Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

नई कविता : उलझन

नई कविता : उलझन
देवेन्द्र सोनी 
 
उलझन रहती है
सदा ही हमारे आसपास।
 
हर उलझन का होता है 
हल भी वहीं-कहीं
पर हमारा वैचारिक द्वंद्व 
करता है देर, इन्हें सुलझाने में।
 
उलझन का हमारी जिंदगी से
गहरा नाता है 
सुलझती है एक तो 
रहती है दूसरी हर दम तैयार।
 
उलझन, 
उपजाती है मन में नैराश्य 
पर सुलझते ही इसके 
प्रफुल्लित हो जाता है मन।
 
कई तरह की होती हैं
उलझनें
जो कई बार होती हैं
हमारे सोच के दायरे से बाहर।
 
अनायास उपजी इन उलझनों को 
सुलझाने का सरल उपाय 
यही लगता है मुझे -
बनें वैचारिक स्तर पर मजबूत
छोड़ें न धैर्य, दें दिलासा 
जूझते मन और तन को, क्योंकि -
उलझने करती हैं परेशान और
देती हैं कष्ट हमारे अंतस को।
 
सुलझ तो जाती ही हैं ये 
कभी न कभी पर 
ले लेती हैं हमारे आत्मबल की 
परीक्षा भी, ये उलझनें।
 
जब कभी हो जीवन में 
उलझनों से सामना हमारा
रखें धैर्य, न छोड़ें आत्म विश्वास।
 
जानते ही हैं यह हम 
सुलझ तो जाएंगी ही सभी उलझनें 
क्योंकि होती ही है ये - 
बहुधा सुलझने के लिए ।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

कविता : मनवा मैं नारी हूं क्यों पीर की