अटल बिहारी वाजपेयी की कविता : पुन: चमकेगा दिनकर
आजादी का दिन मना,
नई गुलामी बीच;
सूखी धरती, सूना अंबर,
मन-आंगन में कीच;
मन-आंगन में कीच;
कमल सारे मुरझाए;
एक-एक कर बुझे दीप,
अंधियारे छाए;
कह कैदी कविराय
न अपना छोटा जी कर;
चीर निशा का वक्ष
पुन: चमकेगा दिनकर।
*आपातकाल के दौरान स्वाधीनता दिवस पर रचित।