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हिन्दी दिवस पर लघुकथा मंथन 2024 का आयोजन संपन्न

WD Feature Desk
सोमवार, 16 सितम्बर 2024 (13:01 IST)
Laghukatha Manthan 2024
 
- डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
 
लघुकथा पर गंभीर विमर्श के साथ प्रदेशभर से आए लघुकथाकारों ने किया लघुकथा पाठ 

Highlights 
 
* हिन्दी दिवस पर लघुकथा मंथन 2024 आयोजित हुआ।
* दुनियाभर में है लघुकथाओं का बाज़ार- डॉ. पुरुषोत्तम दुबे।
* लघुकथा जीवन मूल्यों को बचाती- डॉ. पद्मा सिंह।
 
हिन्दी भाषा और उसकी विधाओं के प्रचार के लिए प्रतिबद्ध मातृभाषा उन्नयन संस्थान व श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति के संयुक्त तत्त्वावधान में हिन्दी महोत्सव 2024 के अंतर्गत शनिवार, 14 सितंबर को समिति सभागार में हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित लघुकथा-मंथन चार सत्रों में सम्पन्न हुआ, जिसमें विमर्श, सम्मान, लघुकथा पाठ एवं लोकार्पण सम्पन्न हुआ।
 
उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि वीणा के संपादक राकेश शर्मा ने कहा कि 'बदले हुए परिदृश्य में हिन्दी के वैश्विक बल का आधार तकनीक, साहित्य और बाज़ार है। आज विश्व में भाषा के माध्यम से संवाद और बदलाव आ रहा है। और हिन्दी अब शहरों और देशों को जोड़ रही है। दुनिया को शीर्षासन हिन्दी के बल पर कर रही है।' 
 
सत्र में विशेष अतिथि हरेराम वाजपेयी व अध्यक्षता अरविंद जवलेकर ने की।
 
लघुकथा के प्रथम सत्र में स्वागत नितेश गुप्ता व मणिमाला शर्मा ने किया। स्वागत उद्बोधन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने व संचालन सुषमा व्यास ‘राजनिधि’ ने किया। मंथन के प्रथम सत्र में 'लघुकथा के मानक और गुणवत्ता' विषय पर मुख्य अतिथि भोपाल से कांता रॉय ने बताया कि 'जो बात कहानी में नहीं कह सकते, वह बात लघुकथा में कही जा सकती है। किसी घटना को अंतर्दृष्टि से देखने की विधा लघुकथा है।'
 
सत्र के विशिष्ट अतिथि भोपाल के वरिष्ठ लघुकथाकार घनश्याम मैथिल ने कहा कि 'विधा की शैली, कथन और मानक बने हुए हैं, उन पर मंथन होकर एकरूपता आनी चाहिए। कथानक अलग हो सकता है, पर नियम सबके एक होते हैं।'
 
सत्र की अध्यक्षता कर रहीं डॉ. पद्मा सिंह ने विमर्श में बताया कि ‘विधाओं के लिए एकजुट होकर कार्य करना चाहिए। लेखकों में समर्पण भाव महत्वपूर्ण है।' 
 
दूसरे सत्र में अतिथि स्वागत रमेश चंद्र शर्मा व राजेन्द्र गुप्ता ने किया।
 
विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ लघुकथाकार सीमा व्यास ने कहा कि 'लघुकथा मानस पर बड़ी फ़िल्म की तरह अंकित होती है, इसीलिए नए दौर के विज्ञापनों में लघुकथा मुख्य आधार है।'
 
सत्र के मुख्य अतिथि भोपाल से वरिष्ठ लघुकथाकार गोकुल सोनी ने अपने उद्बोधन में कहा कि 'दुनिया एक बड़ा बाज़ार है, ऐसे दौर में विज्ञापन का महत्व है। और फ़िल्में सोचने का तरीका बदलती हैं। आजकल लघुकथा इनका हिस्सा है।'
 
सत्र की अध्यक्षता कर रहे डॉ. पुरुषोत्तम दुबे ने कहा कि 'व्यवसायोन्मुखी होने के साथ-साथ लघुकथाएं नए कलेवर को प्रस्तुत करती हैं। लघुकथकारों का दायित्व समाज के अनुसार कथाएं और विज्ञापन तैयार करें।'
 
तृतीय सत्र में भोपाल के साहित्यकार मुज़फ़्फ़र इक़बाल सिद्दकी की अध्यक्षता व इन्दौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविंद तिवारी का विशिष्ट आतिथ्य रहा। सत्र संचालन अखिलेश राव ने किया।
 
हिन्दी दिवस पर समिति द्वारा पुस्तक प्रदर्शनी भी लगाई गई। साथ ही, संस्मय प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 'मंथन' लघुकथा-संकलन का विमोचन भी किया गया।
 
आयोजन में 365 न्यूज, पंचौली रेस्टोरेंट, मातृभाषा डॉट कॉम का सहयोग रहा। कार्यक्रम में डॉ. नीना जोशी, ईश्वरी रावल, अश्विनी दुबे, दीपक शिरालकर, प्रताप सिंह सोढ़ी, डॉ. आरती दुबे, निरुपमा नागर, देवेंद्र सिंह सिसौदिया, भुवनेश दशोत्तर, संजय पंजवानी, मुकेश तिवारी, राजेश शर्मा, डॉ. पुष्पेंद्र दुबे, यश बनसोड व उमेश पारेख आदि मौजूद रहे।
 
* इन्होंने किया लघुकथा पाठ * :
 
संजय आरज़ू, भोपाल, सरला मेहता, इन्दौर, मेधा मैथिल, भोपाल, अनुपमा समाधिया, इन्दौर, डॉ. शबनम सुल्ताना, भोपाल, सुधाकर मिश्रा, महू, डॉ. मौसमी परिहार, भोपाल, सुनीता प्रकाश, भोपाल, डॉ. सुधा चौहान, इन्दौर, ए.के. धमेनियां, भोपाल, डॉ. वर्षा ढोबले, भोपाल, सपना सी.पी. साहू, इन्दौर, मृदुल त्यागी, भोपाल, रेखा सक्सेना, भोपाल, सरिता बघेला 'अनामिका', भोपाल, विनीता तिवारी, इन्दौर, शेफालिका श्रीवास्तव, भोपाल, कीर्ति मेहता, इन्दौर, श्रीमती कुमुद दुबे, इंदौर व सोनाली खरे, बेटमा ने लघुकथा पाठ किया।

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