Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

कविता : मैंने लगाई थी एक अर्जी

श्रीमती गिरिजा अरोड़ा
मैंने लगाई थी एक अर्जी,
धूप के दरबार में,
मान ली सूर्य ने,
जो भी थी फरियाद वे।
 
कहा मैंने था कि कम है,
तेज थोड़ा किरणों में,
उर्जारहित होती देह,
आ न जाए जीर्णों में।
 
तीव्र मिल गईं किरणें अपार हमें,
मैंने लगाई थी एक अर्जी,
धूप के दरबार में।
 
शुष्कता हवा की बताया,
काट देती है त्वचा,
बर्फ कर देते हो जिसको,
पानी प्रकृति ने था रचा।
 
ऊष्णता बढ़ाई भानु ने व्यवहार में,
मैंने लगाई थी एक अर्जी,
धूप के दरबार में।
 
हो गई मंजूर अर्जी,
सूर्य रहा न्यायधर्मी,
सर्दी की थी अर्जी मगर,
हुई मंजूर जब आई गर्मी।
 
मैंने लगाई थी एक अर्जी,
धूप के दरबार में,
मान ली सूर्य ने,
जो भी थी फरियाद वे।

सम्बंधित जानकारी

सभी देखें

जरुर पढ़ें

शिशु को ब्रेस्ट फीड कराते समय एक ब्रेस्ट से दूसरे पर कब करना चाहिए शिफ्ट?

प्रेग्नेंसी के दौरान पोहा खाने से सेहत को मिलेंगे ये 5 फायदे, जानिए गर्भवती महिलाओं के लिए कैसे फायदेमंद है पोहा

Health : इन 7 चीजों को अपनी डाइट में शामिल करने से दूर होगी हॉर्मोनल इम्बैलेंस की समस्या

सर्दियों में नहाने से लगता है डर, ये हैं एब्लूटोफोबिया के लक्षण

घी में मिलाकर लगा लें ये 3 चीजें, छूमंतर हो जाएंगी चेहरे की झुर्रियां और फाइन लाइंस

सभी देखें

नवीनतम

सार्थक बाल साहित्य सृजन से सुरभित वामा का मंच

महंगे क्रीम नहीं, इस DIY हैंड मास्क से चमकाएं हाथों की नकल्स और कोहनियां

घर में बेटी का हुआ है जन्म? दीजिए उसे संस्कारी और अर्थपूर्ण नाम

क्लटर फ्री अलमारी चाहिए? अपनाएं बच्चों की अलमारी जमाने के ये 10 मैजिक टिप्स

आज का लाजवाब चटपटा जोक : अर्थ स्पष्ट करो

આગળનો લેખ
Show comments