कविता : झकझोरकर मुझे हवा ने
झकझोरकर
मुझे हवा ने
अलौकिक खेल दिखाया
उतार कमीज
पल में
उठा पटक कर
ले उड़ी
घुमा फिराकर टांग दी
बबूल की टहनी पर I
मुझे मार धक्का
पटक गड्ड़े में
बैठ छाती पर
मानो तांडव नया
अजीब दिखाया
बोझ कल्पनाओं का लाद,
गुम होकर
डरावना स्वप्न सा
दृश्य दिखाया
खूब दिखाया।
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