्मन के घरबार से।

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