Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

हिन्दी कविता : अंतर्नाद

हिन्दी कविता : अंतर्नाद

सीमा पांडे

पीड़ाओं से सदा घिरे जो, उनका अंतर्नाद
तुम कैसे कह दोगे इसको पल भर का उन्माद
 
भीतर-भीतर सुलग रही थी धीमी-धीमी आग
अपमानों के शोलों में कुछ लपट पड़ी थी जाग
 
रह-रह के फिर टीस जगाते घावों के वो दाग
एक उदासी का मौसम बस, क्या सावन क्या फाग
 
संवादों के कारागृह में, कैसा वाद-विवाद।
तुम कैसे कह दोगे इसको क्षण भर का उन्माद।
 
सदियों से ही रहा तृषित मन, आएगी कब बार
छोड़ चला धीरज भी नाता, क्लेश धरा आकार।
 
पाया नहीं उजास कहीं भी, कैसे हो तम पार
पीड़ाओं का बोझा भारी, कब तक सहता भार।
 
किस दुख ने कब-कब पिघलाया, हर पल की है याद
तुम कैसे कह दोगे इसको क्षण भर का उन्माद।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

फिटनेस को लेकर हर किसी के दिमाग में है 10 गलतफहमी, जानें सच