Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

हिन्दी कविता : अंतर्नाद

सीमा पांडे
पीड़ाओं से सदा घिरे जो, उनका अंतर्नाद
तुम कैसे कह दोगे इसको पल भर का उन्माद
 
भीतर-भीतर सुलग रही थी धीमी-धीमी आग
अपमानों के शोलों में कुछ लपट पड़ी थी जाग
 
रह-रह के फिर टीस जगाते घावों के वो दाग
एक उदासी का मौसम बस, क्या सावन क्या फाग
 
संवादों के कारागृह में, कैसा वाद-विवाद।
तुम कैसे कह दोगे इसको क्षण भर का उन्माद।
 
सदियों से ही रहा तृषित मन, आएगी कब बार
छोड़ चला धीरज भी नाता, क्लेश धरा आकार।
 
पाया नहीं उजास कहीं भी, कैसे हो तम पार
पीड़ाओं का बोझा भारी, कब तक सहता भार।
 
किस दुख ने कब-कब पिघलाया, हर पल की है याद
तुम कैसे कह दोगे इसको क्षण भर का उन्माद।

सम्बंधित जानकारी

सभी देखें

जरुर पढ़ें

शिशु को ब्रेस्ट फीड कराते समय एक ब्रेस्ट से दूसरे पर कब करना चाहिए शिफ्ट?

प्रेग्नेंसी के दौरान पोहा खाने से सेहत को मिलेंगे ये 5 फायदे, जानिए गर्भवती महिलाओं के लिए कैसे फायदेमंद है पोहा

Health : इन 7 चीजों को अपनी डाइट में शामिल करने से दूर होगी हॉर्मोनल इम्बैलेंस की समस्या

सर्दियों में नहाने से लगता है डर, ये हैं एब्लूटोफोबिया के लक्षण

घी में मिलाकर लगा लें ये 3 चीजें, छूमंतर हो जाएंगी चेहरे की झुर्रियां और फाइन लाइंस

सभी देखें

नवीनतम

सावधान! धीरे धीरे आपको मार रहे हैं ये 6 फूड्स, तुरंत जानें कैसे बचें

जीवन की ऊर्जा का मूल प्रवाह है आहार

Easy Feetcare at Home : एल्युमिनियम फॉयल को पैरों पर लपेटने का ये नुस्खा आपको चौंका देगा

जानिए नवजोत सिद्धू के पत्नी के कैंसर फ्री होने वाले दावे पर क्या बोले डाक्टर्स और एक्सपर्ट

इतना चटपटा चुटकुला आपने कभी नहीं पढ़ा होगा: इरादे बुलंद होने चाहिए

આગળનો લેખ
Show comments