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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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कविता : जिहाद

कविता : जिहाद
सिरफिरी हवाएं
 
दिनेश कुमार 'डीजे'
 
अंधेरों से दुश्मनी कई दुश्मन बना देती है,
सिरफिरी हवाएं अक्सर दीया बुझा देती हैं।
 
संक्रांत की कटी पतंगों से मैंने जाना है,
बुरी सोहबत ऊंचे किरदार गिरा देती है।
 
परिंदों को तालीम उड़ने की कौन देता है?
पंखों की छटपटाहट उड़ना सिखा देती है।
 
किताबों के साथ मैं रस्ते भी पढ़ लेता हूं,
किताबों से ज्यादा ठोकर सिखा देती है।
 
आशिक और जिहादी मुझे एक-से दिखते हैं,
नादानी इन दोनों को काफिर बना देती है।

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